सजा सुनाने से पहले खुद ईश्वर ने आदम और इव को सुनवाई का मौका दिया थाः कर्नाटक हाईकोर्ट ने केएसबीसी के पूर्व प्रमुख की प्रैक्टिस को निलंबित करने वाले बीसीआई के आदेश को रद्द किया

Manisha Khatri

21 Nov 2022 4:30 PM GMT

  • सजा सुनाने से पहले खुद ईश्वर ने आदम और इव को सुनवाई का मौका दिया थाः कर्नाटक हाईकोर्ट ने केएसबीसी के पूर्व प्रमुख की प्रैक्टिस को निलंबित करने वाले बीसीआई के आदेश को रद्द किया

    Karnataka High Court

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने सत्ता में किसी भी प्राधिकरण द्वारा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने के महत्व पर जोर देते हुए हाल ही में आदम और इव की कथा का उल्लेख किया।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा,

    ''स्वयं ईश्वर ने निषिद्ध फल के सेवन के लिए सजा पारित करने से पहले आदम और इव को सुनवाई का मौका दिया था। यह सिद्धांत तब से उभरा है। इस प्रकार, यह आज की बात नहीं है कि यह अवधारणा मौजूद है; यह तब से है,जब से मानवता है।''

    जज ने कहा कि तब से इस सिद्धांत को न्याय प्रदान करने और किसी भी मनमानी प्रक्रिया के खिलाफ किसी व्यक्ति के अधिकारों की न्यूनतम सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानून के न्यायालयों द्वारा ''न्यायिक उपचार'' के माध्यम से सम्मानित और परिष्कृत किया गया है।

    न्यायालय ने कर्नाटक राज्य बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में उक्त काउंसिल के एक मौजूदा सदस्य-के.बी. नाइक द्वारा दायर याचिका को अनुमति देते हुए यह अवलोकन किया है। इस याचिका में बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा पारित उस अंतरिम आदेश पर सवाल उठाया गया था,जिसमें देश के किसी भी न्यायालय में उनको प्रैक्टिस करने से रोक दिया गया है।

    बीसीआई को एक शिकायत मिली थी कि नाइक ने बिना अनुमति के अपने एक मुविक्कल की संपत्ति बेचने के लिए उसके हस्ताक्षर का दुरुपयोग किया था। जिसके बाद आक्षेपित आदेश पारित किया गया था।

    कोर्ट ने कहा कि यह पूछे जाने पर कि क्या इस तरह के गंभीर परिणाम वाले आदेश को पारित करने से पहले नाइक को सुनवाई का कोई मौका दिया गया था, तो बीसीआई के वकील के पास ''कोई जवाब नहीं'' था।

    इसके बाद एडवोकेट्स एक्ट की धारा 48ए का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया है कि कोई भी आदेश जो किसी व्यक्ति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है, बीसीआई द्वारा सुनवाई का उचित मौका दिए बिना पारित नहीं किया जाएगा।

    इस आलोक में न्यायालय ने कहा कि,

    ''प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन सभी सभ्य राज्यों और सभ्य समाजों द्वारा मान्यता प्राप्त है,जिसे अनिवार्य माना गया है, जिसका पालन उस समय किया जाना चाहिए, जब कोई न्यायिक, अर्ध न्यायिक या प्रशासनिक निकाय पक्षों के बीच विवाद का निर्धारण करता है या कोई भी ऐसा आदेश पारित करता है,जिसके सिविल परिणाम होते हैं...इस तरह के कृत्यों का आधार ऑडी अल्टरम पार्टेम और किसी भी कार्रवाई में निष्पक्षता का सिद्धांत हैं। कार्रवाई में निष्पक्षता प्रभावी रूप से निष्पक्ष सुनवाई का अनुदान है; निष्पक्ष सुनवाई के लिए दूसरे पक्ष के मामले की जानकारी होगी; सबूत लाने का अधिकार और बहस करने का अधिकार होगा। यदि ये प्रदान नहीं किए जाते हैं, तो न्यायालय इस तरह के कृत्यों को रद्द करने के लिए कदम उठाएगा, चाहे वह अर्ध-न्यायिक या प्रशासनिक हो।''

    अदालत ने कहा कि आक्षेपित आदेश की जानकारी नाइक को नहीं दी गई थी। यह केवल तीन सदस्यों को सूचित किया गया था - एक शिकायतकर्ता, दूसरा कर्नाटक राज्य बार काउंसिल और तीसरा बीसीआई के समक्ष पेश हुए शिकायतकर्ता के वकील को। ''याचिकाकर्ता पर गंभीर सिविल परिणाम ड़ालने वाले आक्षेपित आदेश को बिना उसकी बात सुने और यहां तक कि उसे संप्रेषित किए बिना ही शुरू में पारित कर दिया गया। याचिकाकर्ता को इसके बारे में तब पता चला जब आदेश स्टेट बार काउंसिल तक पहुंचा।''

    अदालत ने शिकायतकर्ता की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि चूंकि यह केवल अंतरिम स्तर पर पारित किया गया एक आदेश है, इसलिए सुनवाई का मौका देने की आवश्यकता नहीं थी और याचिकाकर्ता के पास हमेशा यह विकल्प है कि वह प्रथम प्रतिवादी के समक्ष पेश होकर अंतरिम आदेश को समाप्त करने की मांग कर सकता है।

    कोर्ट ने कहा, ''आदेश का अर्थ होगा, प्रत्येक आदेश जो किसी भी व्यक्ति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा। वर्तमान मामले में जो पूर्वाग्रह है, वह याचिकाकर्ता की आजीविका को छीन रहा है क्योंकि उसे किसी भी न्यायालय में प्रैक्टिस करने से रोक दिया गया है। इसलिए, धारा 48ए की उप-धारा (2) में बताए गए आदेश का अर्थ होगा कोई भी आदेश या तो अंतरिम या अंतिम जो व्यक्ति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा। यदि यह व्यक्ति को प्रभावित कर रहा है या इसके परिणामस्वरूप कोई सिविल परिणाम होगा, तो ऐसा आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना शुरू में पारित नहीं किया जा सकता है और न ही किया जाना चाहिए।''

    तदनुसार, कोर्ट ने बीसीआई द्वारा पारित अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को बचाव का उचित मौका देने, कानून के अनुसार कार्यवाही करने और याचिकाकर्ता के बचाव पर विचार करने के बाद कानून के अनुरूप उचित आदेश पारित करने के लिए इस मामले को वापस भेज दिया।

    केस टाइटल- के.बी.नाइक बनाम बार काउंसिल ऑफ इंडिया व अन्य

    केस नंबर- रिट याचिका संख्या- 20983/2022

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (केएआर) 469

    आदेश की तिथि- 17 नवंबर 2022

    प्रतिनिधित्व- याचिकाकर्ता के लिए पीपी हेगड़े, सीनियर एडवोककेट ए/डब्ल्यू सागर जी.नाहर पेश हुए। आर-1 के लिए एडवोकेट श्रीधर प्रभु, आर-2 के लिए एडवोकेट गौतम ए.आर, आर-3 के लिए एडवोकेट केतन कुमार

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