'अवलोकन और रिपोर्ट करना हमारा मौलिक अधिकार है': लीगल जर्नलिस्टों ने कोर्ट की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग/लाइव रिपोर्टिंग की मांग करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का रुख किया

LiveLaw News Network

26 May 2021 12:01 PM GMT

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    MP High Court

    चार पत्रकारों ने आम लोगों के महत्व के मामलों से संबंधित अदालती कार्यवाही में भाग लेने, अवलोकन और रिपोर्ट करने के अपने मौलिक अधिकारों का दावा करते हुए लाइव-स्ट्रीमिंग और लाइव-रिपोर्टिंग की अनुमति के लिए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का रुख किया है।

    पत्रकार नुपुर थपलियाल, पत्रकार स्पर्श उपाध्याय, पत्रकार अरीब उद्दीन अहमद और पत्रकार राहुल दुबे ने मध्य प्रदेश वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और ऑडियो-विजुअल इलेक्ट्रॉनिक लिंकेज नियम, 2020 को चुनौती देते हुए कहा कि यह नियम तीसरे पक्ष को कोर्ट की वर्चुअल कार्यवाही में भाग लेने से रोकता है, इससे मीडियाकर्मियों नागरिकों के लिए सार्वजनिक मंच पर रीयल-टाइम रिपोर्टिंग में कठिनाई होती है।

    कोर्ट के समक्ष इस नियम के तहत केवल मामले से संबंधित अधिवक्ताओं को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के लिए पेश होने और दलील देने अनुमति है। कोई अन्य व्यक्ति, जो आवश्यक व्यक्ति की परिभाषा में नहीं आता है या मामले से कोई सीधा संबंध नहीं है, को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की कार्यवाही में भाग लेने से पूरी तरह से रोक दिया गया है।

    मध्य प्रदेश वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और ऑडियो-विजुअल इलेक्ट्रॉनिक लिंकेज नियम, 2020 के नियम 16 में कहा गया है कि संबंधित न्यायालय के विशिष्ट आदेश पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान तीसरे पक्ष को उपस्थित रहने की अनुमति दी जाएगी।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए अधिवक्ता मनु माहेश्वरी ने कहा कि,

    "पत्रकारों और मीडियाकर्मियों को केवल संबंधित न्यायालय के विशिष्ट आदेश पर सुनवाई में भाग लेने की अनुमति है। इसका मतलब यह है कि यदि संबंधित न्यायालय द्वारा कोई आदेश जारी नहीं किया जाता है, तो याचिकाकर्ता जैसे पत्रकार कार्यवाही में उपस्थित नहीं हो सकते हैं, जिससे वे सुनवाई के दौरान अधिवक्ताओं के तर्कों, परिणामों और कोर्ट के आदेशों को कवर करने में सक्षम नहीं होंगे। वे हमेशा अनधिकृत रूप से उक्त कार्यवाही में भाग लेने के लिए प्रतिकूल कार्रवाई का जोखिम उठाते हैं।"

    आगे कहा गया कि पत्रकारों को प्रॉक्सी नामों के साथ वर्चुअल कार्यवाही में शामिल होने के लिए मजबूर किया जाता है क्योंकि यदि कोई व्यक्ति अपना वास्तविक नाम निर्दिष्ट करता है, तो जिस क्षण न्यायालय या तकनीकी कर्मचारी उनकी उपस्थिति का पता चलता हैं, आक्षेपित नियमों के तहत वर्चुअल कार्यवाही से डिस्कनेक्ट या निकाल देते हैं।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से तर्क दिया गया कि,

    "कोई भी नियम जो किसी पत्रकार, मीडियाकर्मी या वादी को अदालत की कार्यवाही में भाग लेने के दौरान अपनी पहचान छिपाने के लिए मजबूर करता है, वह अपने आप में संवैधानिक रूप से सही नहीं है और भारत जैसे किसी भी लोकतांत्रिक देश की न्यायिक प्रणाली पारदर्शी, दृश्यमान और सुलभ के बुनियादी नियमों की जांच का सामना नहीं कर सकता है। यह निरंकुशता, अस्पष्टता का नेतृत्व करता है क्योंकि कई लोग अपने नाम और पहचान का खुलासा करने से डरते हैं, कहीं ऐसा न हो कि उन्हें तुरंत वर्चुअल सुनवाई से बाहर न निकाल दिया जाए।"

    याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय से संवैधानिक महत्व के विषय या सामाजिक प्रासंगिकता के ऐसे किसी भी मामले या सामाजिक निहितार्थ वाले सभी मामलों की वर्चुअल कार्यवाही तक पहुंच प्रदान करने का आग्रह किया है। साथ ही उच्च न्यायालय की विभिन्न पीठों द्वारा तत्काल आधार पर सुनी जा रही COVID-19 महामारी से संबंधित और उससे उठने वाली सभी कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग के लिए भी अंतरिम राहत की मांग की गई है।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि,

    "COVID-19 मामलों का लाइव-स्ट्रीमिंग राज्य सरकार द्वारा महामारी से निपटने से उत्पन्न विभिन्न मुद्दों से निपटने में इस न्यायालय के अभूतपूर्व प्रयासों में जनता के विश्वास को सुनिश्चित करेगा और इसके साथ ही यह कार्यपालिका को गंभीर रूप से जांच में रखेगा कि वह कोर्ट के समक्ष क्या कहता है और जमीनी स्तर पर क्या कार्रवाई करता है।"

    याचिकाकर्ताओं ने स्वप्निल त्रिपाठी और अन्य बनाम सुप्रीम कोर्ट और अन्य मामले के फैसले पर भरोसा जताया। इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने व्यापक जनहित में न्यायालय की कार्यवाही को लाइव-स्ट्रीम करने का निर्णय लिया था। पांच-न्यायाधीशों की बेंच ने कहा था कि सूर्य का प्रकाश सबसे अच्छा कीटाणुनाशक है।

    याचिका में कहा गया है कि केरल, बॉम्बे, गुजरात और मद्रास के उच्च न्यायालयों ने भी अदालती कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग को अपनाया है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले का भी उल्लेख है, जिसमें मीडिया को न्यायाधीशों की मौखिक टिप्पणियों की रिपोर्टिंग से रोकने के लिए चुनाव आयोग की याचिका को खारिज कर दिया गया था।

    इलाहाबाद और राजस्थान के उच्च न्यायालयों के समक्ष भी इसी तरह की याचिकाएं दायर की गई हैं।

    गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष मीडिया के लिए ई-एक्सेस की मांग करते हुए एक आवेदन भी दायर किया गया है। याचिका में कोर्ट से आग्रह किया गया है कि प्रेस मीडिया को कोर्ट की कार्यवाही की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग लिंक तुरंत प्रदान करने के लिए रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाए ताकि वे कोर्ट की कार्यवाही की रिपोर्ट करने में सक्षम हो सकें।

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