सुरक्षाबल केवल पुरुषों का गढ़ नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट ने 'एक्स सर्विसमेन' शब्द के लिए लैंगिक रूप से तटस्थ नामावली का सुझाव दिया

LiveLaw News Network

5 Jan 2023 6:19 AM GMT

  • सुरक्षाबल केवल पुरुषों का गढ़ नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक्स सर्विसमेन शब्द के लिए लैंगिक रूप से तटस्थ नामावली का सुझाव दिया

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने थल सेना, नौसेना और वायु सेना के सेवानिवृत्त कर्मियों को संदर्भित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली नामावली में बदलाव की सलाह दी है; तथा केंद्र एवं राज्य सरकार को अपने नीति निर्माण के प्रयासों में 'एक्स-सर्विसमेन' शब्द के स्थान पर 'एक्स-सर्विस पर्सनल' शब्द का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया है।

    न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा कि:

    "नामावली 'एक्स-सर्विसमेन’ को बदलकर 'एक्स-सर्विस पर्सनल’ करने की अनिवार्य आवश्यकता है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के निरंतर विकसित, गतिशील सिद्धांतों के अनुरूप होगा।"

    कोर्ट ने कहा कि 'एक्स-सर्विसमेन' शब्द में 'मेन' शब्द भेदभाव को चित्रित करता है, क्योंकि यह प्रदर्शित करता है कि सुरक्षाबल अब भी पुरुषों का गढ़ हैं, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है।

    यह कहते हुए कि एक समय था जब महिलाओं की किसी भी बल में कोई लड़ाकू भूमिका नहीं थी, कोर्ट ने कहा कि अतीत के प्रतिमान बदल गये हैं, और महिलाएं भारतीय सेना, भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना में अधिकारियों के तौर पर और अन्य जिम्मेदारियों के साथ लड़ाकू सेवाओं में विभिन्न पर्यवेक्षी भूमिकाओं तक पहुंच चुकी हैं।

    जस्टिस नागप्रसन्ना ने आगे जोर देकर कहा कि 'मेन' शब्द एक मिथ्यावादी रूख का प्रदर्शन करता है जो सदियों पुरानी पुरुष संस्कृति की निशानी है।

    यह देखते हुए कि नामावली में परिवर्तन पर विचार करना अंततः नियम बनाने वाले प्राधिकार के अधिकार क्षेत्र में है, जस्टिस नागप्रसन्ना ने कहा कि:

    "समानता को केवल एक बेकार का मंत्र नहीं रहना चाहिए, बल्कि एक जीवंत वास्तविकता होनी चाहिए। यह याद रखना चाहिए कि महिलाओं के अधिकारों का विस्तार सभी सामाजिक प्रगति का मूल सिद्धांत है। केवल नियम बनाने वाले अधिकारियों और नीति निर्माताओं की मानसिकता में बदलाव के साथ ही संविधान के मूल्यों की प्रतिबद्धता को मान्यता दी जा सकती है।’’

    कोर्ट की यह टिप्पणी सरकारी दिशानिर्देशों को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका से निपटने के दौरान आई, जिसमें कहा गया था कि 'एक्स-सर्विसमेन' की बेटियां आश्रित नहीं रहेंगी और उन्हें उनकी शादी के बाद 'एक्स-सर्विसमेन के आश्रितों' के रूप में परिचय-पत्र जारी नहीं किया जा सकता है, जबकि ऐसे इन कर्मियों के पुत्र आश्रित बने रह सकते हैं, भले ही उनकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो।

    यद्यपि कोर्ट ने विवाहित पुत्रियों को 'आश्रितों' की परिभाषा के दायरे से बाहर रखने वाले उपबंध को निरस्त कर दिया, लेकिन साथ ही इससे इतर जाकर इस बात का भी संज्ञान लिया कि 'एक्स-सर्विसमेन' शब्द अपने आप में भेदभावपूर्ण है। कोर्ट ने विधायिका को इसे लैंगिक तौर पर तटस्थ बनाने पर विचार करने की सलाह भी दी।

    केस टाइटल : प्रियंका आर पाटिल बनाम केंद्रीय सैनिक बोर्ड एवं अन्य

    साइटेशन : 2023 लाइवलॉ (कर्नाटक) 1

    केस नंबर: रिट याचिका संख्या 19722/2021

    कोरम: जस्टिस एम. नागप्रसन्ना

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