दोषपूर्ण जांच, अभियोजन पक्ष के साक्ष्य में विरोधाभास: जानिए किन कारणों से गोवा कोर्ट ने रेप केस में आरोपी तरुण तेजपाल को बरी किया

LiveLaw News Network

26 May 2021 9:43 AM GMT

  • दोषपूर्ण जांच, अभियोजन पक्ष के साक्ष्य में विरोधाभास: जानिए किन कारणों से गोवा कोर्ट ने रेप केस में आरोपी तरुण तेजपाल को बरी किया

    गोवा के जिला और सत्र न्यायालय, मापुसा ने 'तहलका' के संस्थापक और पूर्व प्रधान संपादक तरुण तेजपाल को एक जूनियर सहयोगी के यौन उत्पीड़न और बलात्कार के सभी आरोपों से यह कहते हुए बरी किया कि गोवा पुलिस ने सबूतों को नष्ट कर दिया, जिसके कारण आरोपी को बेनिफिट ऑफ डाउट (संदेह का लाभ) दिया जाता है।

    कोर्ट ने 527 पन्नों के फैसले में कहा है कि पीड़िता के आरोपों को साबित करने के लिए कोई पुख्ता सबूत नहीं है।

    विशेष न्यायाधीश क्षमा जोशी ने 21 मई को तेजपाल को बरी कर दिया था। उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड पर अन्य सबूतों पर विचार करते हुए आरोपी को बेनिफिट ऑफ डाउट (संदेह का लाभ) दिया जाता है क्योंकि अभियोजन पक्ष के पास आरोपों का समर्थन करने वाला कोई सबूत नहीं है और अभियोजन पक्ष का बयान सुधार, विरोधाभास, चूक और संस्करणों के परिवर्तन को भी दर्शाता है, जो आत्मविश्वास को प्रेरित नहीं करता है।

    तरुण तेजपाल पर 7 और 8 नवंबर 2013 को समाचार पत्रिका के आधिकारिक कार्यक्रम - THiNK 13 उत्सव के दौरान गोवा के बम्बोलिम में स्थित ग्रैंड हयात होटल के लिफ्ट के अंदर महिला की इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती करने का आरोप लगाया गया था

    सीसीटीवी फुटेज

    कोर्ट ने जांच अधिकारी सुनीता सावंत की आलोचना करते हुए कहा कि जांच अधिकारी सुनीता ने जानबूझ कर अपने मातहत कर्मचारियों को निर्देश दिया कि वो ग्राउंड फ्लोर और सेकेंड फ्लोर का CCTV फुटेज डाउनलोड करें, लेकिन फर्स्ट फ्लोर का नहीं। नौ दिन बाद पहली मंजिल के फुटेज एकत्र किए गए और इसके साथ ही जहां डीवीआर की कोई रिकॉर्डिंग थी उस कमरे को सील तक नहीं किया गया था।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "जांच अधिकारी ने महत्वपूर्ण गेस्ट लिफ्ट का अहम CCTV फुटेज देखा था, जिसमें तरुण तेजपाल और पीड़िता लिफ्ट से बाहर निकल रहे हैं। जांच अधिकारी ने जानबूझ कर 29 तारीख यानी नौ दिन की देरी से DVR (डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर) को सीज किया और इसी बीच 7 नवंबर, 2013 पहली मजिल के CCTV फुटेज को नष्ट कर दिया गया। महत्वपूर्ण रूप से सीसीटीवी फुटेज को संरक्षित करने के लिए जांच अधिकारी द्वारा जल्द से जल्द कदम उठाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। आरोपी को बचाने के लिए जानबूझकर सीसीटीवी फुटेज नष्ट किए गए।"

    न्यायाधीश ने कहा कि जांच अधिकारी द्वारा जांच में कई चूक किए गए और जांच अधिकारी ने वर्तमान मामले के महत्वपूर्ण पहलुओं पर सही से जांच नहीं की।

    बेंच ने कहा कि,

    "जांच अधिकारी ने मामले में कुछ सबूत जैसे ग्रैंड हयात के ब्लॉक 7 की पहली मंजिल के सीसीटीवी फुटेज के सबूतों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।"

    अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी ने सीएफएसएल से पहली मंजिल के गयाब सीसीटीवी फुटेज को पुनः प्राप्त करने का कोई प्रयास नहीं किया क्योंकि वह जानती थी कि यह पहले ही नष्ट किया जा चुका है। अदालत ने कहा कि सीसीटीवी फुटेज से छेड़छाड़ की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

    न्यायाधीश ने कहा कि यह केवल एक अच्छी तरह से स्थापित कानून नहीं है, लेकिन न्यायशास्त्र और हमारी न्याय प्रणाली का एक मौलिक सिद्धांत है कि निष्पक्ष जांच का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी को प्राप्त है।

    अभियेजन पक्ष के बयान में विरोधाभास

    कोर्ट ने कहा कि स्टॉप पंचनामा के दौरान जांच अधिकारी महिला से यह पूछने में विफल रही कि आरोपी ने लिफ्ट पैनल पर कौन सा बटन दबाया ताकि लिफ्ट को सर्किट में रखा जा सके ताकि यह घटना की रात को दो मंजिलों के बीच कहीं भी न रुके।

    अदालत ने कहा कि यह केवल विवरण नहीं है बल्कि अभियोजन पक्ष के मामले का महत्वपूर्ण सबूत है क्योंकि यह अभियोजन का स्पष्ट मामला है कि आरोप की घटना के दो मिनट के दौरान लिफ्ट का दरवाजा एक बार भी नहीं खुला और लिफ्ट के पैनल इसे गति में रखने के लिए आरोपी ने लिफ्ट पर एक बटन दबाया।

    न्यायाधीश ने कहा कि जांच अधिकारी यह जांच नहीं की कि क्या लिफ्ट के दरवाजे को किसी भी बटन को दबाकर खोलने से रोका जा सकता है।

    पीठ ने कहा कि जांच अधिकारी यौन उत्पीड़न के दौरान लिफ्ट में उसके स्थान के बारे में पीड़िता से एक बहुत ही बुनियादी सवाल पूछने में विफल रहा।

    न्यायाधीश ने आगे कहा कि पर्दे पर जो दिखाया गया और महिला ने अपने बयान में जो कहा उसमें स्पष्ट विरोधाभास है, इसके बावजूद जांच अधिकारी ने उसका पूरक बयान दर्ज नहीं किया।अदालत ने कहा कि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि विरोधाभास अक्सर इतने स्पष्ट होते हैं कि अभियोजन पक्ष जो दावा कर रहा है उसके ठीक विपरीत स्क्रीन पर होता है, फिर भी जांच अधिकारी ने अभियोजन पक्ष से इस पर सवाल भी नहीं किया।

    अदालत ने घटना के बाद पीड़िता को आघात पहुंचाने की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि व्हाट्सएप के कुछ संदेशों से पता चलता है कि आधिकारिक कार्यक्रम (पत्रिका द्वारा आयोजित) के बाद गोवा में रहने की उसकी योजना थी, जहां अपराध कथित रूप से किया गया था। इसके अलावा महिला की मां के बयान ने महिला के आघात के दावों की पुष्टि नहीं की। अदालत ने कहा कि घटना के बाद न तो पीड़िता और न ही उसकी मां ने अपनी योजना बदली।

    दोषपूर्ण जांच

    अदालत ने कहा कि इस जानकारी के बावजूद कि एक शिकायतकर्ता अपने ही मामले में जांच अधिकारी नहीं हो सकती है, जांच अधिकारी सुनीता सावंत ने अपने वरिष्ठों के समक्ष जांच को दूसरी महिला अधिकारी को सौंपने का कोई प्रस्ताव नहीं रखा।

    न्यायाधीश ने कहा कि जांच अधिकारी यह नोट करने में विफल रहा कि आपात स्थिति के मामले में उपयोग करने के लिए एक इंटरकॉम और एक स्टॉप बटन है। उन्होंने कहा कि जांच अधिकारी ने लिफ्ट द्वारा ग्राउंड फ्लोर से दूसरी मंजिल तक पहुंचने में लगने वाले समय की गणना नहीं की है।

    न्यायाधीश ने कहा कि यह तय किया गया प्रस्ताव है कि जांच में खामियों के कारण आरोपी को बरी नहीं किया जा सकता है, सबूतों की स्वतंत्र रूप से जांच की जानी चाहिए।

    अदालत ने अंत में कहा कि अभियोजन उचित संदेह से परे आरोपी के अपराध को साबित करने में विफल रहा है। मंगलवार को गोवा सरकार ने भी तेजपाल को बरी किए जाने के खिलाफ बंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी है।

    पृष्ठभूमि

    तरुण तेजपाल पर 7 और 8 नवंबर 2013 को समाचार पत्रिका के आधिकारिक कार्यक्रम - THiNK 13 उत्सव के दौरान गोवा के बम्बोलिम में स्थित ग्रैंड हयात होटल के लिफ्ट के अंदर महिला की इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती करने का आरोप लगाया गया था।

    तेजपाल के खिलाफ आइपीसी की धारा 341 (दोषपूर्ण अवरोध), 342 (दोषपूर्ण परिरोध), 354 ए और बी (महिला पर यौन प्रवृत्ति की टिप्पणियां और उस पर आपराधिक बल का प्रयोग करना) तथा 376 (रेप) के k और f सब सेक्शन के तहत मामला दर्ज किया गया था।

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