बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, फैमिली कोर्ट वैवाहिक विवाद के साथ घरेलू हिंसा मामले की भी कर सकता है सुनवाई

LiveLaw News Network

10 Dec 2019 10:45 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, फैमिली कोर्ट वैवाहिक विवाद के साथ घरेलू हिंसा मामले की भी कर सकता है सुनवाई

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले महीने घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 12 के तहत एक लंबित आपराधिक कार्यवाही को पुणे की फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर करने की अनुमति दे दी, ताकि न्याय के हित में इस कार्यवाही को भी फैमिली कोर्ट में लंबित तलाक की याचिका के साथ-साथ चलाया जा सके।

    न्यायमूर्ति एस.सी गुप्ते ने संतोष मुलिक की तरफ से इस तरह के स्थानांतरण के लिए दायर आवेदन पर सुनवाई की थी। मुलिक ने अदालत के समक्ष दलील दी थी कि उसकी पत्नी मोहिनी चौधरी ने उसके द्वारा तलाक की याचिका दायर करने के बाद घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत उक्त कार्यवाही दायर की थी।

    आवेदक पति की ओर से अधिवक्ता अभिजीत सरवटे और अधिवक्ता अजिंक्य उदने उपस्थित हुए और प्रतिवादी पत्नी की तरफ से वकील सुहास रोहिले पेश हुए।

    आवेदक के वकील ने कहा कि न्याय के हित में विशेष रूप से घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 26 के संबंध में उक्त आवेदन को पुणे स्थित परिवार न्यायालय में स्थानांतरित किया जा सकता है, जहां दोनों मामलों की एक साथ सुनवाई की जा सकती है।

    जबकि, रोहिले ने तर्क दिया कि अधिनियम की धारा 12 के तहत दायर घरेलू हिंसा की कार्यवाही पर विचार करने के लिए फैमिली कोर्ट के पास कोई अधिकार या अधिकार क्षेत्र नहीं है। उन्होंने संदीप मृण्मय चक्रवर्ती बनाम रेशिता संदीप चक्रवर्ती और मिनोती सुभाष आनंद बनाम सुभाष मनोहरलाल आनंद मामलों में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दिए दो फैसलों का भी हवाला दिया।

    वकील सरवटे ने श्रीमती नीतू सिंह बनाम सुनील सिंह मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा दिए एक फैसले का हवाला दिया और दलील दी कि लंबित वैवाहिक कार्यवाही के मामले में अधिनियम की धारा 26 के तहत फैमिली कोर्ट के समक्ष आगे बढ़ने या कार्यवाही करने का विकल्प असंतुष्ट पक्षकार (जो वर्तमान मामले में प्रतिवादी है) के पास उपलब्ध है।

    कोर्ट ने कहा कि परिवार न्यायालय या फैमिली कोर्ट के पास उक्त अधिनियम की धारा 26 के अनुसार अधिकार क्षेत्र है-

    ''इस मिश्रित सिविल याचिका में किया गया सवाल, जो एक कार्यवाही का स्थानांतरण चाहता है, जो इस बारे में नहीं है कि किसके पास अधिनियम के तहत इस तरह की कार्यवाही दायर करने या फैमिली कोर्ट में स्थानांतरित करवाने का विकल्प है। सवाल यह है कि क्या यह न्याय के हित में होगा कि दो कार्यवाहियों को एक साथ सुना जाए ?

    और यदि पारिवारिक न्यायालय इन कार्यवाही को एक साथ सुनने के लिए उचित न्यायालय है, तो क्या उसके पास आपराधिक न्यायालय के समक्ष दायर घरेलू हिंसा कार्यवाही में की गई प्रार्थना पर विचार करने का क्षेत्राधिकार है? यदि दोनों मामलों को एक साथ सुना जाता है, तो यह निश्चित रूप से न्याय के हित में है कि उन्हें सुना जाए, क्योंकि पक्षकारों को केवल फैमिली कोर्ट के सामने आना पड़ेगा।

    जहां तक फैमिली कोर्ट के अधिकार क्षेत्र का संबंध है, अधिनियम की धारा 26 के संबंध में और हमारी अदालतों ने ऐसे क्षेत्राधिकार के पक्ष में निर्णय दिए हैं, तो संभवतः यह नहीं कहा जा सकता है कि फैमिली कोर्ट के पास ऐसे क्षेत्राधिकार का अभाव है।''

    अदालत ने आगे कहा

    जो तर्क दिया गया था, उसके विपरीत, कार्यवाही का उक्त हस्तांतरण उसके अपील के अधिकार पर रोक नहीं लगाएगा-

    ''किसी भी तरह से , अगर घरेलू हिंसा कार्यवाही को फैमिली कोर्ट के समक्ष वैवाहिक कार्यवाही के साथ सुना जाता है तो भी इस अदालत में अपील दायर हो सकती है और इस अर्थ में, यह नहीं कहा जा सकता है कि किसी भी पक्ष ने अपना अपील दायर करने का अधिकार खो दिया है।

    जो खो गया है वह है सिर्फ पुनरीक्षण या संशोधन का एक अधिकार। हालांकि, उपरोक्त न्याय के सिद्धांत के आधार पर कार्यवाही के हस्तांतरण या स्थानांतरण से इनकार करने के लिए कोई आधार नहीं है।''

    इस प्रकार, आवेदन की अपील को स्वीकार कर लिया गया था।


    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें


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