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अगर कोई सदस्य सम्मिलित परिवार को छोड़कर अपना अलग परिवार बसाता है तो घरेलू हिंसा का अधिनियम लागू नहीं होगा : कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network
18 Dec 2019 4:15 AM GMT
अगर कोई सदस्य सम्मिलित परिवार को छोड़कर अपना अलग परिवार बसाता है तो घरेलू हिंसा का अधिनियम लागू नहीं होगा : कर्नाटक हाईकोर्ट
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कर्नाटक उच्च न्यायालय ने माना है कि अगर परिवार की कोई सदस्य साझा घर छोड़कर अपना घर बसाती है तो वह घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत मामला दायर नहीं कर सकती।

न्यायमूर्ति बीए पाटिल की पीठ ने एक मां और बेटे की याचिका स्वीकार कर लिया जिसमें निचली अदालत के फ़ैसले को चुनौती दी गई थी।

अदालत ने कहा,

"हमारी राय में प्रतिवादी ने ऐसा कोई आधार नहीं बताया है कि उसे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कोई राहत दी जाए। मैंने निचली अदालत के आदेश और फ़ैसले पर ग़ौर किया है। दोनों न्यायालय उक्त तथ्यों पर ग़ौर किए बिना गलत निष्कर्ष पर पहुंचे हैं और इस याचिका को सुनवाई कि लिए स्वीकार कर लिया।"

यह है मामला :

मां एनएस लीलावती और उसके बेटे आर शिव प्रताप ने डॉक्टर आर शिल्पा ब्रुंडा जिसका नाम आयशा ज़ुबैर भी है, की याचिका पर दिए गए फ़ैसले को चुनौती दी थी।

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि अक्टूबर, 2018 के पहले सप्ताह में प्रतिवादी याचिकाकर्ताओं के घर आई और संपत्ति उसे दे देने की मांग की। जब उसकी मांग को अस्वीकार कर दिया गया तो उसने झगड़ा किया और यहां तक कि अपने माता-पिता और भाई को चोट पहुंचाने की हद तक चली गई। इस संबंध में एक शिकायत भी दर्ज कराई गई थी।

प्रतिवाद के रूप में, प्रतिवादी ने भी याचिकाकर्ता और दूसरे याचिकाकर्ता की पत्नी के खिलाफ क्षेत्राधिकार पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज की। प्रतिवादी ने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत शिकायत दर्ज कराई।

याचिकाकर्ताओं ने इस शिकायत को चुनौती दी। दलील का मुख्य आधार यह था कि शिकायतकर्ता घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 2 (ए) के तहत उत्पीड़ित नहीं है। घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत इस याचिका को स्वीकार नहीं किया जा सकता। चूंकि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 2 (एफ) के तहत घरेलू संबंध होना ज़रूरी है। फिर, प्रतिवादी-शिकायतकर्ता एक साझा घर में नहीं रहते हैं। यदि इन सभी परिभाषाओं को मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के संदर्भ में एक साथ पढ़ा जाता है तो घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत किसी भी शिकायत पर विचार नहीं किया जा सकता है।

प्रतिवादी की 2002 में शादी हुई और उसके बाद उसने पहले पति को तलाक दे दिया और एक ऐसे व्यक्ति से शादी कर ली जो उसके धर्म से नहीं है और उसके बाद वह दुबई में स्थायी रूप से रह रही है। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि प्रतिवादी बेटी के साझा घर से बाहर जाने और पति के साथ अपना घर स्थापित करने के बाद उसके घरेलू संबंध समाप्त हो जाते हैं।

प्रतिवादी ने तर्क दिया कि "जब सभी पक्षकार एक संयुक्त परिवार में रहते हैं, तो ऐसी परिस्थितियों में, प्रतिवादी के टाइटल के बावजूद सीमित व्याख्या नहीं की जा सकती बनाया जा सकता है, घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 19 ( 1) (ए) के तहत एक सुरक्षा आदेश दिया जा सकता है।

यदि कोई महिला घरेलू संबंध में है और किसी समय साझा परिवार में एक साथ रही है, तो एक संयुक्त परिवार में सामगोत्रीय होने, शादी या संयुक्त परिवार में रिश्तेदारी के कारण रही है और उस स्थिति में अगर कोई घरेलू हिंसा हुई है तब कोर्ट राहत दे सकता है।

कोर्ट ने कहा,

"अगर एक पीड़ित व्यक्ति एक साझा घर में याचिकाकर्ताओं के साथ रहा है, तो एक पीड़ित व्यक्ति के घरेलू संबंध बन सकते हैं, लेकिन यह संबंध याचिका दायर करने से तुरंत पहले या किसी भी समय का हो सकता है। समस्या "किसी भी समय" वाक्यांश के अर्थ के साथ उत्पन्न होती है। इसका मतलब यह नहीं है कि अतीत में किसी भी समय एक साथ रहने से कोई व्यक्ति घरेलू रिश्ते का दावा कर पीड़ित होने का अधिकार कर लेगा।

'किसी भी समय' यह इंगित करता है कि पीड़ित व्यक्ति साझा घर में लगातार साधिकार रह रहा था, लेकिन अगर किसी कारण से पीड़ित महिला को अस्थायी रूप से घर छोड़ना पड़ता है और जब वह वापस लौटती है तो उसे उस घर में उसके अधिकार के ख़िलाफ़ रहने नहीं दिया जाता है। अगर परिवार का कोई सदस्य साझा घर छोड़कर अपना अलग घर बसाता या बसाती है तो उस स्थिति में वह डीवी अधिनियम की धारा 12 के तहत एक आवेदन दायर नहीं कर सकता/सकती है।"

अदालत ने आगे कहा कि

"…यह एक ऐसा विशिष्ट मामला है कि उक्त संपत्ति प्रथम याचिकाकर्ता की दादी श्रीमती शविथम्मा अनन्य संपत्ति है और दूसरे याचिकाकर्ता को यह पंजीकृत उपहार के रूप द्वारा दूसरे याचिकाकर्ता को उपहार में दी गई है।" उपहार विलेख। ऐसी परिस्थितियों में, उक्त संपत्ति न तो संयुक्त परिवार की संपत्ति है और न ही श्रीमती शविथम्मा के पति की। फिर ऐसी परिस्थितियों में भी प्रतिवादी साझा घराने का हकदार नहीं है और वह डीवी अधिनियम की धारा 12 के तहत आवेदन दायर नहीं कर सकती है।"

याचिकाकर्ताओं की पैरवी एडवोकेट राजशेखर एस ने की जबकि प्रतिवादी की ओर से एडवोकेट मोहम्मद ताहिर ने दलील पेश की।


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