डॉक्टरों को किसी भी स्थिति में हड़ताल करने का अधिकार नहीं : मद्रास हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
3 March 2020 9:30 AM IST
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि डॉक्टरों को किसी भी परिस्थिति में हड़ताल करने का अधिकार नहीं है।
न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने मेडिकल शिक्षा और मेडिकल एवं ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशकों द्वारा डॉक्टरों को जारी चार्ज, ट्रांसफ़र और पोस्टिंग मेमो को दी गई चुनौती पर सुनवाई के दौरान यह कहा।
अदालत को इस प्रश्न का निर्णय करना था कि अपनी मांगों के समर्थन में डॉक्टरों को हड़ताल करने का अधिकार है कि नहीं।
अदालत ने कई फ़ैसलों का संदर्भ देते हुए कहा कि हड़ताल करने का कोई क़ानूनी या नैतिक अधिकार की अनुपस्थिति में यह स्वाभाविक है कि कोई भी हड़ताल आवश्यक रूप से ग़ैरक़ानूनी है और इसका कोई क़ानूनी और नैतिक औचित्य नहीं है।
अदालत ने कहा,
"इस बात में कोई संदेह नहीं हो सकता कि हड़ताल पर जाकर डॉक्टर इस चिकित्सकीय कहावत का उल्लंघन करते हैं कि "पहले, कोई नुक़सान नहीं करें।" हड़ताल के कारण मरीज़ों का जो नुक़सान होता है उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। वकीलों की तरह डॉक्टरों का अपने मुद्दों को हल करने के लिए हड़ताल का उपयोग नैतिक मूल्यों और मानवीय परिणामों का ध्यान रखे बिना मरीज़ों की गरिमा को भूलना और उन्हें मुश्किल में डालना है।
मरीज़ किसी मुद्दे को हासिल करने का ज़रिया नहीं हो सकते। हड़ताल के माध्यम से कोई अन्य लक्ष्य प्राप्त करने के लिए उनके जीवन के साथ खिलवाड़ करते हुए उन्हें खिलौने के तरह प्रयोग नहीं किया जा सकता।"
डॉक्टर हड़ताल नहीं कर सकते या किसी भी स्थिति में बॉयकॉट नहीं कर सकते क्योंकि उनका वास्ता सीधे लोगों के जीवन से है और डॉक्टरों की मांग और मरीज़ों के जीवन के बीच, जान का महत्व किसी भी बात से अधिक है। डॉक्टरों की ड्यूटी की प्रकृति ऐसी है अगर एक मिनट भी डॉक्टर उपलब्ध नहीं रहता है तो किसी की जान जा सकती है।
हालांकि, पीठ ने कहा कि डॉक्टरों को जो ट्रांसफ़र और चार्ज का मेमो जारी किया गया है वह दुर्भावनापूर्ण है और यह सिर्फ़ इसलिए जारी किया गया है ताकि उन लोगों को दंडित किया जा सके जो हड़ताल में शामिल थे। अदालत ने यह भी कहा कि वह चाहता है कि सरकार डॉक्टरों की लंबित मांग को सुलझाए।
कंबर रामायण को उद्धृत करते हुए जज ने कहा कि भगवान राम ने सुग्रीव को सलाह दी थी, "न्यायपूर्वक शासन करो ताकि तुम्हारी प्रजा तुमको राजा नहीं बल्कि अपने बच्चे का ख़याल रखनेवाली मां समझे। प्राचीन काल का आदर्श यह था कि राजा और भगवान को एक ऐसी माँ के रूप में माना जाता था जो अपने बच्चों का ख़याल रखती है।"
यह अदालत सरकार से आग्रह करती है कि वह सरकारी डॉक्टरों की मांग पर शीघ्र ग़ौर करे और इसका समाधान ढूंढे। यह जितना लंबा खिंचेगा, सरकारी डॉक्टरों का उत्साह उतना ही ज़्यादा प्रभावित होगा।
इस मुक़दमे में कोई भी पक्ष विजेता नहीं है और इसलिए इसका फ़ैसला आम हित में होना चाहिए। ऐसा तभी हो सकता है जब दोनों ही पक्ष साथ आएं और इन लंबित मामलों का जल्दी समाधान ढूंढें।
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