दिल्ली हाईकोर्ट ने फिल्म 'हाथी मेरे साथी' के रिलीज पर रोक लगाने से इनकार किया

LiveLaw News Network

26 March 2021 4:30 PM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने फिल्म हाथी मेरे साथी के रिलीज पर रोक लगाने से इनकार किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हिंदी फीचर फिल्म 'हाथी मेरे साथी' (तमिल में 'कादन' और तेलुगु में 'अरण्य' नाम से) के रिलीज पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए रोक लगाने से इनकार कर दिया। यह याचिका डॉ. रेड्डी की लेबोरेटरीज लिमिटेड (Dr. Reddy's Laboratories Ltd) द्वारा दायर की गई थी।

    मल्टीनेशनल फार्मास्युटिकल कंपनी ने किसी भी मीडिया प्लेटफ़ॉर्म जैसे सिनेमा घर, ओटीटी आदि पर रिलीज पर रोक लगाने की मांग की थी। आरोप लगाया है कि यह फिल्म वादी के पंजीकृत ट्रेडमार्क/ब्रांड 'डीआरएल (DRL)' का उल्लंघन कर रही है।

    न्यायमूर्ति संजीव नरुला की एकल पीठ ने मंगलवार (23 मार्च) को कहा कि कोई भी प्रथम दृष्टया सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया और इसलिए वादी अपूरणीय क्षति का मामला नहीं बना सकता कि अगर फिल्म रिलीज हुई तो उसे नुकसान होगा।

    फिल्म का निर्देशन प्रभु सोलोमन ने किया है और इसमें राणा दग्गुबाती, पुलकित सम्राट, श्रिया पिलगांवकर, जोया हुसैन और विष्णु विशाल हैं।

    [नोट: COVID-19 के बढ़े मामलों का हवाला देते हुए 'हाथी मेरे साथी' की रिलीज डेट को टाल दिया गया है। हालांकि, कादन (तमिल) और अरण्य (तेलुगु) संस्करण शेड्यूल के अनुसार रिलीज होंगे।]

    वादी की शिकायत

    वादी ने शुरुआत में कहा कि हमारी कंपनी एक प्रतिष्ठित कंपनी है और एक बड़ा वर्ग जानता है कि हमारी कंपनी 'डीआरएल' के रूप में व्यापार करती है।

    कोर्ट के समक्ष वादी ने दिनांक 9 फरवरी 2007 को ट्रेड मार्क पंजीकरण संख्या 1529767 के तहत 'डीआरएल' शब्द के पंजीकरण का सबूत प्रस्तुत किया।

    वादी ने आरोप लगाया गया है कि यह फरवरी 2020 में पता चला कि प्रतिवादी मीडिया हाउस (इरोस इंटरनेशनल मीडिया लिमिटेड) द्वारा फिल्म के ट्रेलर वीडियो में वादी के वर्डमार्क / ब्रांड का उल्लंघन करने के लिए 'डीआरएल' नाम से मिलता जुलता ' 'डीआरएल टाउनशिप' का उपयोग किया जा रहा है।

    वादी ने आरोप लगाया कि फिल्म केंद्रों द्वारा 'डीआरएल' नामक एक कॉर्पोरेट इकाई के नाम पर 'डीआरएल टाउनशिप' का निर्माण करके हाथी गलियारों और उनके आवास का विनाश किया जा रहा है।

    वादी को इस बात का दु;ख जताया कि फिल्म में 'डीआरएल' का ऐसा अनधिकृत उपयोग करके वाणिज्यिक रूप से शोषण किया गया और यह पर्यावरण के लाभ के लिए नहीं है और यह सिर्फ अपने ब्रांड का उपयोग करके वादी के ब्रांड के विशिष्ट स्वरूप,प्रतिष्ठा और सद्भाव को नुकसान पहुंचाने के इरादे से किया गया है।

    वादी ने अपने तर्क को प्रमाणित करते हुए कहा कि मार्क ने विशिष्टता प्राप्त कर ली है और यह मेरे (वादी) कंपनी से संबंधित है और इसके साथ ही वादी ने न्यूज आर्टिकल, गूगल सर्च, इंटरनेट उद्धरण आदि के माध्यम से सबूत पेश किए।

    वादी ने आरोप लगाया कि,

    "पूरे फिल्म में नायक को 'डीआरएल' के खिलाफ संघर्ष करते हुए दिखाया गया है। इसके साथ ही फिल्म में इकाई को इन्हीं अक्षरों में दिखाया गया है जो कि सही नहीं है। इस फिल्म के द्वारा दर्शकों को स्पष्ट संदेश दिया जा रहा है कि ' डीआरएल' एक गैरजिम्मेदार और निंदनीय कंपनी है, जो पूरी तरह से वादी से संबंधित है।"

    कोर्ट का अवलोकन

    कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि 'डीआरएल' मार्क के पंजीकरण के लिए किए गए आवेदन के तहत यह 'प्रस्तावित उपयोग' की श्रेणी के तहत है और वादी ट्रेडमार्क के आवेदन की तारीख अर्थात 9 फरवरी, 2007 से मुकदमा दायर करने तक पंजीकृत मार्क के उपयोग को दिखाने में विफल रहा है।

    कोर्ट ने इसके अलावा कहा कि किसी निषेधाज्ञा के वर्तमान आवेदन को तय करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई भी सबूत नहीं रखा गया है और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि फिल्म में दिखाए गए डीआरएल ने विशिष्टता हासिल कर ली और यह केवल वादी से संबंधित है।

    कोर्ट ने इस बात को स्वीकार नहीं किया कि वादी के ट्रेडमार्क/कंपनियों/ ब्रांड के साथ फिल्म में दिखाए गए 'डीआरएल' का कोई वास्तविक संबंध या प्रत्यक्ष संबंध है।

    कोर्ट ने माना कि काल्पनिक इकाई दृष्टि रिफाइनरी लिमिटेड (जैसा कि मूवी में इस्तेमाल किया गया है) रिफाइनरी प्लांट स्थापित करने के व्यवसाय में शामिल है, जो वादी से पूरी तरह से अलग है।

    कोर्ट ने आगे कहा कि,

    "फिल्म में दिखाए गए 'डीआरएल" का वादी के प्राथमिक ट्रेडमार्क डॉ. रेड्डी और उसके कॉर्पोरेट यानी डॉ. रेड्डी लेबोरेटरीज लिमिटेड के साथ कोई संबंध नहीं है।"

    पीठ ने देखा कि वादी के पक्ष में प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है कि ऐसे कोई भी फिल्म निर्माता अपनी फिल्म में वादी के ब्रांड या व्यवसाय के संदर्भ के रूप में 'डीआरएल टाउनशिप' नाम को जोड़ लेगा।

    पीठ ने कहा कि यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रतिवादी द्वारा फिल्म में दिखाई गई काल्पनिक कॉरपोरेट इकाई वादी के कॉरपोरेट नाम के साथ मेल खाता है, हालांकि इस एकमात्र आधार पर प्रमाणित फीचर फिल्म की रिलीज के खिलाफ निषेधाज्ञा नहीं दी जा सकती है।

    वादी ने इसके खिलाफ लगभग एक साल बाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। इसे देखते हुए कोर्ट ने कहा कि, "इस अदालत की राय में देरी के आधार पर वादी को निषेधाज्ञा की राहत नहीं दी जाएगी, जिसकी वर्तमान आवेदन में मांग की गई थी।"

    कोर्ट ने इस प्रकार मुकदमे को खारिज करते हुए कहा कि वादी के पक्ष में प्रथम दृष्टया मामला नहीं है, सुविधा का संतुलन प्रतिवादी के पक्ष में है वादी के पक्ष में नहीं। हालांकि कोर्ट ने आगे कहा कि वादी ऐसी परिस्थितियों में अगर मामले को ट्रायल में स्थापित करने में सफल होता है तो नुकसान के लिए मुआवजे की मांग कर सकता है।

    केस का शीर्षक – डॉ. रेड्डी लेबोरेटरीज लिमिटेड बनाम इरोस इंटरनेशनल मीडिया लिमिटेड और अन्य [CS (COMM) 126/2021]

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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