गर्भावस्था समाप्त करने की समय सीमा 12 से बढ़कर 24/ 26 सप्ताह तक हो सकती है
LiveLaw News Network
7 Aug 2019 2:38 PM IST
राष्ट्रीय महिला आयोग गर्भपात के लिए समय सीमा बढ़ाने की सिफारिश कर चुका है कि इसे 20 से 24 सप्ताह तक बढ़ा दिया जाए और सरकार ने ड्राफ्ट (संशोधन विधेयक 2014) के लिए जनता से वर्ष 2014 में सुझाव मांगे थे लेकिन इसे कभी संसद में नहीं रखा गया।
केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को यह सूचित किया है कि वो महिलाओं की अपनी मर्जी से गर्भावस्था को समाप्त करने की समय सीमा को वर्तमान 12 सप्ताह से बढ़ाकर 24 या 26 सप्ताह तक करने के लिए जल्द ही कदम उठाएगा।
1971 के एक्ट में संशोधन को लेकर चल रही परामर्श प्रक्रिया
उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक हलफनामे में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने यह कहा है कि उसने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 में संशोधन के लिए विभिन्न मंत्रालयों से परामर्श की प्रक्रिया शुरू की है और वो गर्भधारण की कानूनी समाप्ति के लिए ऊपरी समय सीमा को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24/26 सप्ताह तक करने के लिए जितनी जल्दी हो सके, अंतिम रूप देगा।
वकील और एक्टिविस्ट अमित साहनी की याचिका पर आया यह जवाब
ये हलफनामा वकील और एक्टिविस्ट अमित साहनी द्वारा एमटीपी अधिनियम की व्यावहारिकता पर सवाल उठाने वाली याचिका के जवाब में दायर किया गया है, जो 20 सप्ताह की अवधि के बाद भ्रूण के गंभीर रूप से पीड़ित होने पर भी गर्भावस्था को समाप्त करने पर रोक लगाता है। याचिका में यह कहा गया है कि राज्य को महिलाओं को गंभीर स्वास्थ्य दोषों के साथ बच्चों को जन्म देने और गर्भावस्था जारी रखने के लिए बाध्य नहीं करना चाहिए।
साहनी ने यह बताया है कि कैसे राष्ट्रीय महिला आयोग गर्भपात के लिए समय सीमा बढ़ाने की सिफारिश कर चुका है कि इसे 20 से 24 सप्ताह तक बढ़ा दिया जाए और सरकार ने ड्राफ्ट (संशोधन विधेयक 2014) के लिए जनता से वर्ष 2014 में सुझाव मांगे थे लेकिन इसे कभी संसद में नहीं रखा गया।
परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा दिया गया जवाब क्या है?
इस पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा है कि उसने 1 मार्च, 2019 को कानून और न्याय मंत्रालय की मांग के बाद महिला और बाल विकास मंत्रालय, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय और नीतीयोग की टिप्पणियां मिलने पर वित्त मंत्री के अनुमोदन के बाद गर्भावस्था अधिनियम के संशोधन के लिए अंतिम मसौदा कैबिनेट नोट भेजा था। 14 मार्च को कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा उक्त नोट को वापस कर दिया गया था कि प्रशासनिक मंत्रालय इस मामले पर जल्द से जल्द विचार कर सकता है क्योंकि संसद के दोनों सदनों को स्थगित कर दिया गया है।
हलफनामे में यह कहा गया है कि मंत्रालय ने पहले ही मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 में संशोधन के लिए अंतर-मंत्रालयी परामर्श की प्रक्रिया शुरू कर दी है और जल्द से जल्द इसे अंतिम रूप दे दिया जाएगा।
एमटीपी अधिनियम की प्रासंगिक धाराएं एवं नियम
एमटीपी अधिनियम वर्ष 1971 में लागू किया गया था। इसकी धारा 3 में यह प्रावधान है कि एक पंजीकृत चिकित्सक 12 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त कर सकता है, जबकि 12-20 सप्ताह के बीच की गर्भावस्था को तभी समाप्त किया जा सकता है, यदि 2 से कम पंजीकृत चिकित्सक की राय मिले कि गर्भ जारी रखना मां के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है या इसका पर्याप्त जोखिम है कि बच्चे को गंभीर असामान्यताएं हों। 20 सप्ताह के बाद किसी भी गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए महिलाओं को अदालत में जाना पड़ता है क्योंकि स्वेच्छा से गर्भपात कराना आईपीसी की धारा 312 के तहत दंडनीय अपराध है।
साहनी कहते हैं कि कानून किसी भी गंभीर असामान्यता की पहचान करने के लिए व्यावहारिक नहीं हैं क्योंकि किसी आनुवांशिक विकार का पता लगाने के लिए अधिकांश परीक्षण/स्कैन गर्भावस्था के 20 सप्ताह के बाद आयोजित किए जाते हैं और यहां तक कि चिकित्सा विज्ञान इन 48 वर्षों में महत्वपूर्ण रूप से विकसित हुआ है लेकिन गर्भावस्था को समाप्त करने का अबतक कानून विकसित नहीं हुआ।
उन्होंने अपनी याचिका में धारा 3 (2) (बी) में उपयुक्त संशोधन लाकर एमटीपी अधिनियम में 4-6 सप्ताह की अतिरिक्त अवधि के अनुसार "20 हफ्ते" से गर्भावस्था की अवधि बढ़ाने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की है।