दिल्ली हाईकोर्ट ने POCSO एक्ट के तहत दोषी व्यक्ति की सजा अस्थायी तौर पर निलंबित की, जांच अधिकारी को गूगल 'ड्रॉप ए पिन'से लाइव लोकेशन भेजने का निर्देश

LiveLaw News Network

23 April 2020 3:55 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने POCSO एक्ट के तहत दोषी व्यक्ति की सजा अस्थायी तौर पर निलंबित की, जांच अधिकारी को गूगल ड्रॉप ए पिनसे लाइव लोकेशन भेजने का निर्देश

    Delhi HC Temporarily Suspends Sentence Of A Man Convicted Under POCSO Act, Directs Use of Google's 'Drop A Pin' To Send Live Location To Investigating Officer

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक नाबालिग पर यौन हमला करने के दोषी व्यक्ति की सजा को अंतरिम तौर पर निलंबित कर दिया है। आरोपी को इस मामले में दोषी ठहराने के बाद दस साल कैद की सजा सुनाई गई थी।

    दोषी की चिकित्सा स्थिति को ध्यान में रखते हुए न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की एकल पीठ ने कई शर्तों के साथ उसकी सजा को 3 महीने के लिए अस्थायी तौर पर निलंबित कर दिया है।

    राज्य की तरफ से पेश अतिरिक्त लोक अभियोजक सुश्री आशा तिवारी ने इस आवेदन का विरोध करते हुए कहा था कि अपीलार्थी को POCSO अधिनियम की धारा 6 सहपठित धारा 5 (एम) के तहत दोषी ठहराया गया है और उसे 10 साल के कारावास की सजा सुनाई गई है।

    हालांकि उसने अदालत को बताया कि आवेदक ने दस हजार रुपये का जुर्माना अदा कर दिया है, जो उस पर लगाया गया था। इसके अलावा, पीड़ित को दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना, 2018 के तहत 1.25 लाख रुपये भी दिए गए हैं।

    सजा के निलंबन की मांग करते हुए आरोपी की तरफ से अमित चौहान ने मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, वैशाली द्वारा 13 सितम्बर 2016 को तैयार किया गया डिस्चार्ज सारांश भी पेश किया, जो अपीलकर्ता की कई बीमारियों के इलाज से संबंधित था। इन बीमारियों का इलाज उसने वर्ष 2016 के दौरान करवाया था, जैसे ऐस्परेशन न्यूमोनाइटिस के साथ मायस्थेनिया ग्रेविस , टाइप -2 मधुमेह मेलीटस, उच्च रक्तचाप और ब्रोन्कियल अस्थमा आदि। इन सभी बीमारियों के कारण अपीलकर्ता को 23.08.2016 से 13.09.2016 तक अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

    चौहान ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता अभी भी काफी दवाएं खा रहा है। उसे स्टेबल मेडिकल कंडीशन में रहने के लिए नियमित निगरानी और देखभाल की आवश्यकता है।

    चौहान ने यह भी दलील दी कि आरोपी की उम्र 72 साल है और उसकी पिछली चिकित्सा स्थिति उसे एक कमजोर श्रेणी में डाल रही है, इसलिए सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की मौजूदा परिस्थितियों में उसका जेल में रहना चिकित्सीय रूप से असुरक्षित है।

    न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत सभी रिकॉर्ड को ध्यान में रखते हुए पीठ ने कहा कि-

    'हालांकि रिकॉर्ड से पता चलता है कि आवेदक केवल 24.02.2020 से जेल में बंद है। उसी दिन उसे सजा आदेश पारित किया गया था। अदालत ने उसे POCSO अधिनियम के तहत जघन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराया था। हालांकि आज के समय में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की अभूतपूर्व परिस्थिति बनी हुई है, जिसके परिणामस्वरूप सभी कैदियों की समग्र चिकित्सा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जेलों में भीड़ कम करने की आवश्यकता है। इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह अदालत अपीलार्थी की सजा को अंतरिम तौर पर निलंबित करने पर राजी हुई है।'

    निम्नलिखित शर्तों पर दोषी की सजा को तीन महीने के लिए अंतरिम रूप से निलंबित कर दिया गया है-

    ए-अपीलार्थी को जेल अधीक्षक की संतुष्टि के लिए 50,000 रुपये की राशि का एक व्यक्तिगत बांड प्रस्तुत करना होगा। लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुए इस समय जमानतदार लाने की शर्त को हटा दिया गया है।

    बी-अपीलकर्ता अदालत की अनुमति के बिना दिल्ली राज्य को नहीं छोड़ेगा और कारागार रिकॉर्ड के अनुसार अपने निवास स्थान पर ही रहेगा।

    सी-अपीलकर्ता प्रत्येक शुक्रवार को सुबह 11 बजे से 11: 30 बजे के बीच जांच अधिकारी को एक वीडियो कॉल करेगा। अगर मामले का जांच अधिकारी अब सेवा में नहीं है या अन्यथा अनुपलब्ध है, तो वह उस पुलिस स्टेशन के एसएचओ को यह कॉल करेगा, जहां पर केस दर्ज किया गया था।

    साथ ही कहा है कि गूगल मैप पर 'ड्रॉप-ए-पिन'रजिस्टर्ड करे ताकि आईओ/ एसएचओ अपीलकर्ता की उपस्थिति और स्थान को सत्यापित कर सकें। अपीलकर्ता के वकील ने यह पुष्टि की है कि अपीलकर्ता के पास इस शर्त का पालन करने के साधन हैं।

    डी-अपीलकर्ता जेल अधीक्षक को एक सेलफोन नंबर देगा, जिस पर अपीलकर्ता से संपर्क किया जा सके। वहीं उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह नंबर हर समय सक्रिय और स्विच-ऑन रखा जाए।

    ई-यदि अपीलकर्ता के पास पासपोर्ट है, तो वह लॉकडाउन वापस लिए जाने या इसमें छूट दिए जाने के बाद जेल अधीक्षक के पास उसे जमा करा देगा।

    एफ-अपीलकर्ता किसी भी ऐसे कार्य या चूक में शामिल नहीं होगा जो किसी भी तरीके से इस अपील की कार्यवाही को प्रभावित करे।

    जी-अंतरिम निलंबन की अवधि समाप्त होने पर, अपीलकर्ता संबंधित जेल अधीक्षक के सामने आत्मसमर्पण करेगा।

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