सैनिटरी नैपकिंस पर जीएसटी पर छूट से मुनाफ़ाख़ोरी करने के आरोप में जॉन्सन एंड जॉनसन के ख़िलाफ़ एनएपीए के आदेश पर दिल्ली हाईकोर्ट ने रोक लगाई
LiveLaw News Network
20 Feb 2020 8:45 AM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने जॉनसन एंड जॉनसन के ख़िलाफ़ एनएपीए के आदेश को पर रोक लगाई है। कंपनी के ख़िलाफ़ सैनिटरी नैपकिंस पर जीएसटी में छूट का नाजायज़ फ़ायदा उठाने का आरोप था और राष्ट्रीय मुनाफ़ाख़ोरी-विरोधी प्राधिकरण (एनएपीए) ने इसी के ख़िलाफ़ कारण बताओ नोटिस जारी किया था।
कंपनी के ख़िलाफ़ आरोप यह था कि वह सैनिटरी नैपकिंस पर कर में छूट का लाभ अपने विक्रेताओं को नहीं देकर मुनाफ़ाख़ोरी की है।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने केंद्र सरकार, एनएपीए और मुनाफ़ाख़ोरी के ख़िलाफ़ प्राधिकरण के निदेशक को इस मामले में नोटिस जारी किया है। अदालत ने याचिकाकर्ता कंपनी को अंतरिम राहत भी दी है।
पीठ ने निर्देश दिया है कि अमरीका की इस कंपनी की भारत में स्थिति सहयोगी कंपनी के ख़िलाफ़ 24 सितंबर को अगली सुनवाई तक कोई कार्रवाई नहीं की जाए।
पीठ ने कहा,
"ऐसा लगता है कि कंपनी के ख़िलाफ़ जो मामला है उसमें प्रथम दृष्ट्या अंतरिम बचाव की ज़रूरत है। इसलिए आदेश पर किसी भी तरह के अमल को सुनवाई की अगली तिथि तक स्थगित की जाती है"।
यह याचिका जॉनसन एंड जॉनसन ने दायर की है और उसने मुअपने ख़िलाफ़ नाफ़ाख़ोरी-विरोधी प्राधिकरण के कारण बताओ नोटिस को निरस्त करने की माँग की।
एनएपीए ने 21 नवंबर 2019 को एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता कंपनी ने 27/07/18 से 30/09/18 के बीच जीएसटी में कमी का फ़ायदा अपने उपभोक्ताओं को नहीं दिया।
इस वजह से कंपनी ने केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम का उल्लंघन कर ग़लत तरीक़े से ₹42.7 करोड़ का मुनाफ़ा कमाया। याचिका में कहा गया की 27 जुलाई 2018 से पहले सैनिटरी टोवेल्स (पैड्ज़)/सैनिटरी नैपकिन्स पर 12% की दर से वस्तु एवं सेवा कर लगता था।
याचिकाकर्ता ने बताया कि 27/07/18 से पहले सैनिटरी नैपकिंस उन वस्तुओं के तहत आता था जिन पर 12% की दर से जीएसटी लगता था।
हालाँकि, उसके बाद, सैनिटरी नैपकिंस पर जीएसटी समाप्त कर दिया गया। इसकी वजह से, याचिकाकर्ता कंपनी का कहना है कि वह इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ नहीं उठा पायी और उसके उत्पादों के इनपुट लागत में वृद्धि हुई।
इनपुट टैक्स क्रेडिट्स का लाभ नहीं उठा पाने के बावजूद याचिकाकर्ता कंपनी ने कहा कि उसने इस बात की हर संभव कोशिश की कि उसके उपभोक्ताओं को जीएसटी पर छूट का लाभ मिले।
फिर, याचिकाकर्ता ने यह दावा भी किया कि एनएपीए के निदेशक का यह निष्कर्ष निकालना कि कंपनी ने इस अवधि के दौरान ₹42.7 करोड़ का मुनाफ़ा कमाए यह मनमाना, असंगत है और इसलिए इस आदेश को निरस्त कर देना चाहिए।
इसके अतिरिक्त याचिकाकर्ता ने सीजीएसटी अधिनियम के कुछ प्रावधानों और नियमों को भी चुनौती दी है और इन्हें असंवैधानिक बताया है। कंपनी ने एनएपीए के गठन को असंवैधानिक क़रार दिए जाने की भी माँग की है।
याचिकाकर्ता की पैरवी वरिष्ठ वक़ील अरविंद दातर ने की। इस मामले की अगली सुनवाई अब 29 सितम्बर को होनी है।