POCSO मामले में ज़मानत की सभी कार्यवाही में पीड़ित को नोटिस दिए जाना सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने जारी किए निर्देश

LiveLaw News Network

8 Jun 2020 2:45 AM GMT

  • POCSO मामले में ज़मानत की सभी कार्यवाही में पीड़ित को नोटिस दिए जाना सुनिश्चित करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने जारी किए निर्देश

    दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्देश जारी कर सेशन कोर्ट से कहा है कि The Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act, 2012 मामले में जब भी ज़मानत की अर्ज़ी पर सुनवाई हो तो यह सुनिश्चित किया जाए कि पीड़ित को इससे पहले नोटिस भेजा जाए ।

    न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह की एकल पीठ ने कहा कि ज़िला जज सभी पीठासीन पदाधिकारियों को इस बात से अवगत कराएंगे कि इस शर्त का पालन अनिवार्य है कि सुनवाई से पहले पीड़ित को सूचित किया जाए।

    एक आपराधिक याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया गया कि आईपीसी की धारा 376(3), 376- AB, 376 - DA या 376 DB के तहत और POCSO अधिनियम के तहत आरोप का सामना कर रहे आरोपियों की ज़मानत की याचिका पर सुनवाई से पहले पीड़ितों को सूचना नहीं दी जाती है।

    याचिकाकर्ता की पैरवी करते हुए तारा नरूला ने कहा कि सेशन कोर्ट का आदेश एक ख़राब क़ानून है क्योंकि यह आदेश एफआईआर दर्ज करने वाले को कोई नोटिस जारी किए बिना दिया गया है और इस तरह उसे सुनवाई का मौक़ा नहीं दिया गया है।

    नरूला ने सीआरपीसी की धारा 439 और 24/09/19 को दिल्ली हाईकोर्ट के प्रैक्टिस के निर्देशों का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि अगर आईपीसी की धारा 376/ 376(3)/ 376-AB/ 376-DA and 376-DB के तहत आरोप झेल रहे किसी व्यक्ति की ज़मानत की याचिका पर सुनवाई की जाती है तो सूचना देने वाले या उसके द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति की अदालत में मौजूदगी आवश्यक है।

    रजिस्ट्रार जनरल ने दिल्ली हाईकोर्ट को जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें कहा गया है कि कुल 294 मामलों में आरोपी ने ज़मानत की अर्ज़ी दी पर सिर्फ 79 शिकायतकर्ताओं को ही सुनवाई से पहले नोटिस जारी किया गया। इसका मतलब यह कि 215 मामलों में यानी 70% मामलों में नोटिस नहीं जारी किए गए।

    हाईकोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि अधिकांश सेशन कोर्ट शिकायतकर्ताओं को अंतरिम ज़मानत सहित ज़मानत की याचिका पर सुनवाई से पहले नोटिस नहीं जारी कर रहे हैं।

    अदालत ने कहा,

    " यह कहना पर्याप्त होगा कि लॉकडाउन ने अदालत की व्यवस्था के लिए लगभग हर दिन कई सारी चुनौतियां पैदा की हैं। हालांकि, शिकायतकर्ताओं को नोटिस नहीं जारी करना एक ऐसी मौलिक पूर्व-शर्त है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।"

    इसके बाद अदालत ने इस बारे में निम्न निर्देश जारी किए -

    जब भी कोई आरोपी आईपीसी की धारा 376(3), 376-AB, 376 - DA या 376 DB के तहत या POCSO अधिनियम के तहत नियमित या अंतरिम ज़मानत की अर्ज़ी देता है तो आईओ को भी नोटिस जारी होगा और पीड़ित/शिकायतकर्ता/सूचना देने वाले को भी नोटिस जारी होगा।

    यह नोटिस पाने पर आईओ तत्काल पीड़ित/शिकायतकर्ता/सूचना देने वाले को भी नोटिस जारी करेगा।

    अगर आईओ पीड़ित/शिकायतकर्ता/सूचना देने वाले का पता नहीं लगा पाता है तो वह इसका कारण अपनी स्टेटस रिपोर्ट में बताएगा। अगर कोई विशेष कारण है तो उसका भी वह उल्लेख करेगा।

    अदालत सुनवाई शुरू करने से पहले यह सुनिश्चित करेगा कि आईओ या वक़ील के द्वारा पीड़ित/शिकायतकर्ता/सूचना देने वाले को नोटिस जारी किया गया है या नहीं।

    जब पीड़ित/शिकायतकर्ता/सूचना देने वाला अदालत में हाज़िर होता है तो अगर ज़रूरत पड़ती है तो उसके अपने वक़ील या विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से पीड़ित/शिकायतकर्ता/सूचना देने वाले के लिए पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाएगा।

    ज़मानत के हर आदेश में पीड़ित/शिकायतकर्ता/सूचना देने वाले को नोटिस जारी किए जाने या नोटिस नहीं जारी किए जाने का कारण विशेष रूप से दर्ज किया जाएगा इसके बाद ही आदेश पास किया जाएगा।

    अगर पीड़ित/शिकायतकर्ता/सूचना देने वाला नोटिस मिलने के बाद भी अदालत में नहीं आता है तो उस स्थिति में अदालत ज़मानत पर क़ानून के अनुरूप विचार कर सकता है।

    अगर किसी आपातकालीन स्थिति के लिए जैसे परिवार में किसी की मौत या मेडिकल आपातकाल की स्थिति में अंतरिम ज़मानत की मांग की गई है और पीड़ित/शिकायतकर्ता/सूचना देने वाले को नोटिस जारी करना संभव नहीं लगता है, तो ऐसे विरल मामले में आदेश में पहले इसका कारण दर्ज किया जाएगा।

    अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पीड़ित/शिकायतकर्ता/सूचना देने वाले को नोटिस जारी करने की आवश्यक शर्त का अगर कोई उल्लंघन होता है क़ानून के तहत उचित कार्रवाई की जाएगी।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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