Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

दूसरे देशों के पीड़ितों/गवाहों के बयान की रिकॉर्डिंग को सुव्यवस्थित करने के लिए दिल्ली हाइकोर्ट ने जारी किए निर्देश

LiveLaw News Network
4 March 2020 10:51 AM GMT
दूसरे देशों के पीड़ितों/गवाहों के बयान की रिकॉर्डिंग को सुव्यवस्थित करने के लिए दिल्ली हाइकोर्ट ने जारी किए निर्देश
x

दिल्ली हाईकोर्ट ने यौन उत्पीड़न से संबंधित आपराधिक सुनवाई में विदेशी पीड़ितों/गवाहों के बयानों की रिकॉर्डिंग को सुव्यवस्थित करने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं।

न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की खंडपीठ ने दिल्ली सरकार दिल्ली पुलिस, दिल्ली हाईकोर्ट और निचली अदालतों को निर्देश जारी कर इस प्रक्रिया को एमएचए दिशानिर्देश 2019 और अधिवक्ता जॉन रिबैका द्वारा दी गई विस्तृत रिपोर्ट के अनुपालन के अनुरूप करने को कहा।

अदालत ने नीचे दिए गए आपराधिक संदर्भों की सुनवाई के दौरान निर्देश जारी किए।

"ऐसा कोई क़ानून/दिशानिर्देश नहीं है जो यौन उत्पीड़न के मामले में अदालत एमएचए और/या संबंधित दूतावास/वाणिज्य दूतावास से हस्तक्षेप करने को कहे ताकि वे उस स्थिति में जब कि पीड़ित उपलब्ध हैं और वे अपना बयान दर्ज कराना चाहते हैं, ऐसे पीड़ितों/गवाहों की गवाही रिकॉर्ड करने की व्यवस्था कर सकें जो विदेशी नागरिक हैं।

इस मामले पर ग़ौर करने की तत्काल ज़रूरत है ताकि ऐसे मामले जो विदेशी नागरिकों से संबंधित हैं, उसमें पीड़ितों/गवाहों के साक्ष्य के अभाव में दोषी को आवश्यक रूप से छोड़ने को बाध्य नहीं होना पड़े और यह भी कि मामले अनावश्यक रूप से लंबे समय तक लंबित नहीं रहे।"

वर्ष 2009 गृह मंत्रालय ने 'विदेश में रहनेवाले लोगों को सम्मन/नोटिस/न्यायिक प्रकिया जारी करने के बारे में एक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किया था जिसमें विदेश में रह रहे गवाहों को बुलाने और उनके बयान रेकर्ड करने के बारे में प्रक्रिया का ज़िक्र था।

इसमें यह कहा गया कि एमएचए ने केंद्र सरकार की ओर से विदेशी सरकारों के साथ म्यूचूअल लीगल असिस्टन्स ट्रीटीज़ (एमएलएटी) किया है ताकि सीआरपीसी की धारा 105 के तहत सम्मन/वारंट और न्यायिक प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाया जा सके।

इन दिशानिर्देशों को 2019 में संशोधित किया गया ताकि लेटर्स रोगेटरी, पारस्परिक विधिक सहायता का आग्रह, सम्मन, नोटिस, वीडियो कंफ्रेंसिंग सहित न्यायिक प्रक्रिया के आग्रह, डाटा को सुरक्षित और संरक्षित करने को शामिल किया जा सके।

नवंबर 2019 में वरिष्ठ वक़ील रेबेका जॉन जिन्हें इस मामले में अमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया था, ने इस बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की थी और इन्हें अथॉरिटीज़ को उनकी टिप्पणी के लिए भेजा गया था।

भारत सरकार ने 17 जनवरी 2020 को अदालत को यह बताया कि वह जॉन की इस रिपोर्ट का समर्थन करती है।

जॉन का एक सुझाव यह था कि जांच अधिकारी को विदेश में रह रहे गवाहों के पासपोर्ट और वीज़ा डिटेल्ज़ सहित सभी उचित सूचनाएँ जमा करनी चाहिए ताकि इस तरह के गवाहों सम्मन जारी करने की प्रक्रिया तत्काल शुरू की जा सके। दिल्ली पुलिस ने अदालत को बताया कि उसने इस बारे में सभी जाँच अधिकारियों को सरकार के निर्देशों को तत्काल प्रभाव से लागू करने को कह दिया है जिसका सुझाव जॉन ने दिया है।

एमिकस क्यूरी के सुझावों के अनुरूप अदालत ने दिल्ली सरकार को दिल्ली आपराधिक अदालत (शिकायतकर्ता और गवाहों को भुगतान) नियम, 2015 को संशोधित करने को कहा ताकि इसमें सम्मन नोटिस आदि भेजने पर होनेवाले ख़र्च को भी शामिल किया जा सके।

अदालत ने कहा है कि वीडियो कंफ्रेंसिंग दिशानिर्देश में निम्न बात को भी शामिल किया जाए -

आपराधिक मामले में गवाह के समक्ष अभियोजन/शिकायतकर्ता द्वारा पेश किए जानेवाले सभी दस्तावेजों को स्कैन किया जाए, इसकी पहचान की जाए और (अगर ज़रूरी है तो) उस भाषा में इसका अनुवाद किया जाए जो गवाह कि भाषा है। इनको मामले की सुनवाई से पहले संबंधित देश के संयोजक को भेजा जाए और इस बारे में गहन गोपनीयता बरती जाए।

अदालत ने कहा है कि इसे सूचना तकनीक समिति के समक्ष पेश किया जाए।

निचली अदालतों को जारी निर्देश

-निचली अदालत यह बताएगी कि साक्ष्य को वीडियो कंफ्रेंसिंग के ज़रिए रेकर्ड करना है कि नहीं।

-निचली अदालत को सम्मन जारी करने और साक्ष्य को रिकॉर्ड करने के बीच एक अलग तिथि का निर्धारण करना चाहिए ताकि वह अभियोजन एजेंसी से सम्मन और समन्वयक से वीडियो कंफ्रेंसिंग के बारे में लिंक व अन्य तकनीकी बातों की जानकारी ले सके।

बीच की तिथि को प्राप्त सूचना के आधार पर निचली अदालत अपने संयोजक को संबंधित देश में अपने समकक्ष से तत्काल सम्पर्क कराने को कहेगा और वीडियो कंफ्रेंसिंग की तिथि से पहले इसकी रिकॉर्डिंग का मॉक परीक्षण करेगा और वास्तविक रिकॉर्डिंग से कम से कम तीन दिन पहले इस बारे में रिपोर्ट पेश करेगा।

निचली अदालत यह सुनिश्चित करेगा कि रिकॉर्डिंग के लिए निर्धारित समय का सदुपयोग हो। अगर किसी कारणवश पीठासीन जज अदालत में उस दिन नहीं आ पाते हैं तो इस बात की कोशिश की जाने चाहिए कि लिंक जज इस कार्य को पूरा करें।

दिल्ली पुलिस को निर्देश

अदालत ने पुलिस को विस्तृत निर्देश जारी तो नहीं किया पर उससे यह कहा कि वह वीडियो कंफ्रेंसिंग के लिए ज़रूरी लिंक और सम्मन आदि की अनुमति एमएचए से प्राप्त कर निचली अदालत को उपलब्ध कराए।

अदालत ने न्यायिक अधिकारियों, तकनीकी स्टाफ़ और पुलिस अधिकारियों को इस बारे में प्रशिक्षित करने की बात भी कही है ताकि वे एमएचए के दिशानिर्देश, 2019, दिल्ली हाइकोर्ट, दिल्ली आपराधिक अदालतों के नियमों से ख़ुद को परिचित कर लें।

अदालत ने एमएचए के दिशानिर्देश 2019 को हाईकोर्ट और निचली अदालत के वेबसाइट पर अपलोड करने का भी निर्देश दिया।


आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करेंं




Next Story