खुद को नाबालिग साबित करने में नाकाम रहे "17 साल के लड़के" को दिल्ली हाईकोर्ट ने रेप के मामले में सात साल की सज़ा सुनाई

LiveLaw News Network

5 Feb 2020 8:02 AM GMT

  • खुद को नाबालिग साबित करने में नाकाम रहे 17 साल के लड़के को दिल्ली हाईकोर्ट ने रेप के मामले में सात साल की सज़ा सुनाई

    दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को 17 साल के एक लड़के को 16 साल की एक लड़की के साथ बलात्कार के आरोप में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और POCSO अधिनियम के तहत 7 साल के कारावास की सज़ा सुनाई। अदालत ने इस मामले में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 के प्रावधानों को नज़रंदाज़ किया।

    न्यायमूर्ति विभू बखरू ने इस लड़के को आईपीसी और POCSO के तहत न्यूनतम 7 साल के कारावास की सज़ा सुनाई। अभियुक्त ने न तो निचली अदालत और न ही हाईकोर्ट में ख़ुद के नाबालिग़ होने का मामला उठाया।

    "अपीलकर्ता का नॉमिनल रोल 09.07.2019 को यह बताता है कि उसकी उम्र 23 साल है, इसलिए जिस दिन यह घटना हुई उस दिन वह 17 साल का नहीं हो सकता। हालांकि, अपीलकर्ता ने निचली अदालत या इस अदालत के समक्ष ख़ुद के नाबालिग़ होने का मुद्दा नहीं उठाया।"

    "उपरोक्त बातों को देखते हुए यह अदालत अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 376 और POCSO अधिनियम की धारा 4 के तहा मिली सज़ा में संशोधन करते हुए इसे निचली अदालत की 10 साल की बजाय 7 साल की सज़ा सुनाती है।" अदालत ने कहा।

    जेजे अधिनयम के तहत बलात्कार एक नृशंस अपराध है और इसके लिए न्यूनतम 7 साल की सज़ा का प्रावधान है। अगर 16 साल से अधिक उम्र का कोई व्यक्ति कोई नृशंस अपराध करता है (जैसा कि इस मामले में) तो धारा 15 के तहत यह प्रावधान है कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड इस तरह के बच्चे के मानसिक और शारीरिक स्थिति की जांच का यह जानने के लिए प्राथमिक आकलन कर सकता है कि वह इस तरह का अपराध कर सकता है या नहीं, वह इस अपराध के परिणामों के बारे में जानता है कि नहीं और वह परिस्थिति जिसके तहत यह अपराध हुआ। अगर बोर्ड को लगता है कि बच्चे पर वयस्क के रूप में मुक़दमा चलाने की ज़रूरत है तो उस पर बाल अदालत में मुक़दमा चलाया जाएगा।

    अदालत ने इस मामले के तथ्यों और पेश सबूतों की विस्तृत जांच की और कहा कि अभियोजन पक्ष का मामला अविश्वसनीय है। उसने कहा कि लड़की के बयान बदलते रहे हैं और इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि इस घटना के दौरान उसे किसी तरह का शारीरिक चोट पहुंचा है।

    पर चूंकि लड़की नाबालिग़ है, इसलिए अदालत यह मानता है कि लड़की की सहमति का सवाल ही नहीं उठता और आरोपी बलात्कार का दोषी है।

    अदालत ने कहा,

    "निस्सन्देह, जिस समय यह घटना घटी उस समय लड़की नाबालिग़ थी और अपीलकर्ता ने उसके साथ यौन संबंध बनाया, जिसकी वजह से वह गर्भवती हो गई। फ़ोरेंसिक सबूत ने यह साफ़ कर दिया है कि इस लड़की ने जिस बच्चे को जन्म दिया, अपीलकर्ता उसका बाप है। उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए, यह स्थापित होता है कि अपीलकर्ता ने ऐसा अपराध किया है जो आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडनीय है।"

    असहमति से होनेवाले यौन संबंध के बारे में अभियोजन के आरोप और यह देखते हुए कि नाबालिग़ होने का दावा नहीं करने के बावजूद आरोपी कथित घटना के समय नाबालिग़ था, हाईकोर्ट उसे 7 साल की न्यूनतम सज़ा देना चाहता है।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




    Tags
    Next Story