दिल्ली हाईकोर्ट उच्चाधिकार प्राप्त समिति से सहमत, निजी मुचलके पर विचाराधीन क़ैदियों को छोड़ने की अनुमति दी
LiveLaw News Network
11 April 2020 10:15 AM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने उच्चाधिकार प्राप्त समिति से सहमति जताते हुए विचाराधीन क़ैदियों को निजी मुचलके पर जेल से रिहा करने की अनुमति दे दी है।
न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ और मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने कहा,
"…जिस तरह की अप्रत्याशित परिस्थिति है और जेलों में भीड़ कम करने के सुप्रीम कोर्ट की चिंता को देखते हुए…इस और इसके तहत आनेवाले किसी भी अधीनस्थ अदालत के 7 अप्रैल 2020 या उसके उसके पहले जारी ज़मानत के आदेश स्योरिटी की ज़रूरत को ख़त्म करते हुए और बदले में सिर्फ़ क़ैदी के निजी मुचलके पर, जो जेल अधीक्षक के संतुष्टि के अनुरूप हो, ज़मानत पर छोड़ने का फ़ैसला किया जाता है।"
दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की एक उच्चाधिकार समिति के सुझावों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए यह फ़ैसला दिया गया है। इस समिति की स्थापना जेलों में कोविड-19 के संक्रमण के अंदेशे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गठित की गई।
समिति ने 7 अप्रैल को अपने निर्देश में कहा कि विचाराधीन क़ैदियों को सिर्फ़ क़ैदियों के निजी मुचलके पर ही छोड़ दिया जाए और पूर्व के ज़मानत आदेशों में स्योरिटी के प्रावधान को समाप्त करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट या उसके अधीनस्थ किसी अदालत के न्यायिक आदेश की ज़रूरत होगी।
दिल्ली सरकार के स्थायी वक़ील राहुल मेहरा ने ने अदालत से कहा कि उच्चाधिकार प्राप्त समिति के सुझावों को लागू करना मोती राम बनाम मध्य प्रदेश सरकार और आरडी उपाध्याय बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामलों में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुरूप है जिनमें निजी मुचलके पर ज़मानत पर छोड़ दिये जाने का आदेश दिया गया था।
मेहरा ने कहा कि उन्हें ऐसे किसी मामले की जानकारी नहीं है जिसमें कोई विचाराधीन क़ैदी ज़मानत मिलने के बाद भी जेल में पड़ा हुआ है क्योंकि वह स्योरिटी बॉन्ड नहीं भर पाया।
अदालत ने समिति के सुझावों को सही मानते हुए स्पष्ट किया कि इस आदेश के द्वारा इस अदालत या किसी अन्य अधीनस्थ अदालत द्वारा ज़मानत की अन्य शर्तों में कोई परिवर्तन करना नहीं है।
इस तरह अदालत ने उन विचाराधीन क़ैदियों को ज़मानत पर रिहा करने को कहा है जिन्हें 7 अप्रैल या उससे पहले विभिन्न अदालतों ने ज़मानत दी है पर जो स्योरिटी नहीं भर पाने के कारण अभी तक जेल में हैं।
अदालत ने कहा कि जेल महानिदेशक डीएसएलएसए के सदस्य सचिव और मुख्य सचिव, (गृह), जीएनसीटीडी भी इस आदेश को लागू करने में सहयोग देंगे।