महाराष्ट्र की बाढ़ को मानव-कृत आपदा घोषित किया जाए, पूर्व सांसद ने बॉम्बे हाईकोर्ट को लिखा पत्र, पढ़िए यह पत्र

LiveLaw News Network

21 Aug 2019 8:41 AM GMT

  • महाराष्ट्र की बाढ़ को मानव-कृत आपदा घोषित किया जाए, पूर्व सांसद ने बॉम्बे हाईकोर्ट को लिखा पत्र, पढ़िए यह पत्र

    बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग को संबोधित एक पत्र में पूर्व सांसद नाना पटोले और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ.संजय लखे पाटिल ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सतारा और सांगली जिलों में भारी बाढ़ और जलभराव की घटना को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 2 डी के तहत, मानव-कृत आपदा (man-made disaster) घोषित करने की मांग की है।

    इसके अलावा उक्त पत्र में यह मांग की गयी है कि राज्य सरकार को यह निर्देश दिए जाएं कि वो बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लोगों के लिए उठाए गए वास्तविक राहत और बचाव उपायों पर प्रकाश डालते हुए एक हलफनामा दायर करे।

    उन्होंने पूरे राज्य में भविष्य में ऐसी आपदाओं की जांच के लिए एवं "निष्क्रियता, विलंबित प्रतिक्रिया को रोकने और निवारक उपायों पर सुझाव देने" हेतु एक विशेषज्ञ समिति की नियुक्ति की मांग की है।

    पत्र में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राज्य और जिला प्रशासनों की तुलना (आपदा में उनकी देरी से प्रतिक्रिया को दर्शाने के लिए) "कुंभकर्ण" से की गयी है।

    नाना पटोले का पत्र उस समय का हवाला देता है जब केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने सिविल इंजीनियर जोसेफ एन. रपैई द्वारा लिखे गए पत्र का संज्ञान लिया था, जिसमे मंत्रियों और नौकरशाहों के खिलाफ, पिछले साल केरल में बाढ़ के कारण बांधों को खोलने में देरी का जिक्र करते हुए, "आपराधिक लापरवाही" के लिए कार्रवाई करने की मांग की गयी थी।

    पत्र में कहा गया है-

    "इस [बाढ़] आपदा ने उन लाखों लोगों को प्रभावित किया है, जिन्हें प्रथम 1-8 दिनों में बिना बिजली, पानी, भोजन, संचार और प्रभावित क्षेत्रों में दैनिक जरूरतों के किसी भी संसाधन के बिना गुजारा करने को मजबूर होना पड़ा, जिसके बाद महाराष्ट्र के अन्य इलाकों के नागरिकों एवं मीडिया, सामाजिक संगठन और सभी विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा आवाज़ उठाने के बाद जिला प्रशासन अपनी "कुंभकर्ण" की नींद से जागा और सैन्य, नौसेना, सेना, एनडीआरएफ के साथ मदद और समन्वय करना शुरू कर दिया है, लेकिन यह मदद बहुत देर से आई।

    लगभग 12 दिनों के बाद भी लोगों की सहायता के लिए काम करने वाली सभी सरकारी एजेंसियों और स्थानीय प्रशासन के बीच उचित समन्वय नहीं है। दुर्भाग्य से और आश्चर्यजनक रूप से राज्य के मुख्यमंत्री, श्री देवेंद्र फड़नवीस, जो राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अध्यक्ष हैं, ने महाराष्ट्र में लगातार हो रही बारिश और बाढ़ के कहर के मद्देनजर लगभग 1 सप्ताह के बाद एक बैठक ली। रविवार यानी 11/09/2019 को उन्होंने मुख्य सचिव, रीसेटलमेंट एवं रिहैबिलिटेशन (आर एंड आर) के वरिष्ठ अधिकारियों, आपदा प्रबंधन विभाग और मंत्रालय नियंत्रण कक्ष में अन्य संबंधित अधिकारियों के साथ एक विस्तृत बैठक ली। यह समीक्षा बैठक, इस गंभीर आपदा के लिए बहुत देर से आई प्रतिक्रिया थी।"

    इसके अलावा, 16-पृष्ठ का पत्र उक्त विशेषज्ञ समिति के लिए कुछ खास बातें बताता है, जैसे-

    (i) महाराष्ट्र राज्य में (विशेष रूप से कृष्णा घाटी में) सभी बांध राष्ट्रीय जल नीति, बाढ़ के लिए एनडीएमए दिशानिर्देश, आरटीआईओआर और अन्य समान निर्देशों के अनुसार बाढ़ नियंत्रण के उद्देश्य से संचालित/उपयोग नहीं किए जाते हैं।

    (ii) राज्य में बांधों को प्रभावी बाढ़ नियंत्रण क्षेत्र/बाढ़ लाइनों और बाढ़ कुशनों के रूप में बनाए नहीं रखा गया है, जैसा कि बीआईएस रिपोर्ट, आरटीआईओआर और ओ एंड एम मैनुअल द्वारा अधिदेशित किया गया है, अधिकांश जलाशय 1-6 अगस्त 2019 और 9 के बीच हुई चरम वर्षा से पहले भरे हुए थे। उनके पास कोयना या निचले बांधों यानी हिप्पर्गा और अल्माटी सहित ऊपरी बांधों में अत्यधिक वर्षा से उत्पन्न अतिरिक्त प्रवाह को समायोजित करने की क्षमता नहीं थी।

    (iii) राज्य में बांधों को नियम वक्र के अनुसार अद्यतन नहीं किया गया है।

    (iv) राज्य में बांध NDMA- बाढ़ प्रबंधन के अनुसार अनिवार्य EAP दिशानिर्देशों में निर्धारित शर्तों के अनुसार संचालित नहीं होते हैं। ईएपी दिशानिर्देश (नीला, नारंगी, लाल एनडीएमए दिशानिर्देशों के अनुसार जारी नहीं किया गया है।)



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