Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

विशेष क़ानून के तहत क़ैदियों/विचाराधीन क़ैदियों को नहीं छोड़ना भेदभाव है कि नहीं, निर्णय करें : बॉम्बे हाईकोर्ट ने उच्चाधिकार समिति से कहा

LiveLaw News Network
27 April 2020 4:00 AM GMT
विशेष क़ानून के तहत क़ैदियों/विचाराधीन क़ैदियों को नहीं छोड़ना भेदभाव है कि नहीं, निर्णय करें : बॉम्बे हाईकोर्ट ने उच्चाधिकार  समिति से कहा
x

बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की उच्च अधिकार समिति से इस बात पर ग़ौर करने को कहा है कि COVID 19 के कारण क़ैदियों को पैरोल पर छोड़ने को लेकर आईपीसी के प्रावधानों के तहत क़ैदियों/विचाराधीन कैदियों और विशेष क़ानूनों जैसे एमपीआईडी, एमसीओसीए, एनडीपीएस, पीएमएलए, यूएपीए के क़ैदियों में अंतर करना भेदभावपूर्ण है कि नहीं।

न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी स्वतः संज्ञान लेते हुए एक मामले की सुनवाई कर रहे थे जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश को एडवोकेट एसबी तलेकर के पत्र लिखने के बाद याचिका में बदल दिया गया। इसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने 23 मार्च को जो आदेश दिया वह इन दो श्रेणियों के क़ैदियों में विभेद नहीं करता।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक उच्च अधिकारप्राप्त समिति गठित करने को कहा था जो यह निर्णय कर सके कि किन क़ैदियों को परोल पर छोड़ा जा सकता है।

26 मार्च 2020 को जारी एक प्रेस नोट में राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने आम लोगों को बताया कि राज्य सरकार ने ऐसे क़ैदियों और विचाराधीन क़ैदियों को रिहा करने का निर्णय लिया है जो ऐसे अपराध के आरोप में ट्र्रायल का सामना कर रहे हैं, जिनमें सज़ा का प्रावधान 7 साल या उससे कम है या जिनको 7 साल की सजा मिली है। यह कहा गया कि आपातकालीन पैरोल पर क़रीब 11 हज़ार क़ैदियों को रिहा किया जाएगा। शुरू में इन्हें उचित मेडिकल परीक्षण के बाद 45 दिनों के लिए रिहा करने की बात कही गई।

राज्य सरकार के वक़ील एसबी तलेकर ने कहा कि राज्य क़ैदियों को छोड़ने पर शीघ्रता से कार्रवाई कर रहा है। उन्होंने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इन क़ैदियों में किसी भी तरह का अंतर नहीं किया है और इसलिए उच्च अधिकार समिति का यह निर्णय भेदभावपूर्ण है।

राज्य में उच्च अधिकार वाली समिति के सुझाव पर 4060 से अधिक क़ैदियों/विचाराधीन क़ैदियों को ज़मानत पर छोड़ा जा चुका है। इस श्रेणी में आनेवाले अन्य क़ैदियों को छोड़ने पर भी विचार चल रहा है।

अदालत ने इस पर कहा,

"उपरोक्त परिस्थिति में हमारी राय में राज्य सरकार उचित प्रक्रियाओं का पालन करते हुए 11 हज़ार क़ैदियों को छोड़ने पर काम कर रही है और इसलिए इस बारे में तत्काल कोई निर्देश जारी करने की ज़रूरत नहीं है। राज्य सरकार इस कार्य को शीघ्रता से कर सकती है ताकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अक्षरशः पालन हो सके।"

इस मामले की अगली सुनवाई अब 30 अप्रैल को होगी।

Next Story