"न्याय मांगने पर मिली तारीख पर तारीख, लिखना अदालत की अवमानना के दायरे में नहीं" : राजस्थान हाईकोर्ट ने वकील के खिलाफ न्यायिक अधिकारी की याचिका खारिज की
LiveLaw News Network
13 Jan 2022 9:50 AM IST
एडवोकेट रजाक के. हैदर
राजस्थान हाईकोर्ट ने जज द्वारा एक अधिवक्ता के खिलाफ पेश अवमानना याचिका खारिज कर दी। याचिका में वकील पर अदालत के खिलाफ फेसबुक पर टिप्पणी करने का आरोप था।
उक्त वकील ने फेसबुक पर लिखा था कि न्याय मांगने पर अदालत से मिली तारीख पर तारीख।
कोर्ट ने कहा,
"न्याय मांगने पर मिली तारीख पर तारीख" लिखना अदालत की अवमानना के दायरे में नही।"
एक आपराधिक मामले में लगातार तारीख पर तारीख मिलने पर अधिवक्ता गोवर्धन सिंह द्वारा फेसबुक पर लिखी गई पोस्ट को आपत्तिजनक बताते हुए न्यायिक अधिकारी द्वारा दर्ज करवाए गए अवमानना के मामले को राजस्थान हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।
चीफ जस्टिस अकील कुरैशी और जस्टिस रेखा बोराणा की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में लिखी गई पोस्ट में ऐसा कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है, जो अदालत की अवमानना के दायरे में आता हो, इसलिए प्रतिवादी अधिवक्ता के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।
मामले के अनुसार पाली जिले के सोजत कस्बे में परिवादी सत्यप्रकाश माली की ओर से अधिवक्ता गोवर्धन सिंह ने एक आपराधिक मामले में परिवाद पेश किया था, जिस पर कोर्ट ने लगभग 25 बार तारीखें दीं।
इस पर अधिवक्ता ने फेसबुक पर पोस्ट उक्त लिखी थी, जिसमें उन्होंने उल्लेख किया कि न्याय मांगने पर उन्हें केवल तारीखें मिली। उनकी पोस्ट पर कई लोगों ने कमेंट्स भी किए, जिस पर तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सोजत गरिमा सौदा ने अधिवक्ता गोवर्धन सिंह व टिप्पणी करने वाले अन्य लोगों के खिलाफ न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर की।
चीफ जस्टिस कुरैशी की खंडपीठ में इस पर सुनवाई हुई तो प्रतिवादी के रूप में अधिवक्ता गोवर्धन सिंह ने स्वयं अपना पक्ष रखते हुए न्यायालय को मामले की पृष्ठभूमि से अवगत करवाया।
उन्होंने कहा कि कोर्ट के सामने केवल इतना ही प्रश्न था कि परिवादी की शिकायत को पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए भेजना है अथवा नहीं। इसमें 25 बार स्थगन दिया गया। बाद में मामले की सुनवाई अन्य अदालत में स्थानांतरित की गई तब 26वीं तारीख पर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए गए।
पीठ ने कहा,
" हमारी राय में प्रतिवादी नंबर 1 ने किसी भी तरह से अदालत की अवमानना नहीं की है। आपराधिक अवमानना को न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2 (सी) में परिभाषित किया गया है, जिसका अर्थ है किसी भी मामले का प्रकाशन या कोई अन्य कार्य करना, जो किसी को भी बदनाम करता हो या कम करता हो। किसी भी न्यायालय का अधिकार या पूर्वाग्रह या किसी न्यायिक कार्यवाही के नियत समय में हस्तक्षेप या हस्तक्षेप करने की प्रवृत्ति या किसी अन्य तरीके से न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करता है या बाधा डालता है। "
कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी की टिप्पणी यह कहने की प्रकृति में थी कि एक विशेष कार्यवाही न्यायालय के समक्ष अनुचित रूप से लंबे समय तक चली थी। यह अपने आप में अलगाव में अवमानना के रूप में नहीं देखा जा सकता।
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