"स्थिति गंभीर"- हाईकोर्ट और ज़िला अदालतों में सशस्त्र बलों की नियुक्ति अत्यावश्यक : जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
12 Dec 2019 10:32 AM IST
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की खंडपीठ ने जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश की सरकार और भारत सरकार ऐसे सभी सर्कुलर पेश करने को कहा है जिसके द्वारा जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट और सभी ज़िला अदालतों को उच्च सुरक्षा वाला क्षेत्र घोषित किया गया। अदालत ने भारत सरकार को निर्देश दिया कि वह जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के दोनों विंग और ज़िला अदालतों में केंद्रीय सुरक्षा बलों की नियुक्ति पर ग़ौर करे।
अदालत ने कहा,
"ज़िला अदालतों के मुख्य द्वार पर ताला लगाने के गंभीर परिणाम होंगे और यह क़ैदियों और आरोपियों के अधिकार से संबंधित अनुच्छेद 21 के उल्लंघन से भी बड़ी बात है। इससे अदालत परिसर में अराजकता आ सकती है। इससे ज़िला अदालतत परिसरों में न केवल जजों की सुरक्षा को ख़तरा हो सकता है बल्कि अगर कोई घटना घटती है तो इससे अन्य लोगों की जान को भी जोखिम हो सकता है। अदालत ने अपने ही मोशन पर कहा कि अदालत की ज़िम्मेदारी है केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख़ के लोगों को प्रभावी और उचित न्याय सुनिश्चित करना। यह सुनिश्चित करने के लिए अदालत स्थानीय पुलिस पर निर्भर है जिस पर अदालत को सुरक्षा मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी है ताकि न्याय दिलाने की प्रक्रिया में आनेवाली रुकावट को रोकी जा सके"।
हालाँकि, स्थानीय वकीलों और पुलिस के बीच हाल में जो विवाद हुआ उसके बाद वकीलों के साथ मिलकर काम करने से स्थानीय पुलिस हिचक रही है। इसके परिणामतः जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट बार असोसीएशन ने सदस्यों से अनिश्चित काल तक के लिए काम पर नहीं जाने को कहा था।
रजिस्ट्रार जनरल ने मुख्य ज़िला जज कम्मू और कुछ अन्य जजों की जो रिपोर्ट पेश की है उसके अनुसार काम पर नहीं जाने के आह्वान के अलावा अदालत में इधर-उधर जाने को लेकर अन्य कई अशोभनीय कार्य हुए हैं और स्थानीय पुलिस इस स्थिति को संभालने में नाकाम रही है।
फिर, न्यायपालिका पर आत्मघाती हमले के पोस्टर 07.09.2019 जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के श्रीनगर विंग पर चिपकाए गए थे। इन पोस्टरों में कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर को एक पुलिस राज्य में तब्दील कर दिया गया है मानवीय क़ानून पर जंगल क़ानून को लाद दिया गया है और इस तरह न्यायपालिका अक्षम और निरर्थक बना दिया गया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश को इसकी जानकारी देने के बाद इस विंग में सुरक्षा व्यवस्था तत्काल मज़बूत कर दी गई।
पीठ ने कहा कि ज़िला अदालत और हाईकोर्ट संवेदनशील आपराधिक मामलों की सुनवाई करती है जिसमें ख़तरनाक आपराधियों को पुराने टाडा क़ानून के तहत मुक़दमों की सुनवाई, एनआईए, नशीले पदार्थों और मादक द्रव्यों से संबंधित मामले आदि शामिल हैं। कार्य की इस तरह की प्रकृति के कारण भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने 31.05.2007 और 04.06.2007 ने कुछ हाइकोर्टों को उच्च सुरक्षा क्षेत्र घोषित कर दिया पर अभी तक इस पर अमल होना बाक़ी है।
यह याद रखना ज़रूरी है कि सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी केंद्रीय रिज़र्व सुरक्षा बल की है। 2009 में वकीलों की हड़ताल के बाद सीआईएसएफ को मद्रास हाईकोर्ट की सुरक्षा में तैनात किया गया है। जम्मू-कश्मीर में हाईकोर्ट की दोनों विंग्स की सुरक्षा सीमा सुरक्षा बल और केंद्रीय रिज़र्व सुरक्षा बल के ज़िम्मे है जबकि ज़िला अदालतों को स्थानीय पुलिस सुरक्षा मुहैया कराती है।
पीठ ने गंभीरता से इस बात पर ग़ौर किया कि
"न केवल न्याय देने की प्रक्रिया को धमकी दी गई है बल्कि इस तरह की कार्रवाई की धमकियाँ हैं जिससे अदालत में आने वाले लोगों और अदालत की बुनियादी सुविधाओं के रूप में सार्वजनिक संपत्तियों को नुक़सान हो सकता है"।
इस मामले की अगली सुनवाई अब 29 जनवरी 2020 को होगी।