क्रॉस-एक्ज़ामिनेशन को गवाह के बयान के दायरे में ही सीमित नहीं रखा जा सकता : बॉम्बे हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

20 Jan 2020 4:45 AM GMT

  • क्रॉस-एक्ज़ामिनेशन को गवाह के बयान के दायरे में ही सीमित नहीं रखा जा सकता : बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की एकल पीठ की न्यायाधीश विभा कंकणबाड़ी ने कहा कि कुछ मामलों में जिरह (क्रॉस एक्जामिनेशन) को 'एक्जामिनेशन-इन-चीफ'के विषय तक ही सीमित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यह एक्जामिनेशन-इन-चीफ की विषय-वस्तु के दायरे से परे भी जा सकता है, क्योंकि क्रॉस-एक्ज़ामिनेशन का उद्देश्य गवाहों की सत्यता परखना या उसकी साख को चुनौती देना है।

    मौजूदा मामले में, ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश द्वारा दिये गये उस आदेश के खिलाफ एक याचिका दायर की गयी थी, जिसमें ट्रायल जज ने गवाह के क्रॉस-एक्जामिनेशन के दौरान बचाव पक्ष के वकील द्वारा पूछे गये प्रश्नों की प्रासंगिकता पर विचार किये बिना विशेष लोक अभियोजक की आपत्तियों को सही ठहराया था। मूल मुखबिर द्वारा मामले में हस्तक्षेप के लिए एक अर्जी भी दायर की गयी थी।

    एकल पीठ ने कहा,

    "यहां, सत्र न्यायाधीश सवाल पूछे जाने के संबंध में मुकम्मल तौर पर रोक नहीं लगा सकते थे, बल्कि उन्हें सबसे पहले सवाल की प्रासंगिकता पर विचार करना चाहिए था। सवाल की प्रासंगिकता का निर्धारण करते वक्त कानून के तहत निर्धारित सीमाओं से परे नहीं जाया जा सकता था। कुछ मामलों में जिरह एक्जामिनेशन-इन-चीफ के विषय-वस्तु तक ही सीमित नहीं की जा सकती। यह उस दायरे से बाहर भी जा सकती है, क्योंकि क्रॉस-एक्जामिनेशन का उद्देश्य गवाहों की सत्यता परखना या उसकी साख को चुनौती देना है।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि यद्यपि प्रांसगिकता और स्वीकार्यता को पर्यायवाची शब्दों के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसे विभिन्न पहलुओं से आंका जाना चाहिए। सामान्य तौर पर प्रश्न की प्रांसगिकता पहले आती है और तब उसकी स्वीकार्यता के निर्धारण की आवश्यकता होती है।

    हाईकोर्ट ने विभिन्न मामलों पर भरोसा जताते हुए ट्रायल कोर्ट के न्यायाधीश द्वारा जारी संबंधित आदेश में उल्लेखित 'बिपिन पांचाल मामले' पर जोर दिया। उक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ट्रायल कोर्ट साक्ष्य रिकॉर्ड कराये जाने या मौखिक गवाही के दौरान दर्ज करायी गयी आपत्तियों का संज्ञान ले सकता है। कोर्ट ने कहा कि इस विशेष अधिकार का इस्तेमाल न्यायोचित तरीके से किया जाना चाहिए।

    इसके अलावा, एकल पीठ ने कहा कि गवाहों से जिरह और अदालत की शक्तियों के बारे में दिल्ली हाईकोर्ट ने 'आर के चंदोलिया बनाम सीबीआई एवं अन्य'मामले से संबंधित फैसले में कुशलतापूर्वक संक्षिप्त निर्णय दिया है, जिसमें उसने स्पष्ट किया है कि न्यायालय को गवाह से किये जाने वाले किसी भी प्रश्न की प्रासंगिकता और स्वीकार्यता के निर्धारण का अधिकार है।

    न्यायालय ने आगे कहा कि चंदोलिया मामले में दिये गये फैसले को 'इंदर सैन बनाम सीबीआई'मामले में दोहराया गया था, जिसमें पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा था कि ट्रायल कोर्ट गवाह से जिरह के दौरान बचाव पक्ष के वकील द्वारा किये जाने वाले प्रश्नों की प्रासंगिकता निर्धारित करने का सर्वोत्तम निर्णायक होता है है।

    कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा,

    "हो सकता है, कुछ प्रश्न उन दस्तावेजों से परे हों, और एक विशेषज्ञ के तौर पर उन पर प्रकाश डाला जाना जरूरी होता है। किस चीज की अनुमति दी जाये और किस चीज की नहीं, इसके लिए कोई भी 'स्ट्रेट जैकेट फॉर्मूला' नहीं दिया जा सकता, क्योंकि यह उस सवाल पर निर्भर करता है जो पूछा जायेगा तथा उस सवाल की प्रासंगिकता और स्वीकार्यता या सिर्फ स्वीकार्यता का निर्धारण उसी समय करना होगा।"

    इसके साथ ही, एकल पीठ ने कहा कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश इस फैसले द्वारा तत्काल साक्ष्य रिकॉर्ड करने के लिए बाध्य है। कोर्ट ने मुखबिर की हस्तक्षेप की अर्जी भी स्वीकार कर ली।

    मुकदमे का ब्योरा –

    केस शीर्षक : संजय बनाम महाराष्ट्र सरकार

    केस नं. क्रिमिनल रिट याचिका संख्या 1764/2019

    कोरम : न्यायमूर्ति विभा कंकणबाड़ी

    वकील : आर एस कुलकर्णी (वादी की ओर से), श्री ए. ए. जगतकर (प्रतिवादी की ओर से)


    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करेंं




    Tags
    Next Story