COVID-19- 'जांच करें कि क्या 'फेलुदा टेस्ट' का उन जगहों पर इस्तेमाल किया जा सकता है जहां लोग इकट्ठा होते हैं': दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया

LiveLaw News Network

17 May 2021 10:40 AM GMT

  • COVID-19- जांच करें कि क्या फेलुदा टेस्ट का उन जगहों पर इस्तेमाल किया जा सकता है जहां लोग इकट्ठा होते हैं: दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते दिल्ली सरकार को यह जांचने का निर्देश दिया कि क्या फेलुदा टेस्ट का उन जगहों पर इस्तेमाल किया जा सकता है जहां लोग इकट्ठा होते हैं, क्योंकि इसकी प्रयोगशाला मोबाइल है और परिणाम लगभग 1.5 घंटे में आ जाता है।

    न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कोविड-19 की स्थिति से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

    [नोट: इस टेस्ट का नाम फेलुदा रखा गया है. इसका पूरा नाम FELUDA यानी FNCAS9 Editor Linked Uniform Detection Assay है. यह SARS-CoV-2 वायरस के लिए विशिष्ट जीन का पता लगाने के लिए CRISPR-Cas तकनीक का उपयोग करता है। इस विधि में FnCas9 नामक एक प्रोटीन और एक गाइड RNA (gRNA) का उपयोग किया जाता है जो वायरल जीन को पहचानने में मदद करता है। काउंसिल ऑफ साइंटिफिक ऐंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) और टाटा ग्रुप के युवा वैज्ञानिकों की एक टीम ने इस टेस्‍ट को विकसित किया है। इस टेस्ट को तैयार करने वाली टीम का नेतृत्व कर रहे डॉ. देबज्योति चक्रवर्ती और सौविक मैत्री ने इसका नामकरण किया है। देबज्योति चक्रवर्ती ने इस टेस्ट का नाम मसहूर फिल्ममेकर सत्यजीत रे के काल्पनिक जासूसी चरित्र फेलुदा के नाम पर रखा है।]

    फेलुदा टेस्ट का उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है?: उच्च न्यायालय ने पूछा

    कोर्ट ने आईसीएमआर से पूछा कि फेलुदा टेस्ट जो सटीकता से समझौता किए बिना लगभग दो घंटे में तेजी से परिणाम देता है, का उपयोग विकल्प के रूप में क्यों नहीं किया जा रहा है और केवल आरटी-पीसीआर टेस्ट का प्रचार क्यों किया जा रहा है।

    आईसीएमआर के वकील ने प्रस्तुत किया कि हालांकि फेलुदा टेस्ट, जिसे सीएसआईआर द्वारा विकसित किया गया है और टाटा द्वारा विपणन किया गया, का महाराष्ट्र में और हाल ही में आयोजित कुंभ मेले के दौरान टेस्ट के लिए बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया, लेकिन अधिकांश राज्यों द्वारा इसका उपयोग इसलिए नहीं किया जा रहा है क्योंकि फेलुदा किट आरटी-पीसीआर किट की तुलना में महंगा है।

    आईसीएमआर के वकील ने आगे कहा कि आरटी-पीसीआर टेस्ट के विपरीत फेलुदा टेस्ट को मोबाइल लैब में किया जाता है इसलिए इसका फायदा है और आरटी-पीसीआर टेस्ट एक निश्चित लैब में किया जाता है और टेस्ट को वाणिज्यिक लॉन्च के लिए डीसीजीआई द्वारा अनुमोदित किया जाना अनिवार्य है।

    सीएसआईआर की प्रस्तुतियां

    सीएसआईआर के डॉ. अनुराग अग्रवाल ने कोर्ट को समझाया कि COVID-19 का पता लगाने के लिए फेलुदा टेस्ट की प्रभावकारिता बहुत अधिक है और लगभग RT-PCR टेस्ट के समान है।

    उन्होंने यह भी कहा कि फेलुदा टेस्ट का मुख्य फायदा यह है कि टेस्ट प्रक्रिया को उस स्थान पर ले जाया जा सकता है जहां व्यक्ति का टेस्ट करना है और आरटी-पीसीआर टेस्ट के विपरीत सैंपल को टेस्टिंग के लिए अस्पताल के प्रयोगशाला में भेजने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    कोर्ट से उन्होंने यह भी कहा कि भले ही सीएसआईआर द्वारा सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को इस तकनीक की याद दिलाने के लिए एक पत्र भेजा गया था, लेकिन बहुत कम राज्य फेलुदा टेस्ट का उपयोग कर रहे हैं।

    सीएसआईआर के डॉ. अनुराग अग्रवाल ने अंत में प्रस्तुत किया कि हालांकि जीएनसीटीडी दिसंबर, 2020 में फेलुदा टेस्ट का उपयोग शुरू करने वाला था, जिसके लिए जनवरी 2021 में एक प्रारंभिक खरीद करने का आदेश भी जारी किया गया था, उसके बाद इस संबंध में कोई कदम नहीं उठाया गया है।

    कोर्ट ने इस प्रकार जीएनसीटीडी को यह जांचने का निर्देश दिया कि क्या फेलुदा टेस्ट का उन जगहों पर इस्तेमाल किया जा सकता है जहां लोग इक्ट्ठा होते हैं।

    बड़े पैमाने पर जनता को शिक्षित करने के लिए एक प्रभावशाली अभियान शुरू करें: दिल्ली उच्च न्यायालय

    कोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि प्रिंट मीडिया और ऑडियो-विजुअल मीडिया जैसे राष्ट्रीय टेलीविजन चैनलों का उपयोग करके COVID-19 के नियंत्रण और उपचार से संबंधित सभी मुद्दों पर जनता को शिक्षित करने के लिए एक प्रभावशाली अभियान शुरू करने की तत्काल आवश्यकता है।

    कोर्ट ने कहा कि;

    1. सरकार को मौजूदा सॉफ्टवेयर का उपयोग करना चाहिए जैसे कि डॉ. गुलेरिया की क्लिप या तत्काल आधार पर अन्य सॉफ्टवेयर/प्रोग्राम बनाना चाहिए।

    2. जीएनसीटीडी को अपनी वेबसाइट delhifightscorona.in पर आईसीएमआर द्वारा निर्मित वीडियो के लिंक उचित शीर्षकों के साथ उपलब्ध कराने चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि नागरिकों में जागरूकता पैदा हो।

    3. प्रचार सॉफ्टवेयर/सामग्री स्थानीय भाषा में भी होनी चाहिए।

    4. आईसीएमआर को आम जनता को ऑक्सीमीटर, ऑक्सीजन कॉन्सेनट्रेश जैसे उपकरणों/उपकरणों के उपयोग के बारे में शिक्षित करना चाहिए और साथ ही उन्हें वर्तमान महामारी में उपयोग किए जाने वाले कॉन्सेनट्रेश के बारे में सूचित करना चाहिए।

    5. प्रिंट मीडिया में साहित्य को प्रचारित करने की जिम्मेदारी जीएनसीटीडी की है और इसलिए इसे आम जनता तक सूचना प्रसारित करने के लिए प्रभावी और तत्काल कदम उठाने चाहिए।

    केंद्र सरकार ने अदालत को यह भी आश्वासन दिया कि टेलीनेटवर्क पर डायलर टोन के इस्तेमाल से मुद्दे को जनता तक पहुंचने के तत्काल आधार पर कदम उठाया जाएगा। कोर्ट ने इसी कार्यवाही में कोविड टीकाकरण अभियान के बारे में जागरूकता के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कॉलर ट्यून पर सवाल उठाया।

    दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से पूछा कि जहां पर्याप्त टीके नहीं हैं वहां कैसे टीकाकरण होगा। कोर्ट ने भारत सरकार और जीएनसीटीडी से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि वे COVID-19 प्रबंधन की सूचना के प्रसार के संबंध में उचित कदम उठा रहे हैं।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "जब भी कोई कॉल करता है तो आप फोन पर परेशान करने वाला संदेश बजता रहता है और हमें नहीं पता कि कब तक सबका वैक्सीनेशन हो पाएगा, जब आपके (केंद्र) पास पर्याप्त टीका नहीं है।"

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



    Next Story