अदालत रिक्त पदों को भरने के लिए सरकार को 'आदेश' जारी नहीं कर सकती : इलाहाबाद हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
13 Jan 2020 12:01 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सहायक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए परीक्षा-2018 में मेरिट में कमी लाने संबंधी याचिका को ख़ारिज कर दिया और कहा कि सिर्फ़ इस वजह से कि कुछ सीटें ख़ाली रहीं, अदालत सरकार को ज़्यादा उम्मीदवारों को समायोजित करने का आदेश जारी नहीं कर सकती।
न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन ने इस तरह के लगभग 60 याचिकाओं को रद्द करते हुए कहा,
"याचिकाकर्ता ने कमज़ोर दलील दी है कि लगभग 27713 पद अभी भी ख़ाली हैं और सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह पास होने के लिए न्यूनतम अंक में कमी लाकर इस पद को भरने का निर्देश दिया जाए। हालांकि, क़ानून में यह निर्धारित बात है कि अदालत सरकार रिक्त पदों को भरने का आदेश जारी नहीं कर सकती और इसलिए इस दलील को ख़ारिज किया जाता है।"
इस पृष्ठभूमि में, राज्य सरकार ने 9 जनवरी 2018 को सहायक शिक्षकों की नियुक्ति के लिए आदेश जारी किया था। इस आदेश में आम उम्मीदवारों के पास होने के लिए 45% और एससी/एसटी श्रेणी के लिए 40% न्यूनतम अंक निर्धारित किए थे।
इसके बाद राज्य सरकार ने 21 मई 2018 को एक अन्य आदेश जारी किया, जिसमें न्यूनतम अंक की सीमा को घटाकर आम उम्मीदवारों के लिए 33 और ओबीसी और एससी/एसटी के लिए 30% कर दिया। बाद में हाइकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद सरकार ने 20 फ़रवरी 2019 को जारी एक नोटिस से 21 मई 2018 को होने वाली परीक्षा रद्द कर दी और 9 जनवरी 2018 के आदेश के अनुसार परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी।
अदालत में 21 मई 2018 के आदेश को लागू कराने के लिए हाईकोर्ट में याचिकाएँ दायर की गईं। इन याचिकाओं में यह कहा गया कि 2018 के परीक्षा परिणाम के घोषित होने के बाद भी लगभग 27713 पद ख़ाली हैं और अदालत सरकार को इन पदों को भरने का आदेश दे।
इस दलील को ख़ारिज करते हुए अदालत ने कहा,
" वर्तमान मामले में इस अदालत का मानना है कि 21.05.2018 को जारी सरकारी आदेश के अनुसार पास होने के लिए न्यूनतम अंक की सीमा को कम करने का आदेश स्थापित क़ानून के ख़िलाफ़ होगा। परीक्षा की प्रक्रिया शुरू होने के बाद पास होने के लिए अर्हता में बदलाव की कोई स्थापित क़ानूनी प्रक्रिया नहीं है और न ही यह नियमित रूप से स्वाभाविक रूप में ऐसा किया जाता है कि सरकार परीक्षा के शुरू होने के बाद पास होने के लिए न्यूनतम अंक की सीमा में कमी कर दे।"
इस बारे में अदालत ने भारत संघ बनाम हिंदुस्तान डेवलपमेंट कॉर्परेशन, (1993) 3 SCC 499 मामले में आए फ़ैसले पर भरोसा किया।
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