समय सीमा बीत जाने के बाद भी अदालत किसी मामले का संज्ञान ले सकती है, बशर्ते कि देरी के कारणों से मजिस्ट्रेट संतुष्ट हों : दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

5 Dec 2019 10:30 AM GMT

  • समय सीमा बीत जाने के बाद भी अदालत किसी मामले का संज्ञान ले सकती है, बशर्ते कि देरी के कारणों से मजिस्ट्रेट संतुष्ट हों : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फिर कहा है कि किसी मामले की समय सीमा के बीत जाने के बाद भी मजिस्ट्रेट उसका संज्ञान ले सकता है, लेकिन ऐसा करते हुए मामले में देरी क्यों और किन परिस्थितियों में हुई और इसके तथ्यों के बारे में न्याय के हित में मजिस्ट्रेट को आश्वस्त होना होगा।

    वर्तमान मामले में एक लॉ इंटर्न ने आईपीसी की धारा 509 और आईटी अधिनियम की धारा 66A के तहत माला दर्ज किया था। उसका आरोप था कि उसके नाम पर एक फर्जी फेसबुक खाता खोला गया और ऐसा करने के लिए इसमें उसके नाम, उसकी पहचान और नंबर का प्रयोग किया गया।

    श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण निचली अदालत ने आरोपी के खिलाफ उस धारा में लगाए गए आरोप रद्द कर दिए। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आईटी अधिनियम की धारा 66A को असंवैधानिक बताया था।

    निचली अदालत ने आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 509 के तहत लगाए गए आरोपों को भी निरस्त कर दिया, क्योंकि चालान एक साल की निर्धारित अवधि के भीतर दाखिल नहीं किया गया था। इस धारा के तहत सिर्फ एक साल की सजा का प्रावधान है।

    इसके बाद शिकायतकर्ता ने एएसजे के समक्ष एक पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसमें उसने कहा कि 2015 में चालान 2012 में हुए एक मामले में समन के सिलसिले में दायर किया गया था और यह भी कहा कि इस मामले में आईटी अधिनियम की धारा 67 और 67A भी लागू हो सकती है।

    यह बताया गया कि आईपीसी के तहत कुछ अपराधों की श्रेणी में भी यह आता है। उसने अपनी दलील में कहा कि सीआरपीसी की धारा 468 और धारा 473 के तहत मामले में हुई इस देरी को अदालत माफ़ कर सकती है।

    एएसजे ने मामले को मजिस्ट्रेट को भेज दिया जिसने इस पर सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत इसका संज्ञान लिया और जांच अधिकारी को इस बारे में स्टेटस रिपोर्ट पेश करने को कहा। एएसजे के इस आदेश को याचिकाकर्ता ने चुनौती दी जिस पर अब सुनवाई हो रही है।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि चूंकि आईटी अधिनियम की धारा 66A को खारिज कर दिया गया है इसलिए अब इस मामले में समय-सीमा पर गौर करने की प्रारंभिक जरूरत भी नहीं है। यह भी कहा गया कि सेशन जज ने सीआरपीसी की धारा 468/473 के प्रावधानों को नजरअंदाज किया और देरी को माफ़ किये जाने के लिए कोई आवेदन नहीं दिया गया है।

    न्यायमूर्ति सुरेश कैत की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता के इन दावों को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि आगे की जांच कराने के अदालत के निर्देश पर कोई रोक नहीं है।

    अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 156, धारा 173(2) और (8) के साथ पढ़ें और धारा 210 विधायी मंशा को स्पष्ट करते हुए यह साफ़-साफ़ कहती हैं कि जब किसी मामले में प्रोटेस्ट पिटीशन जिसमें मामले की उचित जांच का आग्रह किया गया है, वह सुनवाई के लिए लंबित है, यह जरूरी है कि जांच अधिकारी मजिस्ट्रेट के लंबित मामले में आने वाले निर्देश तक जांच रिपोर्ट पेश नहीं करे।


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