कुछ वकीलों का आचरण जनता के बीच कानून के पेशे की प्रतिष्ठा कम करता है : मद्रास हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
2 March 2020 9:45 AM IST
‘‘वकालत के महान पेशे में ब्लैक शिप के अत्यधिक प्रवेश के कारण, समाज में अच्छे वकीलों की प्रतिष्ठा पतन के कगार पर है।’’
एक डॉक्टर द्वारा किराए पर दिए गए घर को खाली करने के लिए एक वकील को निर्देश देते हुए, मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि कानून का पेशा पहले से ही गंभीर आलोचना का शिकार है। ऐसे में राज्य के वकीलों की गतिविधियों के कारण जनता के बीच भी इस पेशे की प्रतिष्ठा कम होना शुरू हो गई है।
न्यायमूर्ति एस.वैद्यनाथन ने एक वकील को फटकारते हुए कहा कि वह किराया नियंत्रण प्राधिकारियों के समक्ष कार्यवाही को लम्बा खींचने के लिए समय गंवाने वाले हथकंडे अपना रहा है। यह टिप्पणी करते हुए कि उसका आचरण एक वकील की तरह नहीं है।
अदालत ने कहा कि-
यह कहना दुखद है कि याचिकाकर्ता की तरह वकालत के महान पेशे में ब्लैक शिप की घुसपैठ के कारण, समाज में अच्छे वकीलों की प्रतिष्ठा पतन के कगार पर है। याचिकाकर्ता एक विष है और अगर उसे बार के अन्य सदस्यों के साथ स्वतंत्र रूप से मिलने की अनुमति दी जाती है, तो पूरा पेशा बर्बाद हो जाएगा, जैसे दूध के बर्तन में जहर की एक बूंद पूरे दूध को जहर में बदल देती है।
अधिवक्ता एक प्रतिनिधि है, लेकिन एक नुमाइंदा नहीं है और वह अपने मुविक्कल को अपनी शिक्षा और अपनी प्रतिभा का लाभ देता है। वकीलों को विश्व स्तर पर न्यायालय के अधिकारी और न्याय प्रशासन के एजेंट के रूप में मान्यता दी जाती है। उन्हें समाज में कानून के शासन को बढ़ावा देने और संविधान में गारंटीकृत मौलिक अधिकारों और नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लड़ने का सामाजिक कर्तव्य दिया गया है।
इस मामले में, याचिकाकर्ता, एक अधिवक्ता होने के नाते, कानून के शासन को प्रमोट करने की भूमिका निभाने के बजाय, समाज को यह सिखा रहा है कि कैसे कानून तोड़ा जाता है और कानून का पेशा ऐसे व्यक्ति के हाथों से निचोड़ा जा रहा है या खराब किया जा रहा है।
कानूनी नैतिकता और कानून के पेशे के लिए यह आवश्यक है कि एक वकील अपने मुविक्कल को अनुचित व्यवहार का सहारा लेने से रोकने के लिए या न्यायालय,दूसरे पक्ष के वकील या दूसरे पक्षकार के संबंध में कुछ भी ऐसा करने से रोकने के लिए अपने सर्वोत्तम प्रयासों का उपयोग करेगा, जो वकील खुद भी नहीं करना चाहता है।
अगर ऐसा किया जाता है तो वह उस ग्राहक का प्रतिनिधित्व करने से इनकार कर देगा, जो इस तरह के अनुचित आचरण में शामिल होता है। जब याचिकाकर्ता / अधिवक्ता स्वयं इस तरह के अनुचित आचरण में लिप्त हो जाता है, तो वह न केवल पेशे, बल्कि न्यायालय का मजाक उड़ा रहा है।
अदालत ने कहा कि पुराने दिनों में वकीलों को बहुत सम्मान दिया जाता था ।
न्यायमूर्ति एस.वैद्यनाथन कहा कि-
इस समय, मेरे लिए मेरे पिता द्वारा बताई एक घटना को याद करना उचित है। जब मेरे पिता मद्रास में एक ट्राम में यात्रा कर रहे थे, तो एक युवक उसमें चढ़ा और एक बूढ़े व्यक्ति के पास खड़ा हो गया था। बूढ़े व्यक्ति ने इस युवक से पूछा कि वह क्या करता है और यह सुनकर कि युवा एक वकील है, वह तुरंत खड़ा हो गया और उसने उस युवक को अपनी सीट पर बैठने का अनुरोध किया।
उन दिनों वकीलों को इस तरह का सम्मान दिया जाता था और यह एक मिलियन डॉलर का सवाल है कि क्या वे दिन वापस आएंगे। हमारे कई महान नेता, जैसे कि महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और डॉ.बी.आर.अंबेडकर वकील हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के अलावा न्याय के महान काम के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। वही कई अज्ञात वकीलों ने भी स्वतंत्रता संग्राम में अपनी जान गंवाई थी।
वकील को दो सप्ताह की अवधि के भीतर परिसर खाली करने का निर्देश देते हुए, अदालत ने मकान के मालिक को स्वतंत्रता दी है कि वह बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु और पुदुचेरी के समक्ष किराएदार वकील के खिलाफ शिकायत कर सकता है।
अदालत ने कहा कि-
''यह बताना उचित है कि कानून का पेशा पहले से ही गंभीर आलोचना के अधीन है और राज्य में वकीलों की गतिविधियों के कारण इसने जनता के बीच भी अपनी प्रतिष्ठा को कम करना शुरू कर दिया है। यदि किरायेदार, जैसे याचिकाकर्ता/अधिवक्ता को परिसर में कब्जा करने की अनुमति दी जाती है तो ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, कि कोई मालिक अपनी इमारत या घर एक वकील को किराए पर नहीं देगा और इस स्थिति में , लोग निश्चित रूप से न्याय वितरण प्रणाली में अपना विश्वास खो देंगे।
जब तक इस तरह के अव्यवसायिक आचरण वाले व्यक्ति के साथ कड़े हाथों निपटा नहीं जाएगा, तब तक महान पेशे की रक्षा नहीं की जा सकती है और अगर इस तरह के अधिवक्ता को सबक नहीं सिखाया जाता है, तो यह निश्चित रूप से जनता के लिए एक बुरी मिसाल कायम करेगा और समाज में वकीलों के बारे में एक खराब छवि पैदा करेगा। याचिकाकर्ता जैसे व्यक्ति को कली खिलने से पहले या शुरूआत में ही कांटों की चुभन का पता होना चाहिए था और इस पर निर्णय करने का काम बार काउंसिल का है।''
दिलचस्प बात यह है कि यह निर्देश वकील-किरायेदार द्वारा दायर की गई एक हस्तातंरण याचिका में जारी किए गए हैं। जिसने प्रिंसीपल सब-ऑर्डिनेट जज के खिलाफ कुछ शिकायतें दायर करते हुए अपने केस की फाइल को , वेल्लोर स्थित सब-ऑर्डिनेट कोर्ट से रानीपेट की सब-ऑर्डिनेट कोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की थी।
उपरोक्त निर्देशों को जारी करने को उचित ठहराते हुए अदालत ने कहा कि-
''हालांकि इस न्यायालय द्वारा जारी किए गए निर्देश एक हस्तांतरण याचिका के दायरे से बाहर हो सकते हैं,परंतु न्याय के हित को देखते हुए या कोर्ट की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए , न्यायालय को सीपीसी की धारा 151 के तहत प्रदान की गई निहित शक्तियों को लागू करते हुए राहत देने का अधिकार है।''
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