'वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के निरीक्षण का पूरा अभाव' : कोर्ट ने दिल्ली दंगों के मामलों में दिल्ली पुलिस के अन्वेषण के तरीके पर फटकार लगाई
LiveLaw News Network
26 April 2021 3:35 PM IST
दिल्ली की एक स्थानीय कोर्ट ने फरवरी 2020 में दिल्ली के उत्तर-पूर्व भागों में हुए दंगों से संबंधित एफआईआर और आपराधिक मामलों में दिल्ली पुलिस के अन्वेषण के तरीके पर फटकार लगाई।
कड़कड़डूमा जिला न्यायालय के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा कि,
"जांच एजेंसी को स्पष्ट रूप से कानून के गलत पक्ष के रूप में पाया गया है।"
कोर्ट न्यायाधीश मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के एक आदेश के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई कर रही थी। आदेश में अधिकारियों को प्रतिवादी निसार अहमद द्वारा की गई शिकायतों पर अलग से प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था।
न्यायाधीश यादव ने अपने आदेश में पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए कहा कि दंगों के कई मामलों में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के अन्वेषण में निरीक्षण का पूरा अभाव है।
न्यायाधीश ने कहा कि अभी सब खत्म नहीं हुआ है और आगे कहा कि अगर वरिष्ठ अधिकारी अब भी इस मामले को सही से देखें और उपचारात्मक उपाय करते हैं तो पीड़ितों को न्याय दिलाया जा सकता है।
पृष्ठभूमि
प्रतिवादी निसार अहमद ने अपनी शिकायतों पर दिनांक 18.03.2020 और 23.05.2020 को एफआईआर दर्ज करने के लिए एमएम से संपर्क किया।
पूर्व की शिकायत में अहमद ने गैरकानूनी भीड़ के सदस्यों और उनके कृत्यों के दो दिनों यानी 24.02.2020 और 25.02.2020 का ब्योरा दिया था। निसार अहमद की शिकायत को एक आस मोहम्मद के एफआईआर के साथ जोड़ दिया गया था। पुलिस ने आस मोहम्मद की शिकायत पर चोरी का मामला दर्ज किया था। यह मामला बुर्का-पहनने वाली महिलाओं की कथित हत्याओं से संबंधित नहीं था।
अहमद ने बाद की शिकायत में आपराधिक धमकी का आरोप लगाया।
प्रतिवादी अहमद की शिकायत यह है कि पहली शिकायत के संबंध में उसे तीन अन्य मामलों में एफआईआर की कॉपी या चार्जशीट की कॉपी सौंपी नहीं गई। अहमद की दूसरी शिकायत यह है कि पुलिस द्वारा न तो जांच की गई और न ही पुलिस द्वारा उसे किसी प्रकार की सुरक्षा प्रदान की गई।
जांच – परिणाम
एएसजे ने शुरुआत में कहा कि दिनांक 18.03.2020 के शिकायत के आधार पर अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने में एमएम सही पाया गया है।
एएसजे ने कहा कि,
"उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के कई मामलों में एक विशेष क्षेत्र से संबंधित कई शिकायतों को एक एफआईआर के साथ जोड़ा गया है। इस अदालत ने देखा है कि कई मामलों में अलग-अलग तारीखों, अलग-अलग शिकायतकर्ताओं, अलग-अलग गवाहों और आरोपी व्यक्तियों के पच्चीस शिकायतों को एक एफआईआर के साथ जोड़ा गया है।"
राज्य ने तर्क दिया कि अंजू चौधरी बनाम यूपी राज्य और अन्य (2013) 6 SCC 384 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के आधार पर अपने अधिकारों के भीतर अच्छी तरह से समानता के सिद्धांत पर शिकायतों को दर्ज किया गया है।
न्यायाधीश ने कहा कि प्रतिवादी की शिकायत ने आस मोहम्मद द्वारा दर्ज शिकायत के खिलाफ दो तारीखों के कृत्यों का खुलासा किया, जिसमें अकेले 25.02.2020 के कृत्यों का खुलासा किया गया था।
कोर्ट कहा कि,
"यह अदालत इस बात को समझने में विफल रही कि दिनांक 18.03.2020 को गई प्रतिवादी की शिकायत को केस एफआईआर नंबर 7/2020 के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है, जब इस शिकायत ने दो अलग-अलग गैरकानूनी असेंबली द्वारा दो तिथियों पर संज्ञेय अपराधों के कमीशन का खुलासा किया।"
कोर्ट ने आगे कहा कि जब दो अलग-अलग शिकायतकर्ताओं द्वारा संज्ञेय अपराधों का खुलासा करने वाली दो अलग-अलग शिकायतें दर्ज की जाती हैं तो ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत जांच एजेंसी ऐसी शिकायतों को एक साथ जोड़कर जांच कर सकें।
न्यायाधीश ने 18.03.2020 को की गई शिकायत में नामित व्यक्तियों द्वारा आपराधिक साजिश रचने के संबंध में भी जांच नहीं करने के लिए अधिकारियों की खिंचाई की।
न्यायाधीश ने कहा कि,
"यहां तक कि आपराधिक मामलों में से किसी में भी अपराध नहीं किया गया है जहां या तो प्रतिवादी शिकायतकर्ता या गवाह है। विचाराधीन मामलों में पुलिस की कार्रवाई / जांच में स्पष्ट विविधताएं हैं।"
कोर्ट ने देखा कि दूसरी शिकायत 25.03.2020 को दर्ज की गई है। इस पर अदालत ने कहा कि प्रतिवादी को दिए गए आपराधिक धमकी के आरोपियों के नाम प्रतिवादी द्वारा स्पष्ट रूप से बताए गए हैं।
कोर्ट ने कहा कि,
प्रतिवादी के दिनांक 23.05.2020 की शिकायत ने फिर से एक अलग संज्ञेय अपराध का खुलासा किया और इस तरह उपरोक्त शिकायतों पर अलग-अलग प्राथमिकी पुलिस द्वारा दर्ज की जानी चाहिए थी।"
कोर्ट ने आगे कहा कि,
"प्रतिवादी ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत याचिका में 18.03.2020 को की गई शिकायत में नामांकित व्यक्तियों के खिलाफ एक सारणीबद्ध प्रारूप में स्पष्ट आरोप लगाए हैं, लेकिन पुलिस ने इस पर कोई भी ध्यान नहीं दिया और पुलिस द्वारा कोई जांच नहीं की गई।"
केस का शीर्षक: राज्य बनाम निसार अहमद
Appearance: राज्य के लिए विशेष पीपी डीके भाटिया; प्रतिवादी के लिए अधिवक्ता एमआर शमशाद।