बाल गवाह का योग्यता प्रमाण पत्र अनिवार्य नहीं है यदि वह कोर्ट के प्रश्नों और उत्तरों को तर्कसंगत रूप से समझता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो मामले में कहा

LiveLaw News Network

17 March 2022 8:02 AM GMT

  • बाल गवाह का योग्यता प्रमाण पत्र अनिवार्य नहीं है यदि वह कोर्ट के प्रश्नों और उत्तरों को तर्कसंगत रूप से समझता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो मामले में कहा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि यदि बच्चा अदालत के सवालों के तर्कसंगत उत्तर देता है और उसकी गवाही अडिग है, जो कोर्ट के विश्वास को प्रेरित करता हो, तो उस बाल गवाह का योग्यता प्रमाण पत्र अनिवार्य नहीं है।

    न्यायमूर्ति मोहम्मद असलम ने कहा,

    "कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि बाल गवाह की योग्यता के संबंध में प्रमाण पत्र अनिवार्य है। यदि बयान दर्ज किया गया है, तो यह ठीक है। लेकिन, अगर अदालत ने उसकी (बच्चे की) बुद्धिमता को समझने के लिए उससे प्रश्न किया है और यदि उसने तर्कसंगत उत्तर दिया है और उसके बाद प्रमाण पत्र के बिना ही गवाह का बयान रिकॉर्ड किया गया है और आरोपी वकील द्वारा उससे जिरह की गयी है तथा बाल गवाह ने संतोषजनक और तर्कसंगत उत्तर दिया, तो ऐसी परिस्थितियों में बाल गवाह की योग्यता के बारे में ट्रायल कोर्ट द्वारा प्रमाण पत्र संलग्न नहीं करने का कोई मतलब नहीं है और इससे उसका बयान अस्वीकार्य नहीं होगा।''

    पीठ का विचार था कि एक न्यायाधीश बाल गवाह की क्षमता का परीक्षण करने के लिए स्वतंत्र है और बुद्धि और ज्ञान के स्तर के बारे में कोई सटीक नियम निर्धारित नहीं किया जा सकता है जो बच्चे को एक सक्षम गवाह बना देगा।

    यह माना गया कि एक बाल गवाह की योग्यता का पता उससे पूछताछ करके लगाया जा सकता है ताकि देखी गई घटना को समझने और अदालत के सामने सच बोलने की क्षमता का पता लगाया जा सके।

    "आपराधिक कार्यवाही में, किसी भी उम्र का व्यक्ति साक्ष्य देने के लिए सक्षम होता है यदि वह (i) गवाह के रूप में पूछे गए प्रश्नों को समझने में सक्षम है; और (ii) प्रश्नों के ऐसे उत्तर दें जिन्हें समझा जा सकता है। कम उम्र के एक बच्चे को गवाही देने की अनुमति दी जा सकती है, यदि उसके पास प्रश्नों को समझने और तर्कसंगत उत्तर देने की बौद्धिक क्षमता है। एक बच्चा केवल तभी अक्षम हो जाता है, जब अदालत यह मानती है कि बच्चा प्रश्नों को समझने और सुसंगत एवं बोधगम्य तरीके से उनका उत्तर देने में अक्षम है। यदि बच्चा पूछे गए प्रश्नों को समझता है और उन प्रश्नों के तर्कसंगत उत्तर देता है, तो यह माना जा सकता है कि वह एक सक्षम गवाह है, जिससे पूछताछ की जा सकती है।"

    चार साल की बच्ची के यौन उत्पीड़न के मामले में 60 साल के एक व्यक्ति के खिलाफ पारित दोषसिद्धि के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी की गई थी। अपीलकर्ता को पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत दोषी ठहराया गया था और उसे 7 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।

    अपीलकर्ता ने मुख्य रूप से दलील दी थी कि ट्रायल कोर्ट ने बाल गवाह पीड़िता एक्स की योग्यता के बारे में कोई प्रमाण पत्र नहीं दिया था, इसलिए उसके बयान पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। 'पी. रमेश बनाम सरकार' मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपीलकर्ता द्वारा भरोसा जताया गया था।

    उस मामले में, अभियोजन पक्ष के गवाह पीडब्ल्यू-3 और पीडब्ल्यू-4 बाल गवाह थे और यह देखा गया कि वे यह समझने में असमर्थ थे कि वे किसके सामने खड़े थे और वे न्यायाधीश या वकील को भी नहीं जानते थे। इस प्रकार, यह माना गया था कि वे सक्षम गवाह नहीं थे।

    हाईकोर्ट ने वर्तमान मामले के तथ्यों को 'पी रमेश (सुप्रा)' के मामले से अलग करते हुए कहा,

    "इस मामले की मुख्य गवाह पीड़िता X (पीडब्ल्यू-3) है, उसका बयान विद्वान पीठासीन अधिकारी द्वारा कुछ प्रश्न पूछकर दर्ज किया गया था, उसने अपना नाम बताया और अपनी माँ का नाम भी बताया और बताया कि वह गुरु राम पब्लिक स्कूल में कक्षा एलकेजी में पढ़ रही है। पूछताछ करने पर, उसने यह भी खुलासा किया कि उसने भगवान की प्रार्थना की थी और उसने यह भी स्पष्ट किया था कि उसने गणेश जी और लक्ष्मी जी की प्रार्थना की। वह जानती थी कि किसी से झूठ नहीं बोलना चाहिए। उसने आगे कहा है कि वह जो कहेगी सच कहेगी। उसने आगे कहा है कि शपथ लेने के बाद झूठ नहीं बोलना चाहिए। तत्पश्चात, निचली अदालत के तत्कालीन पीठासीन अधिकारी ने बिना प्रमाण पत्र के गवाह को प्रमुख लोक अभियोजक के सामने सवालातों के लिए पेश किया।

    उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, ऐसा प्रतीत होता है कि पीड़िता एक्स उससे पूछे गए प्रश्न को समझ सकती थी और तर्कसंगत उत्तर देने में सक्षम थी और उसके पास पूछे गये प्रश्न को समझने की पर्याप्त बुद्धि और समझ थी और वह तर्कसंगत उत्तर दे रही थी, इसलिए ऐसी परिस्थितियों में प्रमाण पत्र के अभाव में, यह नहीं कहा जा सकता कि वह सक्षम गवाह नहीं थी।"

    कोर्ट ने 'दत्तू रामराव सखारे बनाम महाराष्ट्र सरकार (1997) 5 एससीसी 341' के मामले पर भरोसा जताया, जिसमें कहा गया था कि यदि कोर्ट संतुष्ट है कि बारह वर्ष से कम उम्र का बाल गवाह एक सक्षम गवाह है, तो ऐसे गवाह से बिना शपथ या पुष्टि के पूछताछ की जा सकती है।

    तदनुसार, कोर्ट ने माना कि यह साबित हो गया है कि आरोपी ने लगभग 4 साल की लड़की के साथ यौन उत्पीड़न किया है, इसलिए निचली अदालत ने गवाह पीड़ित एक्स की गवाही पर सही ढंग से भरोसा किया है और आरोपी को दोषी ठहराया है और उसे पॉक्सो एक्ट की धारा 10 के तहत 7 साल के कठोर कारावास की सजा भी सुनाई है।

    समाप्त करने से पहले, हाईकोर्ट ने टिप्पणी की,

    "बच्चों को यौन अपराध का शिकार होने के खतरे को बचाने के लिए पॉक्सो अधिनियम बनाया गया था। इसलिए उपरोक्त को देखते हुए, पॉक्सो अधिनियम के प्रावधान की व्याख्या इस तरह से की जाएगी ताकि इस खतरे को समाप्त किया जा सके और इसमें उपरोक्त परिस्थितियों में अनिष्ट के नजरिये से प्रावधान की व्याख्या की जाएगी।"

    केस शीर्षक: अमृता नंद @ त्रिभुवन अरजरिया @ बाबा बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं अन्य।

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (इलाहाबाद) 122

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