मुख्यमंत्री अधिवक्ता कल्याण योजना का उद्देश्य प्रशंसनीय, लेकिन केवल दिल्ली के निवासियों के लिए इसकी प्रयोज्यता भेदभावपूर्ण है: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

13 July 2021 2:59 AM GMT

  • मुख्यमंत्री अधिवक्ता कल्याण योजना का उद्देश्य प्रशंसनीय, लेकिन केवल दिल्ली के निवासियों के लिए इसकी प्रयोज्यता भेदभावपूर्ण है: दिल्ली हाईकोर्ट

    Delhi High Court

    दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को फैसला सुनाया कि मुख्यमंत्री अधिवक्ता कल्याण योजना का लाभ दिल्ली बार काउंसिल में पंजीकृत और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में रहने वाले सभी अधिवक्ताओं को दिया जाना चाहिए।

    न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह की खंडपीठ ने इस प्रकार निर्णय देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री की अधिवक्ता कल्याण योजना का उद्देश्य प्रशंसनीय है, हालांकि इसकी शर्त यह है कि यह केवल मतदाता पहचान पत्र वाले दिल्ली निवासियों पर लागू होगी, यह भेदभावपूर्ण और मनमानी है।

    पीठ ने कहा कि,

    योजना में शर्त यह है कि यह केवल दिल्ली में मतदाता पहचान पत्र वाले निवासियों के लिए लागू होगी, यह भेदभावपूर्ण और मनमानीपूर्ण है क्योंकि दिल्ली बार काउंसिल में नामांकित अधिवक्ताओं में से उप-वर्गीकरण, उद्देश्य प्राप्त करने के साथ कोई तर्कसंगत संबंध नहीं है।"

    अदालत उन याचिकाओं पर विचार कर रही थी, जिसमें बार काउंसिल ऑफ दिल्ली (बीसीडी) में नामांकित सभी लोगों को कल्याण योजना का लाभ देने का निर्देश देने की मांग की गई थी, चाहे उनके नाम राष्ट्रीय राजधानी की मतदाता सूची में हों या नहीं।

    कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियां

    कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया सर्टिफिकेट एंड प्लेस ऑफ प्रैक्टिस (वेरिफिकेशन) रूल्स, एडवोकेट्स एक्ट, 1961 और बार काउंसिल ऑफ दिल्ली रूल्स, 1963 को एक साथ पढ़ा, ताकि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि इनमें से किसी भी वैधानिक प्रावधान या नियम में अधिवक्ता का निवास स्थान का कोई महत्व नहीं दिया गया है।

    कोर्ट ने आगे कहा कि,

    "जहां तक अधिवक्ताओं का संबंध है, प्रधानता व्यवसाय के स्थान को दी जाती है न कि अधिवक्ता के निवास स्थान को। एक अधिवक्ता उस राज्य में पंजीकरण करने का हकदार है जहां वह प्राथमिक रूप से प्रैक्टिस करना चाहता है। इसका कारण यह है कि एक वकील का देश के किसी भी हिस्से में स्थायी निवास स्थान हो सकता है, लेकिन वह एक अलग भौगोलिक क्षेत्र में प्रैक्टिस करना चुन सकता है।"

    बेंच ने महत्वपूर्ण रूप से कहा कि,

    "वकील की आय के स्तर के आधार पर अधिवक्ता दिल्ली जा सकता है। यह सामान्य बात है कि सभी अधिवक्ता दिल्ली में आवास का खर्च नहीं उठा सकते हैं और इसलिए एनसीआर क्षेत्र / पड़ोसी क्षेत्रों में निवास करना चुनते हैं। हालांकि उनके प्रैक्टिस का चरित्र अनिवार्य रूप से दिल्ली में होने के कारण नहीं बदलेगा।"

    कोर्ट ने यह भी कहा कि बड़ी संख्या में अधिवक्ता जो मुख्य रूप से दिल्ली में प्रैक्टिस करते हैं, एनसीआर क्षेत्र/पड़ोसी क्षेत्रों में रहते हैं, जिनमें नोएडा, गुरुग्राम, सोनीपत, रोहतक, फरीदाबाद, गाजियाबाद, पंजाब के कुछ क्षेत्रों आदि शामिल हैं।

    अदालत ने आगे कहा कि,

    "वे इन क्षेत्रों से लगभग रोज दिल्ली आते हैं। ऐसे अधिवक्ता बीसीडी के साथ पंजीकृत होते हैं और अदालत परिसर के बार एसोसिएशन के सदस्य भी होते हैं जहां वे प्रैक्टिस करते हैं। वे दिल्ली में नागरिकों की सेवा करने और विवादों के निर्णय में सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे दिल्ली में प्रैक्टिस करके दिल्ली सरकार के राजस्व प्रवाह में भी योगदान देते हैं।"

    योजना के बारे में

    दिल्ली सरकार ने अधिवक्ताओं के कल्याण के लिए योजनाओं का प्रस्ताव करने के लिए 29 नवंबर, 2019 को 12 सदस्यों की एक समिति का गठन किया था और उक्त उद्देश्य के लिए वर्ष 2019-20 के लिए 50 करोड़ रुपये का वार्षिक परिव्यय बनाया गया था।

    समिति ने इसके अलावा, दिसंबर 2019 में, योजना निधि के उपयोग की दिशा में दिल्ली में अधिवक्ताओं के लिए समूह (सावधि) बीमा, समूह मेडी-दावा, ई-लाइब्रेरी और क्रेच सुविधा शुरू करने का प्रस्ताव रखा।

    दिल्ली सरकार की कैबिनेट ने इस तरह की योजना बनाने का प्रस्ताव इस शर्त के साथ पारित किया कि वही अधिवक्ताओं पर लागू होगा जो बार काउंसिल ऑफ दिल्ली में नामांकित हैं और दिल्ली की मतदाता सूची में भी हैं।

    इसी शर्त को चुनौती देते हुए, मार्च 2021 में दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की गई, जिसमें एनसीआर में रहने वाले, लेकिन दिल्ली में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों को योजना का लाभ देने की मांग की गई थी।

    केस का शीर्षक - गोविंद स्वरूप चतुर्वेदी और अन्य बनाम दिल्ली एनसीटी राज्य

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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