केंद्र सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के फ़ैसले पर नहीं ले रहा निर्णय, पी विल्सन ने राज्यसभा में उठाया हाईकोर्ट में जजों के रिक्त पदों का मामला

LiveLaw News Network

5 Feb 2020 3:42 PM GMT

  • केंद्र सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के फ़ैसले पर नहीं ले रहा निर्णय, पी विल्सन ने राज्यसभा में उठाया हाईकोर्ट में जजों के रिक्त पदों का मामला

    वरिष्ठ वक़ील और राज्यसभा सांसद पी विल्सन ने मंगलवार को शून्यकाल में हाइकोर्टों में जजों के रिक्त पदों की बढ़ती संख्या का मामला उठाया।

    विल्सन तमिलनाडु से डीएमके के राज्यसभा सांसद हैं। उन्होंने इस मामले को राज्यसभा में उठाते हुए कहा कि केंद्र सरकार जजों की नियुक्ति के लिए मेमरैंडम ऑफ प्रोसीजर को अंतिम रूप दे और इसे एक निश्चित समय के भीतर नियुक्ति की प्रक्रिया के हर स्तर को अपनी मंज़ूरी दे।

    उन्होंने कहा कि हाइकोर्टों में जजों की नियुक्ति की स्थिति बेहद ख़राब है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने 213 सुझाव दिए हैं जो केंद्र सरकार के पास लंबित हैं। हाईकोर्ट जजों के भारी अभाव के बीच काम कर रहा है।

    "देश के 25 हाइकोर्टों में कुल 1079 पदों की अनुमति है और अभी इसमें से लगभग एक-तिहाई, 401 पद ख़ाली हैं और आम जनता को इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है। समय आ गया है जब संसद को चाहिए कि वह कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच इस तनातनी को सुलझाया जाए।

    अधिकांश हाइकोर्टों में जजों की संख्या कुल आवंटित पदों से आधी है। अभी हाल ही में यह पता चला है कि सुप्रीम कोर्ट ने 230 नाम नियुक्तियों के लिए सुझाए हैं पर सरकार इन सुझावों पर कोई निर्णय नहीं ले रही है और इसका कारण क्या है यह सरकार ही जानती है," विल्सन ने कहा।

    पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजय किशन कौल और केएम जोसफ़ की पीठ ने भी हाइकोर्टों में रिक्त पदों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई थी जो कि 40% था। बाद में इसी पीठ ने दिसंबर 2019 में कहा कि सरकार को कॉलेजियम के सुझाव के छह माह के भीतर जजों की नियुक्ति कर दे।

    विल्सन ने कहा कि एनजेएसी मामलों के बाद हाइकोर्टों में जजों की नियुक्ति लगातार गिर रही है।

    उन्होंने कहा कि 2017 में 115 जजों की नियुक्ति की गई थी। 2018 में यह गिरकर 108 हो गया और 2019 में सिर्फ़ 65 जजों की ही नियुक्ति की गई।

    "विभिन्न हाइकोर्टों के मुख्य न्यायाधीश जजों के नामों का जो सुझाव भेजते हैं, महीनों तक केंद्र सरकार इसे सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को नहीं भेजती है। कई बार केंद्र सरकार हाईकोर्ट के इन सुझावों को बार बार बिना किसी कारण के वापस भेज देती है।

    इसी तरह सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के सुझाव राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजने में अनावश्यक देरी करती है।

    विल्सन ने कहा कि जिस तरह की स्थिति है वह देश के हित में नहीं है और अगर यह जारी रहता है तो देश भर में हाईकोर्ट के कार्यकलापों को पंगु बना देगा।

    इस तरह उन्होंने प्रधानमंत्री, क़ानून मंत्री और मंत्रिमंडल के मंत्रियों से अपील की कि वे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के सुझाए 230 नामों पर एक निश्चित समय सीमा के भीतर निर्णय लें और यह सुनिश्चत करें कि भविष्य में इस तरह के सुझावों पर निर्धारित समय के भीतर ले लिए जाएं।

    न्याय प्राप्त उन्होंने कहा,

    "नागरिकों का मौलिक अधिकार है। अगर रिक्तियां रहती हैं तो यह अधिकार प्रभावित होता है। न्यायपालिका में लोगों का विश्वास कम नहीं होना चाहिए और वे असंवैधानिक क़दम उठाने को मजबूर हो जाएँ क्योंकि मामलों के निर्णय पर अनावश्यक देरी हो रही है। "

    अक्टूबर 2015 में जस्टिस जेएस केहर, जस्टिस एमबी लोकुर, जस्टिस कुरीयन जोसफ़ और जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने 4:1 से 99वें संशोधन और एनजेएसी अधिनियम को असंवैधानिक क़रार दे दिया था। हालांकि अदालत ने कहा था कि जजों की नियुक्ति के लिए एमओपी में सुधार किए जाने की ज़रूरत है ताकि इसमें ज़्यादा पारदर्शिता और सक्षमता लाई जा सके।

    इस एमओपी में जजों की नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट के कॉलेजियम से शुरू होकर, सुप्रीम कोर्ट के सुझाव, केंद्र से इसका अनुमोदन से लेकर अंततः राष्ट्रपति की स्वीकृति तक हर स्तर पर समय सीमा निर्धारित किए जाने की उम्मीद की जाती है।

    एनजेएसी को रद्द किए जाने से नाराज़ सरकार ने जजों की नियुक्ति के बारे में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के सुझावों पर अंतिम फ़ैसला लेने में अनावश्यक देरी कर रही है।

    न्यायमूर्ति अकील कुरेशी को मुख्य न्यायाधीश बनाए जाने के बारे में उठा विवाद चर्चित रहा। यह आरोप लगाया गया कि केंद्र सरकार इस सुझाव पर जानबूझकर निर्णय को अवरुद्ध कर रही थी।

    विल्सन ने कहा कि जजों का रिटायर होना और उनकी पदोन्नति जारी है और स्थिति में हाइकोर्टों में जजों की संख्या और कम होती जाएगी।

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