केंद्र सरकार से सभी राज्यों की भाषाओं का सम्मान करने और स्थानीय भाषा में नोटिफिकेशन जारी करने की उम्मीद : मद्रास हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

13 Dec 2020 9:48 AM GMT

  • केंद्र सरकार से सभी राज्यों की भाषाओं का सम्मान करने और स्थानीय भाषा में नोटिफिकेशन जारी करने की उम्मीद : मद्रास हाईकोर्ट

    Madras High Court

    मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि केवल हिंदी और अंग्रेज़ी भाषाओं में अधिसूचना जारी करना पर्याप्त नहीं होगा बल्कि इन्हें स्थानीय भाषाओं में भी जारी किया जाना चाहिए। मद्रास उच्च न्यायालय ने हाल ही में टिप्पणी की कि केंद्र सरकार से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सभी राज्यों की भाषाओं का सम्मान करे और प्रक्रियाओं का अनुपालन करे।

    न्यायमूर्ति एन किरुबाकरन और न्यायमूर्ति बी पुगलेंधी की पीठ केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी गजट अधिसूचना (दिनांक 22.09.2020) को चुनौती देने वाली रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    याचिकाकर्ता की शिकायत यह थी कि इस गजट अधिसूचना को जारी करने से पहले केंद्रीय मंत्रालय द्वारा 21 फरवरी को एक मसौदा अधिसूचना जारी की गई थी जिसमें आम जनता से 60 दिनों की अवधि के भीतर आपत्तियां आमंत्रित की गई थीं, हालांकि, COVID 19 महामारी की स्थिति और सरकार द्वारा घोषित मानक परिचालन प्रक्रिया (एसओपी) को देखते हुए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण जनसुनवाई नहीं की गई ।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की अधिसूचना दिनांक 19-01-2009 के नियम 3 और भारत सरकार, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के दिनांक 19-04-2010 के नियम 3 के अनुसार स्थानीय भाषा में अधिसूचना का मसौदा स्थानीय लोगों को उपलब्ध नहीं कराया गया था।

    कोर्ट की टिप्पणी

    न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि संबंधित नियम और आधिकारिक ज्ञापन के अनुसार, जन सुनवाई के नोटिस के साथ-साथ पर्यावरणीय प्रभाव आकलन रिपोर्ट के मसौदे को एक प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक और एक क्षेत्रीय स्थानीय भाषा में दैनिक में आधिकारिक भाषा में विज्ञापित किया जाना चाहिए, जिससे स्थानीय लोग अधिसूचना के महत्व को समझ सकें और जवाब दे सकें।

    कोर्ट ने कहा,

    "केवल हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में अधिसूचना जारी करना 19.01.2009 की अधिसूचना की आवश्यकता और 19-04-2010 के आधिकारिक ज्ञापन का अनुपालन करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा, जब तक कि इसे स्थानीय भाषाओं में जारी नहीं किया जाता है।"

    कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की,

    "यह अदालत केंद्र सरकार से उम्मीद करती है कि वह राज्यों की स्थानीय भाषा में सभी अधिसूचनाएं जारी करे, जो हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं के अलावा प्राथमिक आवश्यकता है । अन्यथा, अधिसूचना का उद्देश्य सार्थक नहीं होगा । आखिरकार, भाषाएं लोगों के लिए संचार का माध्यम हैं ।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि वन्यजीव अभयारण्य के आकार को 0-10 किलोमीटर से घटाकर 0-3 किलोमीटर करने से निश्चित रूप से पर्यावरण प्रभावित होगा और बिना किसी जनसुनवाई के इसका प्रयास किया गया ।

    अदालत ने कहा ,

    "जानवरों की तरह, कई विदेशी पक्षी देश भर में विभिन्न अभयारण्यों में पलायन कर रहे हैं । पक्षियों, जानवरों और अन्य प्राणियों को दुनिया में रहने का पूरा अधिकार है। यह ब्रह्मांड न केवल मनुष्यों के लिए, बल्कि हर दूसरे प्राणी के लिए भी है। चूंकि यह हमारे पर्यावरण को प्रभावित करने वाला गंभीर मुद्दा है, इसलिए इस मामले पर गंभीरता से कार्रवाई की जानी चाहिए। "

    यह देखते हुए कि अधिसूचना स्थानीय लोगों तक उनकी भाषा में नहीं पहुंची, जैसा कि आवश्यक है। अदालत ने कहा कि "स्थानीय लोगों को अधिसूचना पर कोई प्रभावी आपत्ति करने से रोका गया है।

    अदालत ने कहा,

    "वर्तमान COVID-19 वायरस ने भी इस मुद्दे को बहुत जटिल बना दिया है, क्योंकि लोग बाहर नहीं आ सकते और अपनी आपत्तियां नहीं दे सके, इसलिए भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा सीजीडीएल-ई-23092020-221903 में जारी गजट अधिसूचना पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया जाएगा।"

    मामले की अगली सुनवाई 14 दिसंबर को होगी।

    केस टाइटल - एम सतीश बनाम भारत सरकार के सचिव [डब्ल्यूपी (एमडी) 2020 के नंबर 17277 और डब्ल्यू.एम.पी (एमडी) 2020 के नंबर 14467]

    आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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