जाति व्यवस्था निषिद्ध है, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार जातिसूचक डिस्प्ले बोर्ड लगाने के लिए स्वतंत्र हैं: मद्रास हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

8 March 2021 5:28 AM GMT

  • जाति व्यवस्था निषिद्ध है, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार जातिसूचक डिस्प्ले बोर्ड लगाने के लिए स्वतंत्र हैं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति (निजी) अपनी इच्छा के अनुसार डिस्प्ले बोर्ड या अन्य सामग्री को (भले ही उसमें जाति का उल्लेख हो) स्वतंत्र रूप से लगा सकते हैं, जब तक कि वे अश्लील या अपमानजनक नहीं हैं।


    मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति आर. हेमलता की खंडपीठ अमुथन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने प्रतिनिधित्व के आधार पर तमिलनाडु के शैक्षणिक संस्थानों और दुकानों और अन्य प्रतिष्ठानों के सामने इस्तेमाल होने वाले जातिसूचक नामों को हटाने के लिए प्रतिवादी को निर्देश देने की मांग की थी।

    संक्षेप में, याचिकाकर्ता ने शैक्षणिक संस्थानों, दुकानों और प्रतिष्ठानों के संबंध में इस्तेमाल किए जा रहे जातिसूचक नामों से संबंधित शिकायत को उठाया।

    शुरुआत में, न्यायालय ने कहा कि,

    "हालांकि याचिकाकर्ता की भावना की सराहना की जा सकती है, लेकिन अदालतों के लिए कुछ व्यक्तियों द्वारा की गई गतिविधियों को नियंत्रित करना मुश्किल है, जब तक कि ऐसी गतिविधियां सर्वथा अवैध या आपराधिक न हों।"

    कोर्ट ने टिप्पणी की कि,

    " संवैधानिक योजना के तहत जाति व्यवस्था को जारी रखने की चीजों की पूरी तरह से मनाही है। हालांकि, निजी व्यक्तियों के लिए डिसप्ले-बोर्ड या अन्य सामग्री को अपनी इच्छा के अनुसार अपनी पंसद से स्वतंत्रत रूप से लगा सकते हैं, जब तक कि वे अश्लील या अपमानजनक नहीं हैं।"

    बेंच ने अवलोकन में कहा कि न्यायालय के संज्ञान में लाया गया मामला सुनने योग्य नहीं है और इसे आगे नहीं बढ़ाया जा रहा है और इस तरह याचिका खारिज कर दी गई।

    उच्च न्यायालयों के अन्य उल्लेखनीय आदेश

    संबंधित समाचार में, एक ऑनर किलिंग मामले में आरोपियों द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज करते हुए, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2020 में कहा था कि भारत के लोग जातिवाद और ऑनर किलिंग जैसी सामाजिक बुराइयों के शिकार हैं।

    मद्रास उच्च न्यायालय ने 2019 में एक जोड़े को पुलिस सुरक्षा का आदेश देते हुए टिप्पणी की थी कि जाति व्यवस्था को जड़ से खत्म करने के लिए अंतर-जातीय विवाह समाज के लिए अच्छा है।

    इस मामले में, लड़का और लड़की अलग-अलग जाति के थे और परिवार के खिलाफ जा कर दोनों ने शादी की। शादी के बाद लड़की, लड़के के परिवार के साथ रहने लगी, लेकिन फिर भी लड़की के परिवार की ओर से उसको धमकियां की जाती थीं, फिर दोनों ने पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराई।

    फिर से 2019 में एक 'औपनिवेशिक विरासत' में आपराधिक कार्यवाही में जाति की स्थिति का उल्लेख करने की प्रथा समाप्त करने के लिए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा था कि जाति व्यवस्था अतार्किक है और संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ भी है।

    दिसंबर 2020 में, जेल मैनुअल के प्रस्तावित कदमों के बारे में पूछताछ करते हुए, राजस्थान उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि कैदियों को जाति के आधार पर शौचालय की सफाई आदि जैसे कामों में लिप्त होने के लिए मजबूर नहीं किया जाए और इसके साथ ही अंडर ट्रायल कैदी को जेल में ऐसे काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

    गुजरात उच्च न्यायालय ने जून 2020 में एक जोड़े का राहत प्रदान की थी, जाति आधारित मतभेदों के कारण वह जोड़ा एक पत्नी के परिवार से अलग हो चुका था। इस पर कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा था कि ऐसी घटनाओं का समाज पर काफी प्रभाव है।

    न्यायमूर्ति सोनिया गोकानी और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने कहा था कि,

    " जाति व्यवस्था देश के युवाओं के लिए अपने पंसद के जीवन साथी चुनने में बाधा पहुंचा रहा है और परिवार में वयस्कों के दिमाग में कठोरता मानवीय संबंधों के विभाजन का गंभीर कारण बन सकता है।"

    केस का शीर्षक - अमूथन बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य [W.P.(MD) No. 3570 of 2021]

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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