क्या आप कुछ घंटों के लिए ऑनलाइन क्लासेज़ की अनुमति नहीं दे सकते? कर्नाटक हाईकोर्ट ने वर्चुअल क्लास पर प्रतिबंध के ख़िलाफ़ याचिका पर राज्य से पूछा
LiveLaw News Network
24 Jun 2020 9:15 AM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार को बच्चों के किंडरगार्टन से 5वीं कक्षा तक राज्य भर में सभी बोर्ड के वर्चुअल क्लास पर प्रतिबंध लगाने और स्कूलों को इसके लिए फ़ीस वसूलने से रोकने के ख़िलाफ़ याचिका पर राज्य सरकार से शुक्रवार तक जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति नटराज रंगस्वामी की पीठ ने इस याचिका पर कोई भी अंतरिम राहत देने से मना कर दिया। याचिका राज्य सरकार के ऑनलाइन क्लास पर प्रतिबंध लगाने के ख़िलाफ़ है।
लेकिन इसके बावजूद पीठ ने राज्य सरकार से पूछा कि क्या इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना वांछनीय है।
अदालत ने कहा,
"विशेषज्ञ समिति को इसके बारे में रिपोर्ट तैयार करने में थोड़ा वक़्त लगेगा और फिर इसके बाद इसे राज्य सरकार को भेजा जाएगा जो इस पर विचार करने में वक्त लेगी। तब तक क्या आप कुछ घंटों के लिए ऑनलाइन क्लासेज़ की अनुमति नहीं दे सकते, अगर सरकार को ऑनलाइन क्लास चलाने में सिद्धांततः कोई आपत्ति नहीं है?"
पीठ ने यह बात तब कही जब सरकारी वक़ील विक्रम हुईलगोल ने अदालत से कहा कि राज्य शिक्षा के अधिकार से इनकार नहीं कर रहा है, लेकिन कुछ सुझाव तैयार किए जाने हैं, कुछ विनियमन चाहिए क्योंकि बच्चों को आठ घंटे तक स्क्रीन के सामने बैठने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
इस बारे में मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान के राष्ट्रीय संस्थान (निमहंस) के विचारों का उल्लेख किया गया जिसने इस तरह के छोटे बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लासेज़ और अतिरिक्त स्क्रीन लगाने के ख़िलाफ़ अपना मत दिया था।
राज्य के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग ने कर्नाटक शिक्षा अधिनियम की धारा 7 के तहत 15 जून को जो आदेश दिया था उसके तहत ऑनलाइन क्लासेज़ को प्रतिबंधित कर दिया गया है। आदेश में यह भी कहा गया है कि वरिष्ठ अकादमिक प्रो. एमके श्रीधर के नेतृत्व में एक समिति गठित की गई है जो कक्षा 6 से 10 तक के बच्चों को उनकी उम्र के हिसाब से ऑनलाइन शिक्षा देने के बारे में वैज्ञानिक तरीक़ों का सुझाव देगा।
एक याचिककर्ता के वक़ील प्रदीप नायक ने कहा कि इस समिति को जो कार्य सौंपा गया है उससे इस मसले का हल नहीं होता कि एलकेजी से कक्षा 5 तक के छात्रों के लिए ऑनलाइन क्लासेज़ को रोका जाए कि नहीं। फिर, राज्य का क़दम स्पष्ट रूप से मनमाना है और यह शिक्षा प्राप्त करने के छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने इस बात को नज़रअन्दाज़ कर दिया है कि स्कूलों, शिक्षकों, पेरेंट्स और छात्रों ने ऑनलाइन शिक्षा के नए माध्यम में भारी मात्रा में अपना समय और संसाधन खर्च किया है ताकि महामारी के दौरान उनके बच्चों की शिक्षा में कोई रुकावट न आए और उलटे ऑनलाइन शिक्षा को प्रतिबंधित कर दिया है।
इस दलील के विरोध में हुईलगोल ने कहा,
"15 दिन का समय समिति को दिया गया है और यह रिपोर्ट शीघ्र ही आ जाएगी"। उन्होंने इस बारे में अदालत को बताने के लिए शुक्रवार तक का समय माँगा। अदालत ने राज्य को समय देते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में ऑनलाइन व्यवस्था की पहुँच के बारे में संदेह व्यक्त किया। कोर्ट ने कहा, "ग्रामीण क्षेत्रों में ऑनलाइन शिक्षा की सीमा है। राज्य को इसे दूर करना होगा"। अदालत ने अंत में कहा कि इस मसले का हल अवश्य ही ढूँढा जाना चाहिए अन्यथा इससे बहुत ही अव्यवस्था की स्थिति पैदा हो जाएगी।
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