बॉम्बे हाईकोर्ट ने शाहिद आज़मी मर्डर केस की सुनवाई पर लगी रोक हटाई, ट्रांसफर के लिए अभियुक्त की याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

12 Feb 2023 2:30 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने शाहिद आज़मी मर्डर केस की सुनवाई पर लगी रोक हटाई, ट्रांसफर के लिए अभियुक्त की याचिका खारिज की

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने वकील एडवोकेट शाहिद आज़मी की 13वीं पुण्यतिथि से कुछ दिन पहले उनकी हत्या के मुकदमे को स्थानांतरित करने की याचिका खारिज कर दी।

    जस्टिस प्रकाश डी नाइक ने आरोपी हसमुख सोलंकी द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा,

    " मुझे इस निष्कर्ष पर आने का कोई कारण नहीं मिला कि विद्वान न्यायाधीश आवेदक के खिलाफ पक्षपाती रहे। आवेदक के लिए यह आशंका करने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि विद्वान न्यायाधीश के समक्ष उसकी निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो पाएगी, इसलिए कार्यवाही को किसी अन्य सत्र न्यायाधीश को स्थानांतरित करने के लिए कोई मामला नहीं बनता है।"

    आज़मी को निःस्वार्थ कानूनी सहायता का चेहरा होने और कई ऐसे लोगों का प्रतिनिधित्व करने के लिए जाना जाता था, जिनके के लिए वे मानते थे कि उन्हें आतंकवादी मामलों में झूठा फंसाया गया। तेरह साल पहले 11 फरवरी, 2010 को उनके कार्यालय में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। वह 33 वर्ष के थे।

    हालांकि इस नए आदेश के बाद आज़मी के चार कथित हमलावरों - विनोद विचारे, पिंटू ढगले, देवेंद्र जगताप और हसमुख सोलंकी के खिलाफ मुकदमा आखिरकार छह महीने बाद फिर से शुरू होगा।

    अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं है कि ट्रायल कोर्ट आवेदक के खिलाफ पक्षपाती है और उसे निष्पक्ष सुनवाई नहीं मिलेगी। कोर्ट ने कहा, "जांच ट्रांसफर के लिए कोई मामला नहीं बनता है।"

    अभियुक्त हसमुख सोलंकी ने पूर्वाग्रह का आरोप लगाते हुए मुकदमे को दूसरे न्यायाधीश को स्थानांतरित करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने सत्र अदालत के प्रधान न्यायाधीश के 10 अगस्त, 2022 के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें शुरू में उनके अनुरोध को खारिज कर दिया गया था।

    हाईकोर्ट के समक्ष सोलंकी की याचिका को पिछले साल सितंबर में आदेश के लिए सुरक्षित रखा गया था, हालांकि इस सप्ताह के शुरू में ही एक आदेश पारित किया गया और आवेदन खारिज कर दिया गया।

    मामले में अब तक अभियोजन पक्ष के ग्यारह गवाहों का परीक्षण किया जा चुका है और लगभग आठ और गवाहों का परीक्षण किया जाना बाकी है।

    2014 में इस मामले में कथित छोटा राजन गैंगस्टर संतोष शेट्टी को बरी कर दिया गया था।

    आज़मी ने अदालत में जुलाई 2006 के ट्रेन विस्फोटों के आरोपी का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) के एक प्रावधान की वैधता को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने इसके लिए कानूनी खर्च वहन करने के लिए एक ट्रस्ट जमीयत-उलमा-ए-हिंद को राज़ी किया।

    ट्रस्ट के साथ उनका जुड़ाव 26/11 के मुकदमे के दौरान जारी रहा, जहां उन्होंने फहीम अंसारी और सबाउद्दीन अहमद का प्रतिनिधित्व किया, जिन पर आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल किए गए नक्शे तैयार करने का आरोप लगाया गया था। शाहिद की दलीलों के कारण 2010 में दोनों आरोपियों को बरी कर दिया गया, जिसे अंततः सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा।

    11 फरवरी, 2010 को अपनी अंतिम सांस तक शाहिद ने उन लोगों के लिए अपना काम करना जारी रखा, जिनके बारे में उनका मानना ​​​​था कि उन्हें जांच एजेंसियों द्वारा झूठा फंसाया गया। कानूनी सलाह लेने की आड़ में उनके कार्यालय में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। .

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