बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंत्री नवाब मलिक को समीर वानखेड़े और एनसीबी के खिलाफ टिप्पणी करने से रोकने की मांग वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार किया

LiveLaw News Network

27 Oct 2021 9:21 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंत्री नवाब मलिक को समीर वानखेड़े और एनसीबी के खिलाफ टिप्पणी करने से रोकने की मांग वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार किया

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री नवाब मलिक के खिलाफ एक जनहित याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार किया।

    याचिका में नवाब मलिक को नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के अधिकारियों या इसके क्षेत्रीय निदेशक समीर वानखेड़े के खिलाफ टिप्पणी करने से रोकने की मांग की गई है।

    मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की पीठ के समक्ष एक व्यवसायी और मौलाना होने का दावा करने वाले एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका का उल्लेख तत्काल सुनवाई के लिए किया गया।

    अदालत ने याचिकाकर्ता से कहा कि या तो दिवाली की छुट्टी के बाद तक इंतजार करें या अवकाश पीठ का रुख करें।

    कोर्ट ने आगे यह कहते हुए अवकाश पीठ को स्थानांतरित करने की स्वतंत्रता देने से इनकार कर दिया कि यह किसी भी पीठ के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं करेगा और याचिकाकर्ता को संबंधित पीठ को संतुष्ट करने के लिए कहा।

    अधिवक्ता अशोक सरावगी के माध्यम से दायर याचिका में आगे मलिक को एजेंसी का मनोबल गिराने के इरादे से टिप्पणी करने से परहेज करने का निर्देश देने की मांग की गई है।

    इसके साथ ही जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े और उनके परिवार के सदस्यों पर भी किसी भी प्रकार से टिप्पणी नहीं किए जाने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है।

    याचिका में कहा गया है,

    "यह न्यायालय उचित रिट, आदेश और निर्देश जारी करते हुए, प्रतिवादी संख्या 2 को किसी भी तरह से एनबीसी के रूप में जानी जाने वाली एजेंसी के अधिकारी और/या किसी अन्य जांच एजेंसी को मनोबल गिराने के इरादे से टिप्पणी करने पर रोक लगाए। उक्त एजेंसी जिसमें नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की एजेंसी और उक्त अधिकारी के अधिकारी और/या परिवार के सदस्य जैसे समीर वानखेड़े शामिल हैं।"

    जनहित याचिका में दावा किया गया कि मलिक ने वानखेड़े और उसकी बहन के खिलाफ 'युद्ध' शुरू कर दिया है।

    आगे आरोप लगाया गया है कि मलिक केवल वानखेड़े और मामले की जांच कर रही उनकी टीम का मनोबल गिराने के लिए बयान दे रहे हैं।

    याचिका में आगे लिखा गया है कि अगर महाराष्ट्र राज्य के एक जिम्मेदार मंत्री को खुले तौर पर ऐसे अधिकारियों की आलोचना करने और बदनाम करने की अनुमति दी जाती है, तो जाहिर है उनका नैतिक पतन होगा। साथ ही एक अधिकारी को हतोत्साहित करने के लिए प्रेस को एकजुट नहीं किया जा सकता है।न

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