बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुनियादी संरचना सिद्धांत, कॉलेजियम सिस्टम पर टिप्पणी को लेकर उपराष्ट्रपति, कानून मंत्री को पद से हटाने की मांग वाली याचिका खारिज की

Brij Nandan

9 Feb 2023 7:43 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुनियादी संरचना सिद्धांत, कॉलेजियम सिस्टम पर टिप्पणी को लेकर उपराष्ट्रपति, कानून मंत्री को पद से हटाने की मांग वाली याचिका खारिज की

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने न्यायपालिका की 'कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System)' की लगातार सार्वजनिक आलोचना करने और बुनियादी ढांचे के सिद्धांत के खिलाफ टिप्पणी करने को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कानून मंत्री किरेन रिजिजू को पद से हटाने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की।

    याचिकाकर्ता - बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन का दावा था कि दोनों ने भारत के संविधान में विश्वास की कमी व्यक्त करते हुए अपने आचरण के माध्यम से उपराष्ट्रपति और केंद्रीय मंत्रिमंडल के मंत्री के संवैधानिक पदों को धारण करने से खुद को अयोग्य बना दिया है।

    इसलिए याचिकाकर्ताओं ने इस आशय की घोषणा की मांग की है और कानून मंत्री और उपराष्ट्रपति को अंतरिम रूप से कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकने की भी मांग की है।

    याचिकाकर्ता ने न्यायपालिका पर हमले को संविधान पर सीधा हमला बताया है और कई उदाहरण सुनाए हैं।

    एसीजे एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस संदीप मार्ने की खंडपीठ ने कहा,

    "अलग से दर्ज किए जाने वाले कारणों से जनहित याचिका खारिज की जाती है।"

    अदालत ने याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट अहमद आब्दी और प्रतिवादी की ओर से एएसजी अनिल सिंह को सुना।

    एएसजी ने आरोपों का खंडन किया और कहा कि जनहित याचिका एक पब्लिसिटी स्टंट है और ये सुनवाई योग्य नहीं है। संवैधानिक पदाधिकारियों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 67, 102, 103 के तहत ही हटाया जा सकता है, न्यायालय द्वारा नहीं।

    सुनवाई के दौरान एडवोकेट आब्दी ने कहा कि न्यायपालिका पर हमले बड़े पैमाने पर आबादी को प्रभावित कर रहे हैं।

    उन्होंने कहा,

    "हम यहां बड़ी पीड़ा के साथ आए हैं। जो कुछ हो रहा है वह पब्लिक डोमेन में है। हम बहस के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन यह संसद में होना चाहिए, अदालत में या सड़कों पर? ये लोगों की नजर में कोर्ट को नीचा दिखा रहे हैं। क्या यही है उनका आचरण? यह न केवल संविधान के लिए अपमानजनक है बल्कि यह बड़े पैमाने पर जनता को प्रभावित कर रहा है। यह अराजकता की ओर ले जाएगा। यदि वे गंभीर हैं तो उन्हें संसद में एक विधेयक पेश करना चाहिए जो उच्चतम न्यायालय से संपर्क करे।“

    एएसजी अनिल सिंह ने तर्क दिया,

    “यह एक तुच्छ याचिका है। कोर्ट के समय की बर्बादी है। एकमात्र उद्देश्य प्रचार प्राप्त करना है। अदालत के सामने आने से पहले याचिका अखबार में पहले से ही थी। कानून मंत्री कह रहे हैं संविधान का पालन करो। संविधान का अपमान करने का सवाल कहां है? उन्होंने बार-बार कहा है कि संविधान का सम्मान और पालन किया जाना चाहिए।"

    याचिका में क्या कहा गया था?

    याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि 2021-2023 के बीच वे "कॉलेजियम प्रणाली" पर लगातार हमला करते रहे हैं, जिसके द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है। साथ ही केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य पर हमला करते रहे हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 7:6 के बहुमत से कहा था कि संविधान की मूल संरचना में संशोधन या छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है।

    आलोचना के कई उदाहरणों को सूचीबद्ध करने के बाद, दलील में कहा गया है कि संवैधानिक पदाधिकारियों को भारत के संविधान के प्रति आस्था और निष्ठा रखनी चाहिए, जिसकी पुष्टि उन्होंने पद की शपथ लेते समय की थी। "तथ्यों के बावजूद, उन्होंने अपने आचरण और सार्वजनिक रूप से दिए गए अपने बयानों से संविधान और सुप्रीम कोर्ट में विश्वास की कमी दिखाई है।"

    सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत की और 1998 में राष्ट्रपति के निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम को पांच सदस्यीय निकाय के रूप में विस्तारित किया, जिसमें CJI और उनके चार वरिष्ठ सहयोगी शामिल होते हैं। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने तीसरे न्यायाधीश के मामले में फैसले की फिर से पुष्टि की और 99वें संशोधन को रद्द कर दिया।



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