'बम विस्फोट करना आधिकारिक कर्तव्य नहीं' : बॉम्बे हाईकोर्ट ने मालेगांव ब्लास्ट मामले में आरोप मुक्त करने की मांग वाली लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित की याचिका खारिज की

Sharafat

2 Jan 2023 6:07 AM GMT

  • बम विस्फोट करना आधिकारिक कर्तव्य नहीं : बॉम्बे हाईकोर्ट ने मालेगांव ब्लास्ट मामले में आरोप मुक्त करने की मांग वाली लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित की याचिका खारिज की

    Bombay High Court Dismisses Lt Col Prasad Purohit's Plea For Discharge In Malegaon Blast Case

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को मालेगांव ब्लास्ट मामले में मुख्य आरोपी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें 2008 के मालेगांव विस्फोट के मामले में आरोप मुक्त करने की मांग की गई थी। मालेगांव ब्लास्ट में छह लोग मारे गए थे और 101 से अधिक घायल हुए थे।

    जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस प्रकाश नाइक की खंडपीठ ने यह आदेश सुनाया।

    अदालत ने कहा,

    "बम विस्फोट करना आधिकारिक कर्तव्य नहीं है।"

    पुरोहित की अपील का प्राथमिक आधार भारतीय सेना से सीआरपीसी की धारा 197(2) के तहत मामले में मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी की कमी था। हालांकि, राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने तर्क दिया कि किसी मंजूरी की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसके कार्य उसके कर्तव्य के निर्वहन में नहीं थे।

    पुरोहित को 2008 में गिरफ्तार किया गया था और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम और कई अन्य अपराधों के प्रावधानों के तहत आरोप लगाया गया था। मामले में भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और पांच अन्य भी आरोपी हैं।

    सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी के नौ साल बाद 2017 में पुरोहित को जमानत दे दी थी।

    एनआईए का मामला यह है कि इस्लामिक कैलेंडर के पवित्र महीने रमजान में विस्फोट करने वाली एलएमएल फ्रीडम मोटरसाइकिल ठाकुर के नाम पर रजिस्टर्ड थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, सेना अधिकारी होने के बावजूद पुरोहित ने 2007 में भारत को एक हिंदू राष्ट्र में बदलने के उद्देश्य से अभिनव भारत संगठन बनाया।

    अभियोजन पक्ष ने चार्जशीट में कहा,

    “वह निर्वासन में सरकार बनाना चाहता था। वह भारत के संविधान से असंतुष्ट था और अपना संविधान तैयार करना चाहते था।"

    एजेंसी ने आगे आरोप लगाया कि एक बैठक में बम विस्फोट के बारे में चर्चा हुई थी और पुरोहित कश्मीर से आरडीएक्स खरीदने के लिए जिम्मेदार था।

    बहस

    पुरोहित की याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत ने सवाल किया कि पुरोहित की याचिका पर सुनवाई क्यों की जानी चाहिए जब सुनवाई अग्रिम चरण में पहुंच चुकी है। 295 गवाहों की जांच की गई, जिनमें से 30 को पक्षद्रोही घोषित किया गया।

    पीठ ने पूछा था,

    ''क्या आप घड़ी को वापस सेट कर सकते हैं?'' इसके बाद सह-आरोपी ठाकुर और समीर कुलकर्णी, जिन्होंने डिस्चार्ज की मांग की थी, उन्होंने अपनी याचिका वापस ले ली थी।

    पुरोहित ने अन्य याचिकाएं भी वापस ले लीं, लेकिन डिस्चार्ज अपील दायर की।

    पुरोहित की ओर से पेश एडवोकेट नीला गोखले और विरल बाबर ने कहा कि जब ट्रायल कोर्ट द्वारा चार्जशीट का संज्ञान लेना दोषपूर्ण है तो उन्हें पूरे ट्रायल से नहीं गुजरना होगा। वकील ने तर्क दिया कि वह एक सेना अधिकारी था और सैन्य खुफिया विभाग के एक भाग के रूप में अपना कर्तव्य निभा रहा था।

    वकील ने सेना से प्राप्त कुछ दस्तावेजों का भी हवाला दिया। आरडीएक्स के बारे में गोखले ने दावा किया कि एक गवाह ने कहा कि उसे आतंकवाद विरोधी दस्ते द्वारा बंदूक की नोक पर बयान देने के लिए कहा गया था। एनआईए द्वारा जांच अपने हाथ में लेने से पहले एटीएस मामले की जांच कर रही थी।

    2014 में एनआईए द्वारा चार्जशीट दायर करने के बाद कई आरोपियों के खिलाफ आरोप और मकोका को मामले से हटा दिया गया था।

    एडवोकेट संदेश पाटिल ने प्रस्तुत किया कि मुकदमा एक उन्नत चरण में है, इसलिए अब एकमात्र आदेश मामले में सजा या दोषमुक्ति का होना चाहिए और याचिका को खारिज कर दिया जाना चाहिए। पाटिल ने कहा कि सेना द्वारा कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी से पेश किए गए दस्तावेज हाईकोर्ट के समक्ष अस्वीकार्य हैं।

    इसके अलावा, उन्होंने सेना के एक अधिकारी के पत्र की ओर इशारा किया, जो हाल ही में मुकदमे में पेश हुए थे। मार्च 2010 के पत्र के अनुसार, पाटिल ने कहा, गवाह ने एटीएस को लिखा था कि अभिनव भारत की कथित घुसपैठ के बारे में पुरोहित से कोई आधिकारिक संचार नहीं होने की पुष्टि की थी।

    अदालत ने हस्तक्षेपकर्ता निसार अहमद हाजी सैयद बिलाल द्वारा दायर लिखित दलीलों को भी रिकॉर्ड में लिया, जिन्होंने विस्फोट में अपने बेटे को खो दिया था। उनके वकील ने तर्क दिया कि एनआईए की धारा 21 तथ्यों और कानून दोनों पर एक विशेष अदालत के एक अंतर्वर्ती आदेश से हाईकोर्ट में अपील करने पर रोक लगाती है।

    तर्क दिया गया कि विशेष अदालत ने अपने आदेश में जांच अदालत के दस्तावेजों पर पहले ही विचार कर लिया था।

    पुरोहित पर हत्या, स्वेच्छा से खतरनाक हथियारों से गंभीर चोट पहुंचाने, धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और सद्भाव के खिलाफ कार्य करने का आरोप लगाया गया है। पुरोहित के खिलाफ आर्म्स एक्ट, द इंडियन एक्सप्लोसिव सब्सटेंस एक्ट और गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत मामले दर्ज हैं।

    Next Story