बॉम्बे हाईकोर्ट ने सीएए को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट जाने को कहा

LiveLaw News Network

22 Jan 2020 2:56 PM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने सीएए को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट जाने को कहा

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को उर्मिला कोवे द्वारा दायर नागरिकता संशोधन अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। अदालत ने याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट जाने को कहा।

    न्यायमूर्ति आरके देशपांडे और नागपुर पीठ के न्यायमूर्ति एबी बोरकर की खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही उक्त अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने को कहा है।

    बुधवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति अब्दुल नज़ीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने केंद्र को नए अधिनियमित अधिनियम को चुनौती देने वाली 140 याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट को इस अधिनियम के खिलाफ किसी भी याचिका पर सुनवाई करने से रोक दिया।

    उक्त जनहित याचिका मंगलवार को दायर की गई थी और याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अश्विन इंगोले पेश हुए थे। भारत संघ के लिए अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल यूएम औरंगाबादकर और राज्य के लिए एजीपी एएस फुलझेले पेश हुए थे।

    एएसजी औरंगाबादकर और एजीपी फुलझेले ने पीठ को सूचित किया कि शीर्ष अदालत पहले से ही 12 दिसंबर 2019 को बनाए गए कानून की चुनौतियों की सुनवाई कर रही है। पीठ ने कहा,

    "एएसजी और एजीपी ने हमारे संज्ञान में लाया है कि इस अधिनियम को चुनौती देने वाली लगभग 100 याचिकाएं शीर्ष अदालत के समक्ष दायर की गई हैं, जो वर्तमान रिट याचिका में चुनौती का विषय है और मामलों की सुनवाई हो रही है।

    इसे देखते हुए, औचित्य के आधार पर, हम इस जनहित याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हैं। यदि याचिकाकर्ता की इच्छा है, तो वह सर्वोच्च न्यायालय जा सकते हैं। "

    उक्त जनहित याचिका में कहा गया है-

    "अधिनियम मनमाना, अनुचित, तर्कहीन और प्रत्येक नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना यह कहती है कि राज्य का कोई धर्म नहीं है और नागरिकों के बीच कोई भेदभाव नहीं हो सकता। यह धर्मनिरपेक्ष प्रकृति का उल्लंघन है। भारत के संविधान का और भेदभावपूर्ण है।"

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