एससी/एसटी एक्ट के तहत अग्रिम जमानत मंजूर करने पर रोक आरोपी को आत्मसमर्पण/ या गिरफ्तारी के बाद नियमित जमानत के हक से वंचित नहीं करती: केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

4 July 2020 12:20 PM GMT

  • एससी/एसटी एक्ट के तहत अग्रिम जमानत मंजूर करने पर रोक आरोपी को आत्मसमर्पण/ या गिरफ्तारी के बाद नियमित जमानत के हक से वंचित नहीं करती: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अग्रिम जमानत पर रोक का प्रावधान संबंधित आरोपी को नियमित जमानत के हक से तब वंचित नहीं करता, जब उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है और कोर्ट के समक्ष पेश किया जाता है या उसने आत्मसमर्पण कर दिया हो या वह कोर्ट के समक्ष पेश हुआ हो।

    न्यायमूर्ति नारायण पिशराडी एससी/एसटी अधिनियम के तहत आरोपी बनाये गये एक व्यक्ति की सत्र अदालत के आदेश के खिलाफ अपील पर विचार कर रहे थे। सत्र अदालत ने आरोपी की अग्रिम जमानत भी खारिज कर दी थी।

    कोर्ट ने कहा कि सत्र अदालत ने यह कहकर सही फरमाया है कि एससी/एसटी एक्ट की धाराओं 18 और 18ए(दो) के तहत प्रतिबंध का प्रावधान आरोपी को अग्रिम जमानत मंजूर करने से निषिद्ध करता है। लेकिन सत्र न्यायाधीश का यह कहना कि यह ऐसा मामला है जिसमें आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की आवश्यकता होगी, तथ्य से परे है।

    इस संदर्भ में कोर्ट ने कहा :

    "लेकिन यह तथ्य कि कोई व्यक्ति एससी/एसटी एक्ट के तहत अपराध का आरोपी अग्रिम जमानत का हकदार नहीं है, इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि उसे नियमित जमानत का भी अधिकार नहीं है।

    इस अधिनियम के तहत अपराधों के मामले में गिरफ्तारी-पूर्व जमानत के विशेषाधिकार से हमेशा सिर्फ इसलिए इनकार कर दिया जाता है क्योंकि संबंधित अधिनियम की धाराएं 18 और 18ए कोर्ट को राहत देने से निषिद्ध करती हैं।

    इस कानून के तहत पंजीकृत मामलों में आरोपी की हिरासत में पूछताछ की जरूरत नहीं भी हो सकती है और आरोपी के कानून से भागने का कोई जोखिम भी नहीं हो सकता।

    लेकिन ऐसे मामलों में कानून के उपरोक्त प्रावधानों के तहत प्रतिबंध की वजह से कोर्ट आरोपी के पक्ष में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 के तहत राहत प्रदान करने के विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर सकता है। ऐसे मामलों में, यदि आरोपी गिरफ्तार हो जाता है और कोर्ट के समक्ष पेश कर दिया जाता है या जब वह आत्मसमर्पण कर देता है या अदालत के समक्ष पेश हो जाता है, तो विशेष कोर्ट को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437 के तहत अरोपी को जमानत मंजूर करने से कोई भी नहीं रोकता।

    कानून की धारा 18 और 18ए के तहत प्रतिबंध का प्रावधान विशेष अदालत द्वारा सीआरपीसी की धारा 437 के तहत नियमित जमानत याचिका पर विचार करते वक्त अवरोधक नहीं बनेगा।"

    यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने अपील खारिज कर दी।

    केस का नाम : जूली सी. जे. बनाम केरल सरकार

    केस नं: क्रिमिनल अपील संख्या 450/2020

    कोरम : न्यायमूर्ति नारायण पिशराडी

    वकील : एडवोकेट बी सुरजीत, सीनियर पीपी संतोष पीटर


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