कानूनी समझ की कमी के कारण न हों अपराध इसलिए युवाओं को POCSO एक्ट के बारे में जागरूक करने की ज़रूरत: गुजरात हाईकोर्ट
SPARSH UPADHYAY
2 July 2020 3:54 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने सोमवार (29 जून) को एक मामले में, यह टिपण्णी की कि युवा लड़कों को POCSO अधिनियम (यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम) के प्रावधानों के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है, जिससे इन युवाओं को गलतियाँ करने से रोका और गंभीर अपराधों को करने से बचाया जा सके।
न्यायमूर्ति सोनिया गोकानी एवं न्यायमूर्ति एन. वी. अंजरिया की पीठ ने यह टिप्पणी उस मामले में की जहाँ एक नाबालिग लड़की (किशोरी) एक नाबालिग लड़के (किशोर) के साथ रह रही थी और किशोरी को लेकर एक याचिका, अदालत के सामने दाखिल की गयी थी। इस दौरान पीठ ने यह भी कहा कि कानून की समझ नहीं होने के कारण, नाबालिगों पर पोक्सो अधिनियम के तहत गंभीर आरोप लग जाते हैं।
क्या था यह मामला?
दरअसल, इस मामले में एक पिता द्वारा अपनी नाबालिग बेटी (किशोरी) जोकि कथित रूप से एक नाबालिग लड़के (किशोर) के साथ चली गयी थी, उसको लेकर एक याचिका दायर गुजरात हाईकोर्ट में दाखिल की गयी थी।
अदालत के पूर्व के आदेशों में लड़की को ढूंढ कर अदालत के समक्ष लाने के आदेश दिए गए थे, इस सम्बन्ध में उच्च स्तर के पुलिस अधिकारीयों को अदालत द्वारा जरुरी निर्देश भी दिए गए थे हालाँकि लड़की को ढूँढा नहीं जा सका था।
अंततः सोमवार (29 जून) को अदालत के समक्ष, पुलिस अधीक्षक मेहसाणा द्वारा यह बताया गया कि किशोरी को, प्रतिवादी संख्या 5 (नाबालिग लड़का) के निवास स्थान से नहीं बल्कि उसके किसी सम्बन्धी के घर पर पाया गया और वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उसे अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
अदालत ने यह पाया कि किशोरी ने अपने माता-पिता के पास जाने को लेकर अनिच्छा जताई, हालाँकि उसकी इच्छा की कोई प्रासंगिकता नहीं है और इस बात को अदालत ने अपने आदेश में रेखांकित किया।
इसके पश्च्यात, अदालत ने साथ ही यह भी देखा कि लड़की को उसके माता-पिता के पास जाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उसके अनुसार, उसके माता-पिता ने उसके बालिग़ होने से पहले उसकी सगाई/शादी (engagement) कहीं और करने की कोशिश की, जिससे वह अपनी इच्छा और अपनी मर्जी के व्यक्ति से शादी करने में सक्षम न हो सके। लड़की ने 10वीं कक्षा उत्तीर्ण नहीं की है और वर्तमान में वह आगे की पढ़ाई करने की इच्छुक नहीं है।
किशोरी को महिला संरक्षण गृह में रखने का अदालत ने दिया आदेश, दिए गए महत्वपूर्ण निर्देश
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि वह किशोरी माता-पिता से जुड़ने/साथ रहने के लिए तैयार नहीं है, अदालत ने यह आदेश दिया कि इस स्तर पर, किशोरी को महिला संरक्षण गृह, पाटन में रखा जाएगा, जहां उसे शुरुआत में 8 सप्ताह की अवधि के लिए रखा जाएगा।
अदालत ने आगे यह आदेश दिया कि
"उसके शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का अच्छा ख्याल रखा जाए। पुलिस अधीक्षक, मेहसाणा भी उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महिला संरक्षण गृह, पाटन के साथ समन्वय करेंगे। वह उसे आगे के अध्ययन के लिए और बेहतर भविष्य के लिए अपने जीवन का प्रभार लेने के लिए प्रेरित करने के लिए परामर्शदाताओं के पास भेजने का प्रयास भी करेंगे। उन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, जिसके तहत किशोरी को महिला सुरक्षा गृह भेजा जा रहा है, पुलिस अधीक्षक मेहसाणा की ओर से किशोरी के लिए कपड़ों और बुनियादी आवश्यकताओं की व्यवस्था की जाए।"
हालांकि, आदेश में यह कहा गया कि महिला संरक्षण गृह, पाटन में वह कुछ उत्पादक और रचनात्मक गतिविधियों में लगी रहेगी और आगे के अध्ययन के लिए प्रेरित होगी या अपने भविष्य के लिए किसी प्रकार का व्यावसायिक प्रशिक्षण लेगी। उसे आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयास किए जाएंगे।
आगे अदालत ने माता-पिता को किशोरी से मिलने की अनुमति देते हुए कहा,
"माता-पिता, अगर महिला संरक्षण गृह में बेटी से मिलने के इच्छुक हैं, तो महिला संरक्षण गृह के एक पदाधिकारी की उपस्थिति में ऐसा होने दें और माता-पिता को यह स्पष्ट समझाया जाए कि किशोरी को उसकी इच्छा और मर्जी के विरुद्ध कुछ भी करने के लिए किसी भी तरह से मजबूर नहीं किया जायेगा।
माता-पिता को पुलिस अधीक्षक, मेहसाणा के समक्ष भी यह वचन देना होगा कि वह 18 वर्ष की आयु पूरी होने से पहले उसकी सगाई करने का कोई प्रयास नहीं करेंगे, भले ही वह माता-पिता के साथ रहने के लिए सहमत हो, और यदि उसकी हिरासत अंततः उन्हें सौंप दी जाए।"
'POCSO अधिनियम को लेकर जागरूकता लाई जाए'
अदालत ने इस बात पर गौर किया कि प्रतिवादी संख्या 5 (नाबालिग लड़का/किशोर जिसके साथ किशोरी के कथित रूप से जाने का आरोप है) स्वयं एक नाबालिग है और उसका अभी तक पता नहीं चल पाया है कि वह कहाँ है।
अदालत ने इस बात पर अफ़सोस जाहिर किया कि वह खुद नाबालिग है, और चूँकि वह किशोरी को अपने साथ ले गया, इसके चलते वह कानून के जाल में आ गया है, विशेष रूप से यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) के अंतर्गत।
अदालत ने इस बात को रेखांकित किया कि यह अधिनियम, प्रशंसनीय उद्देश्यों के साथ पारित किया गया था, और इसके जरिये समाज में बालिकाओं की उनके खिलाफ होने वाले ज्यादा से ज्यादा अपराधों से रक्षा की जानी थी।
हालाँकि, अदालत ने यह नोट किया कि युवा लड़के जो खुद बालिग़ नहीं हैं, कई बार अपने कार्यों के परिणामों को महसूस किए बिना, या कई बार लड़कपन के उन्माद से प्रेरित होकर, कड़े कानूनों के प्रति लापरवाह दृष्टिकोण के साथ अंततः खुद को POCSO के मामलों में अपराधियों के रूप में लेबल कर लेते हैं और उन्हें इस कानून के तहत निर्धारित कठोर सजा के गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ता है।
अदालत ने इसी सम्बन्ध में आदेश दिया कि
"इसलिए, यह व्यक्त किया जा रहा है कि बच्चों और कॉलेज के छात्रों के बीच कानूनी जागरूकता के रूप में, सही तरह की समझ की जरूरत है, ताकि समाज साथ ही युवा नाबालिग लड़कों की रक्षा भी कर सके, जो कानून की समझ की कमी के कारण गंभीर मामलों में अपराधियों में बदल जाते हैं।"
आगे आदेश में अदालत ने यह देखा कि
"पुलिस अधीक्षक, मेहसाणा युवाओं के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के साथ इस मुद्दे को उठाएंगे।"
आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें