कोर्ट को 'माई लॉर्ड' या 'यौर लॉर्डशिप' के रूप में संबोधित करने से बचें: कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस कृष्ण भट्ट ने अधिवक्ताओं से आग्रह किया
LiveLaw News Network
17 April 2021 1:05 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस पी कृष्ण भट्ट ने अधिवक्ताओं से अनुरोध किया कि अधिवक्ताओं को कोर्ट को 'माई लॉर्ड' या 'यौर लॉर्डशिप' के रूप में संबोधित करने से बचना चाहिए।
कोर्ट ने नोट में लिखा है कि बार के सदस्यों से अनुरोध है कि वे अदालत की गरिमा के अनुरूप अभ्यास करें और जो भारतीय परिस्थितियों में अधिक महत्वपूर्ण है जैसे 'सर' शब्द का इस्तेमाल जज को संबोधित करने के लिए करें।
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी ने हाल ही में बार से इसी तरह का अनुरोध किया था।
भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने कुछ महीने पहले एक लॉ स्टूडेंट के संबोधन पर तब आपत्ति जताई थी, जब उसने जजों को 'यौर ऑनर' कहकर संबोधित किया। छात्र पार्टी-इन-पर्सन के रूप में पेश हुआ था।
सीजेआई एसए बोबेडे ने याचिकाकर्ता से कहा था कि,
"जब आप हमें यौर ऑनर कहते हैं, तो या तो आपके ध्यान में सुप्रीम कोर्ट ऑफ यूनाइटेड स्टेट्स या मजिस्ट्रेट होते हैं, जबकि हम दोनों नहीं हैं।'
याचिकाकर्ता ने तुंरत माफी मांगी और सीजेआई से कहा कि वह 'माई लॉर्ड' का इस्तेमाल करेगा।
व्यक्तिगत रूप से कई न्यायाधीशों ने 'माई लॉर्ड' और 'यौर लॉर्डशिप' का उपयोग नहीं करने का अनुरोध किया है।
मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के. चंद्रू ने साल 2009 में वकीलों को 'माई लॉर्ड' का उपयोग करने से परहेज करने के लिए कहा था।
न्यायमूर्ति एस मुरलीधर ने पिछले साल वकीलों से औपचारिक रूप से अनुरोध किया था कि वे कोशिश करें और उन्हें 'माई लॉर्ड' या 'यौर लॉर्डशिप' के रूप में संबोधित करने से बचें।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थोट्टिल बी. नायर राधाकृष्णन ने हाल ही में रजिस्ट्री के सदस्यों सहित जिला न्यायपालिका के अधिकारियों को एक पत्र संबोधित किया था, जिसमें 'माई लॉर्ड' या 'यौर लॉर्डशिप' के बजाय "सर" के रूप में संबोधित करने की इच्छा व्यक्त की थी।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने पिछले साल वकीलों और न्यायाधीशों के समक्ष पेश होने वाले लोगों को न्यायाधीशों को 'माई लॉर्ड' और 'यौर लॉर्डशिप' के रूप में संबोधित करने से रोकने का अनुरोध करने के लिए एक नोटिस जारी किया।
'यौर लॉर्डशिप' और 'माई लॉर्ड' औपनिवेशिक अवशेष; न्यायाधीशों को संबोधित करने के लिए वकील 'सर' शब्द का उपयोग भी कर सकते हैं - बीसीआई का 2006 का संकल्प
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने 6 मई 2006 को भारत के राजपत्र पर अपना प्रस्ताव प्रकाशित किया जो इस प्रकार है,
"न्यायालय के प्रति सम्मानजनक रवैये के लिए बार के दायित्व के साथ और न्यायिक कार्यालय की गरिमा को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालयों या अधीनस्थ न्यायालयों में इस प्रकार संबोधन होना चाहिए; सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को 'यौर ऑनर' या 'माननीय न्यायालय' को रूप में संबोधित करना चाहिए और अधीनस्थ न्यायालयों और न्यायाधिकरणों को वकीलों द्वारा "सर" या संबंधित क्षेत्रीय भाषाओं में समकक्ष शब्द के रूप में संबोधित किया जाना चाहिए।
स्पष्टीकरण: जैसा कि 'माई लॉर्ड' और 'यौर लॉर्डशिप' शब्द औपनिवेशिक पद के अवशेष हैं, इसलिए उपरोक्त नियम को न्यायालय के प्रति सम्मानजनक रवैये के लिए शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया।
इस प्रकार रूल्स [बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स भाग VI, अध्याय IIIA] के मुताबिक सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में 'यौर ऑनर' या 'माननीय न्यायालय' का उपयोग किया जाता है और अधीनस्थ न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में वकीलों द्वारा "सर" या इसके समकक्ष शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।
स्पष्टीकरण आगे बताता है कि "माई लॉर्ड" और "यौर लॉर्डशिप" शब्द औपनिवेशिक पद के अवशेष हैं।
उपरोक्त नियम से यह स्पष्ट है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने 'माई लॉर्ड' और 'यौर लॉर्डशिप' के इस्तेमाल को अस्वीकार किया है और इसकी जगह जज को संबोधित करने के लिए 'यौर ऑनर' या 'माननीय न्यायालय' और 'सर' शब्द का इस्तेमाल करने के लिए कहा है।
दिलचस्प बात यह है कि बार काउंसिल द्वारा यह संकल्प प्रगतिशील और सतर्कता वकील फोरम द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों पर विचार करने के बाद लिया गया।
कोर्ट ने हालांकि 6 जनवरी 2006 को इस जनहित याचिका को खारिज करने का निर्णय लिया और यह बीसीआई को निर्णय लेना है कि न्यायाधीशों को कैसे संबोधित किया जाना चाहिए।
केरल उच्च न्यायालय के अधिवक्ता संघ ने इसके बाद साल 2007 में सर्वसम्मति से न्यायाधीशों को 'माई लॉर्ड' या 'यौर लॉर्डशिप' के रूप में संबोधित करने से बचने का संकल्प लिया था।