कारावास और जुर्माने की मिश्रित सजा के खिलाफ दायर अपील अभियुक्त की मौत होने पर भी समाप्त नहीं होती

LiveLaw News Network

24 Jan 2020 3:15 AM GMT

  • कारावास और जुर्माने की मिश्रित सजा के खिलाफ दायर अपील अभियुक्त की मौत होने पर भी समाप्त नहीं होती

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि अभियुक्त-अपीलार्थी कारावास और जुर्माने की मिश्रित सज़ा के खिलाफ दायर आपराधिक अपील के लंबित रहने के दौरान मर जाता है तो भी अपील समाप्त नहीं होती।

    इस मामले में आरोपी को आबकारी अधिनियम की धारा 55 (ए), (जी) के तहत दोषी ठहराया गया था। दो साल के कारावास की सज़ा के साथ उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था। अपील के लंबित रहने के दौरान हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता की मृत्यु के तथ्य पर गौर किया। हालांकि, सीआरपीसी की धारा 394 के तहत सिद्धांत का हवाला देते हुए योग्यता के आधार पर अपील पर सुनवाई की।

    हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड पर सबूतों पर विचार करने के बाद दोषसिद्धि को बरकरार रखा। हाईकोर्ट ने यह विचार किया कि चूंकि अपीलकर्ता की मौत इस अपील पर सुनवाई के दौरान हो गई थी, इसलिए कारावास की सजा अयोग्य हो गई है। हालांकि, जुर्माना लगाने के संबंध में, हाईकोर्ट ने कहा कि कोई ऐसा कारण नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जाए कि निचली अदालत ने कोई गलती की है, इसलिए अपील को खारिज कर दिया गया।

    अभियुक्त के कानूनी उत्तराधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। अपील में दिया गया तर्क यह था कि जब कारावास के साथ-साथ जुर्माने की मिश्रित सजा होती है, तो अपील में दोनों कारावास की सजा के साथ-साथ जुर्माने को भी निरस्त करना होगा।

    न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एम.आर शाह की पीठ ने संहिता की धारा 431 के संदर्भ में शीर्ष अदालत के कुछ पूर्व निर्णयों का उल्लेख किया और कहा कि-

    उपर्युक्त निर्णय में स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है कि भले ही धारा 431 के तहत कारावास की सजा के साथ-साथ जुर्माने की सजा भी दी गई हो, इस तरह की अपील निरस्त नहीं होगी। धारा 431 (जुर्माने की सजा की एक अपील के अलावा) में जैसे विचार या अभिव्यक्ति प्रयोग किया गया है, ठीक ऐसी ही अभिव्यक्ति का उपयोग सीआरपीसी की धारा 394 में हुआ है।

    इस प्रकार, वर्तमान मामले में जहां अभियुक्त को कारावास के साथ-साथ जुर्माने के लिए सजा सुनाई गई थी, उसे जुर्माने के खिलाफ अपील के रूप में माना जाना चाहिए और उसे समाप्त नहीं करना चाहिए और हाईकोर्ट ने गुण या योग्यता के आधार पर अपील तय करने में कोई त्रुटि नहीं की थी।

    हालांकि, पीठ ने आंशिक रूप से अपील की अनुमति दी और कहा कि हाईकोर्ट को जुर्माने की सजा के खिलाफ अभियुक्त के कानूनी उत्तराधिकारियों को उनकी दलीलें पेश करने का एक मौका देना चाहिए था, जो जुर्माना बहुत अच्छी तरह से अभियुक्त की उस संपत्ति से वसूल किया जा सकता था जो कानूनी वारिसों के पास है।

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