एक निवेशक उपभोक्ता नहीं होता : एनसीडीआरसी

LiveLaw News Network

6 Dec 2022 6:07 AM GMT

  • एक निवेशक उपभोक्ता नहीं होता : एनसीडीआरसी

    राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) की एक बेंच ने एक व्यक्ति द्वारा एक कंपनी के खिलाफ दायर एक उपभोक्ता शिकायत का निस्तारण करते हुए कहा है कि एक निवेशक उपभोक्ता नहीं है। पीठ में श्री सी. विश्वनाथ और श्री सुभाष चंद्रा शामिल हैं।

    यह एनसीडीआरसी के समक्ष सीधे दायर की गई एक मूल शिकायत थी, जिसमें 5,00,30,000/- रुपये की राहत मांगी गई थी। शिकायतकर्ता के अनुसार, उसने शुरुआत में प्रतिवादी कंपनी बिल्डर के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) के आधार पर 17,00,000/- का निवेश किया। बाद में, उन्होंने एक निश्चित राशि के साथ एक मसौदा भेजा और फिर बिल्डर को सूचित किया कि पहले से ही दोनों पक्षों द्वारा तय की गई राशि में से बची हुई राशि समझौते के निष्पादन के बाद दी जाएगी। हालांकि, बिल्डर ने एकतरफा फैसला लिया और भुगतान की जाने वाली शेष राशि को बढ़ा दिया।

    इसके बाद, शिकायतकर्ता ने परियोजना में अपनी अनिच्छा व्यक्त की और बिल्डर से चक्रवृद्धि ब्याज के साथ पहले से भुगतान किए गए पैसे वापस करने का अनुरोध किया। इसके बाद, बिल्डर ने शिकायतकर्ता के साथ बकाया राशि लौटाने के लिए समझौता किया और इसके परिणामस्वरूप, उसे बिल्डर की आगामी परियोजना में अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए दो आवासीय फ्लैट देने का वादा किया गया था।

    शिकायतकर्ता ने फ्लैट बुक करने के लिए अतिरिक्त भुगतान किया और इसे बिल्डर ने स्वीकार कर लिया। बाद में, शिकायतकर्ता को पता चला कि इस विशेष परियोजना पर दोनों पक्षों द्वारा तय की गई तारीख से पांच साल बीत जाने के बाद भी कोई काम नहीं किया जा रहा है।

    शिकायतकर्ता ने ब्याज सहित फ्लैटों का पूरा मूल्य वापस करने की मांग की और दंडात्मक हर्जाने की भी मांग की। बिल्डर शिकायतकर्ता की मांगों का पालन करने में विफल रहा और इसलिए शिकायतकर्ता ने 5,00,30,000/- रुपये की राशि के लिए कानूनी नोटिस दिया। इसके प्रत्युत्तर में विपक्षी ने सेल डीड निष्पादित कराने के लिए जवाब भेजा तथा एक मध्यस्थ भी नामित किया। शिकायतकर्ता के अनुसार, उसने मध्यस्थता के लिए सहमति नहीं दी थी और इस प्रकार एनसीडीआरसी के समक्ष शिकायत दर्ज की।

    इस शिकायत को दर्ज करने के लिए शिकायतकर्ता द्वारा दिया गया तर्क यह था कि अवांछित देरी के कारण उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि फ्लैट उसे दिया जाएगा। यह तर्क दिया गया कि शिकायतकर्ता एक "उपभोक्ता" की परिभाषा के दायरे में आता है और जिस कारण से उसने शुरू में प्रतिवादी पक्षों को पैसा दिया था, उसकी कोई प्रासंगिकता नहीं है, पहले के करार को निपटाने के लिए बाद के समझौते में किया गया वादा सर्वोपरि माना जाना था।

    बिल्डर (शिकायतकर्ता के विपरीत पक्ष) ने निम्नलिखित आधारों पर शिकायत का विरोध किया:

    शिकायतकर्ता उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 24-ए के तहत लिमिटेशन के दायरे में है क्योंकि कथित कॉज ऑफ एक्शन (वादहेतुक) इस शिकायत को दर्ज करने से दो साल पहले हुआ था।

    दो शामिल पक्षों के बीच संबंध एक उपभोक्ता और एक सेवा प्रदाता का नहीं था, बल्कि इसके बजाय शिकायतकर्ता ने एक निवेशक की स्थिति से काम किया, क्योंकि उसने शुरू में लाभ के उद्देश्य से प्रतिवादी पक्षों के साथ एक समझौता किया था और उसके बाद ही शिकायतकर्ता ने निवेश के एवज में फ्लैटों के अधिग्रहण के लिए समझौता किया था।

    यह शिकायत उन्हें परेशान करने के लिए दर्ज की गई है क्योंकि उन्होंने पहले ही शिकायतकर्ता को फ्लैट की पेशकश करते हुए एक पत्र भेजा था, लेकिन शिकायतकर्ता ने उस पर कब्जा नहीं लिया। यह समझा जाना चाहिए कि फ्लैटों के संबंध में दोनों पक्षों द्वारा किया गया समझौता केवल एक भागीदार/निवेशक के रूप में शिकायतकर्ता की भूमिका का विस्तार है।

    एनसीडीआरसी बेंच ने माना कि पार्टियों के बीच पूरा लेन-देन वाणिज्यिक प्रकृति का है, यह ज्ञातव्य है कि शिकायतकर्ता ने वास्तव में एक भागीदार की स्थिति से परियोजना में राशि का निवेश किया था। पीठ ने प्रतिवादी पक्षों की दलील को स्वीकार किया और कहा कि शिकायतकर्ता की भूमिका उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत एक "उपभोक्ता" की बजाय एक निवेशक की थी, क्योंकि सेटलमेंट एग्रीमेंट केवल उसकी भूमिका के एक निवेशक के रूप में विस्तार का था।

    शिकायतकर्ता और प्रतिवादी पक्ष के बीच दो फ्लैटों के लिए समझौते का उद्देश्य शिकायतकर्ता द्वारा ऋण और ब्याज की वसूली करना था और इस कारण ऋण को समाप्त माना जाएगा। इसके अलावा, पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता द्वारा किया गया दावा केवल मूल निवेश के लाभ को आगे बढ़ाने के लिए है।

    एनसीडीआरसी ने शिकायत कायम रखने योग्य मानने से इनकार करते हुए इसे खारिज कर दिया, लेकिन शिकायतकर्ता को अपनी शिकायतों के समाधान के लिए उपयुक्त मंच पर जाने की स्वतंत्रता दी गई है।

    केस टाइटल: सुरेंद्र कपूर बनाम मेसर्स पूजा निर्माण लिमिटेड और तीन अन्य

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