इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 90 हिंदुओं को ईसाई धर्म में परिवर्तित होने के लिए लालच देने के आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया
Brij Nandan
18 Jan 2023 9:34 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने 90 हिंदुओं को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए धोखाधड़ी और लालच देने के आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया।
कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत केवल उपयुक्त मामलों में प्रयोग किया जाने वाला एक असाधारण उपाय है।
जस्टिस ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने राहत से इनकार कर दिया क्योंकि अभियुक्तों को अग्रिम जमानत देने का कोई आधार नहीं मिला।
पीठ एक भानू प्रताप सिंह की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर आईपीसी की धारा 153ए, 506, 420, 467, 468, 471 और उत्तर प्रदे धर्म परिवर्तन निषेध अध्यादेश, 2020 की धारा 3 और 5(1) के तहत केस दर्ज किया गया था।
क्या है पूरा मामला?
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, एफ.आई.आर. में आरोप लगाया गया है कि हिंदू धर्म के लगभग 90 व्यक्तियों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के उद्देश्य से फतेहपुर के एक चर्च में एकत्रित किया गया था।
सूचना मिलने पर सरकारी अधिकारियों ने छापा मारा और पादरी विजय मसीहा से पूछताछ की, जिन्होंने खुलासा किया कि धर्मांतरण की प्रक्रिया पिछले 34 दिनों से चल रही थी और यह प्रक्रिया 40 दिनों के भीतर पूरी हो जाएगी।
कथित तौर पर, पादरी ने यह भी बताया कि वे मिशन अस्पताल में भर्ती मरीजों का भी धर्मांतरण कराने की कोशिश कर रहे हैं और कर्मचारी इसमें सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
सरकारी अधिकारियों ने कहा कि अभियुक्त/आवेदक (F.I.R. में नामजद) सहित 35 व्यक्तियों और 20 अज्ञात व्यक्ति इस धर्मांतरण केस में शामिल हैं।
अभियुक्त ने यह तर्क देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया कि वह इस कृत्य में शामिल नहीं थे और वास्तव में, वह मौके पर मौजूद नहीं थे और उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया है।
आगे यह तर्क दिया गया कि एफआईआर में दर्ज कुछ व्यक्तियों को यानी माधुरी पन्ना और विजय कुमार सैमसन को अग्रिम जमानत दे दी गई है। इसलिए समानता के आधार पर उनकी अग्रिम जमानत की अर्जी मंजूर की जानी चाहिए।
दूसरी ओर, राज्य के वकील ने तर्क दिया कि आवेदक और उसके सहयोगियों ने एक बड़ी साजिश रची गई थी। वे बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के लिए संगठित तरीके से काम कर रहे थे।
यह आगे प्रस्तुत किया गया कि यह ऐसा मामला नहीं है जहां एक व्यक्ति को अपनी अंतरात्मा द्वारा एक अलग धर्म में परिवर्तित होने के लिए प्रेरित किया गया था, लेकिन आरोपी व्यक्तियों ने एक-दूसरे के साथ व्यवस्थित रूप से उन व्यक्तियों को प्रभावित किया जो आमतौर पर चिकित्सा के उद्देश्य से उनके संपर्क में आते थे। उपचार और उनकी खराब सामाजिक-आर्थिक स्थिति का शोषण उन्हें सामूहिक धर्मांतरण में भाग लेने के लिए लुभाने के लिए किया गया था।
कोर्ट ने चश्मदीद गवाहों और सार्वजनिक गवाहों की गवाही को ध्यान में रखते हुए, अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन करते हुए आरोपी को अग्रिम जमानत देने का मामला नहीं पाया।
नतीजतन, अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई।
जमानत याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट राजकुमार वर्मा पेश हुए।
केस टाइटल - भानु प्रताप सिंह बनाम स्टेट ऑफ यूपी और 2 अन्य [Criminal Misc Anticipatory Bail Application U/S 438 CR.P.C. No. – 12343 Of 2022]
केस साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एबी) 22
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