इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य मंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह के खिलाफ क्रिमिनल केस वापस लेने की राज्य की याचिका स्वीकार की

Brij Nandan

18 July 2022 2:39 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य मंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह के खिलाफ क्रिमिनल केस वापस लेने की राज्य की याचिका स्वीकार की

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने उत्तर प्रदेश (UP) के स्वास्थ्य राज्य मंत्री मयंकेश्वर शरण सिंह (Mayankeshwar Sharan Singh के खिलाफ क्रिमिनल केस वापस लेने के लिए राज्य सरकार के आवेदन को स्वीकार कर लिया है।

    जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की खंडपीठ ने कहा कि जब शिकायतकर्ता स्वयं अभियोजन मामले का समर्थन नहीं कर रहा है, तो मामले में आरोपी के दोषी ठहराए जाने की कोई संभावना नहीं है और इस प्रकार, अभियोजन से हटना न्याय के हित में होगा।

    इसके साथ, कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा दायर एक पुनरीक्षण आवेदन को विशेष न्यायाधीश / एमपी / एमएलए / VI-अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, रायबरेली द्वारा 2020 में पारित आदेश को चुनौती देने की अनुमति दी, जिसमें उसने अभियोग पक्ष द्वारा केस वापस लेने के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया था।

    पूरा मामला

    मामला साल 2007 का है। जब विधानसभा चुनावों के दौरान, मयंकेश्वर शरण सिंह (तत्कालीन विधायक और मंत्री) अपने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार, बहुजन समाज पार्टी के दिनेश प्रताप सिंह के खिलाफ समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे।

    दिनेश के एक समर्थक ने मयंकेश्वर और उनके करीब 20 लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 307, 436, 397, 395, 323, 504, 506, 427 और यूपी गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की धारा 2 (3) के तहत एफआईआऱ दर्ज कराई थी। आरोप है कि उसने 20-25 लोगों के साथ शिकायतकर्ता के घर पर पेट्रोल छिड़का और आग लगा दी।

    मामले की जांच के बाद पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल किया, जिस पर अदालत ने 13 जुलाई 2009 को संज्ञान लेते हुए सभी आरोपियों को तलब किया। हालांकि 2019 में राज्य सरकार ने मामले को वापस लेने का फैसला किया, लेकिन पीपी की अर्जी दाखिल हो गई। सीआरपीसी की धारा 321 के तहत [अभियोजन से वापसी] को एमपी एमएलए कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    शुरुआत में, अदालत ने कहा कि लोक अभियोजक ने सीआरपीसी की धारा 321 के तहत रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद आवेदन दायर किया था।

    अदालत ने यह भी नोट किया कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण वर्तमान मामले में एफआईआर दर्ज की गई थी। बाद में, शिकायतकर्ता ने खुद ट्रायल कोर्ट के समक्ष एक आवेदन प्रस्तुत किया था कि यदि आवेदन की अनुमति दी जाती है, तो उसे कोई आपत्ति नहीं है, और उसकी पहले की आपत्ति सीआरपीसी की धारा 321 के तहत आवेदन अभियोजन से वापसी के लिए नजरअंदाज किया जा सकता है।

    यह देखते हुए कि अभियोजन से वापस लेने के लिए आवेदन की अनुमति देना उचित होगा, कोर्ट ने इस प्रकार टिप्पणी की,

    "कोर्ट को यह विचार करने की आवश्यकता है कि क्या अभियोजन से वापसी आगे न्याय का कारण होगी या नहीं और क्या अभियोजन से वापसी की अनुमति देना जनहित में होगा। जब शिकायतकर्ता स्वयं अभियोजन मामले का समर्थन नहीं कर रहा है, तो कोर्ट यह देखते हुए कि मामले में अभियुक्त की दोषसिद्धि का कोई मौका नहीं है। मामला 2007 से लंबित है और मुकदमे को जारी रखना एक निरर्थक कवायद के अलावा और कुछ नहीं होगा और अदालत का कीमती समय व्यर्थ होगा।"

    इसके मद्देनजर कोर्ट ने कहा कि विशेष न्यायाधीश द्वारा लिया गया विचार सही दृष्टिकोण नहीं लगता है, और इसलिए, पुनरीक्षण की अनुमति देते हुए कोर्ट ने अभियोजन से वापस लेने के लिए आवेदन की भी अनुमति दी।

    केस टाइटल - स्टेट ऑफ यू.पी. बनाम विशेष न्यायालय, जज M.P./M.L.A./A.S.J.VI रायबरेली और अन्य [Criminal Revision No. 12 of 2021]

    केस टाइटल: 2022 लाइव लॉ 323

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