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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में 69,000 सहायक बेसिक शिक्षकों के चयन पर रोक के एकल जज के फ़ैसले पर रोक लगाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को हाईकोर्ट की एकल जज की पीठ के उस फ़ैसले पर रोक लगा दी, जिसमें एकल पीठ ने उत्तर प्रदेश में 69,000 सहायक बेसिक शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई थी।
न्यायमूर्ति पीके जायसवाल और न्यायमूर्ति डीके सिंह की पीठ ने यह आदेश परीक्षा विनियामक प्राधिकरण, इलाहाबाद के विशेष रेफ़रेंस पर सुनाया।
साथ ही पीठ ने स्पष्ट किया है कि सरकार चाहे तो 37,000 शिक्षकों की नियुक्ति की चयन प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकती है जो 9 जून को सूबेदार सिंह एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के तहत शिक्षा मित्रों के लिए ख़ाली रखी गई है।
3 जून को प्राधिकरण के ख़िलाफ़ 31 रिट याचिकाओं की सुनवाई करते हुए आलोक माथुर की एकल पीठ ने सहायक बेसिक शिक्षकों की चयन प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी और इस मामले को यूजीसी को भेज दिया था और यह कहा गया था कि प्रश्नपत्रों की जाँच में गलती हुई है।
अंतिम उत्तर कुंजी पर ग़ौर करने के बाद पीठ ने कहा कि 'गंभीर भ्रम' पैदा हो गया है जिसकी वजह से भारी संख्या में छात्रों को इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ेगा जबकि उनकी इसमें कोई गलती नहीं है।
इस वजह से यूपी परीक्षा विनियमन प्राधिकरण ने अपील करना मुनासिब समझा और कहा कि उसको अपनी सफ़ाई देने का मौक़ा नहीं दिया गया।
प्रतिवादी ने कहा कि इस मामले को सुनवाई के लिए स्वीकार नहीं किया जा सकता। पर अदालत ने कहा कि उसकी राय में ऐसा नहीं है।
परीक्षा प्राधिकरण ने कहा कि एकल जज ने रंजन कुमार बनाम बिहार राज्य, (2014) 16 SCC 187 मामले में आए फ़ैसले पर ग़ौर नहीं किया जिसने हर एक छात्र को इस मामले में शामिल किए जाने की बात करता है और इसलिए यह कहा गया कि यह आदेश क़ानून की दृष्टि में गलत था।
याचिकाकर्ता ने कहा कि एकल जज ने विषय का विशेषज्ञ बनने की गलती की है कि कुछ उत्तर ग़लत हैं और कुछ प्रश्नों के दो से अधिक वैकल्पिक उत्तर हैं।
अदालत ने कहा,
"रणविजय सिंह मामले को सही परिदृश्य में नहीं देखा गया है और रिट अदालत ने कहा कि अगर किसी प्रश्न के बारे में कोई संदेह है तो इसका लाभ परीक्षा प्राधिकरण को होना चाहिए न कि उम्मीदवार को लेकिन इसके बावजूद यह आदेश पास कर दिया और 8.5.2020 को जारी अधिसूचना आगे की किसी भी कार्रवाई को स्थगित कर दिया और इसलिए हामारी राय में अपीलकर्ताओं को प्रथम दृष्टया राहत दिए जाने की ज़रूरत है।"
अदालत ने कहा कि ऋषभ मिश्रा एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य एवं संबंधित रिट याचिकाएं इस अदालत के अगले आदेश तक स्थगित रहेंगी। पर राज्य सरकार को यह आज़ादी है कि वह एक विशेष अनुमति याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के तहत आगे की कार्यवाही कर सकती है।
अदालत ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया और अब इस मामले पर 10 सप्ताह के बाद सुनवाई की जाएगी।