इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ईंट भट्ठा में बंधुआ मजदूर के रूप में रखे गए व्यक्तियों को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया
LiveLaw News Network
21 Feb 2020 3:15 AM GMT
![Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2019/06/750x450_03360372-allahabad-hc-1jpg.jpg)
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यूपी सरकार के मुख्य सचिव से रिपोर्ट मांगी है। यह जनहित याचिका राज्य के कुछ ईंट भट्टों में कथित तौर पर बंधुआ मजदूर रखने के चलन के खिलाफ दायर की गई है।
अदालत ने बागपत जिले के जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया है कि वह संबंधित ईंट भट्ठा से बंधुआ मजदूरों की रिहाई के लिए तत्काल कार्रवाई करें और अदालत में 23 फरवरी तक रिपोर्ट दायर करें।
इस महीने की शुरुआत में एक शीशराम द्वारा यह याचिका दायर की गई थी, जिसमें यूपी के भागपत जिले में स्थित एक ईंट भट्टा पर काम करने वाले उसके परिवार के सदस्यों के साथ-साथ अन्य लोगों की भी रिहाई के लिए हाईकोर्ट द्वारा हस्तक्षेप करने की मांग की गई थी।
यह मामला पहली बार 12 फरवरी को हाईकोर्ट के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था। अदालत ने देखा कि याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों के अनुसार, ईंट भट्ठे पर श्रमिकों को बंधुआ मजदूर के रूप में काम करने के लिए रखा जाता है।
राज्य के वकील को निर्देश प्राप्त करने के लिए एक सप्ताह का समय देते हुए, हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई को स्थगित कर दिया था।
बुधवार (19 फरवरी) को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर के नेतृत्व वाली हाईकोर्ट की पीठ को बताया कि बिहार से मजदूरों को यूपी लाया जा रहा है और उनको ईंट भट्ठों में बंधुआ मजदूर के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
पीठ में न्यायमूर्ति समिल गोपाल भी शामिल थे। खंडपीठ ने दोषी ईंट भट्ठे के खिलाफ तत्काल कार्रवाई का आदेश दिया है और इस मामले पर फिर से विचार करने या सुनवाई करने के लिए 18 मार्च की तारीख तय की है।
संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत बंधुआ मजूदरी वर्जित है। यह बॉन्डेड लेबर सिस्टम (ऐबलिशन) एक्ट, 1976 ( बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 ) के तहत भी एक दंडनीय अपराध है, जिसमें कारावास की सजा का प्रावधान है, जो तीन साल तक की हो सकती है। साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है,जो दो हजार रुपये तक हो सकता है।
मामले का विवरण-
केस का शीर्षक- शीशराम बनाम उत्तर प्रदेश व अन्य।
केस नंबर- पीआईएल 288/2020
कोरम- मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और समिल गोपाल
प्रतिनिधित्व- अधिवक्ता सुनील कुमार तिवारी और विनय कुमार सिंह (याचिकाकर्ता के लिए)व मुख्य स्थायी वकील ऋषि कुमार (राज्य के लिए)