इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सभी कोर्ट को दिया निर्देश, केवल नामांकन संख्या बताने वाले वकीलों को ही पेश होने की अनुमति दें
LiveLaw News Network
5 March 2020 9:31 AM IST
उत्तर प्रदेश न्यायालयों की सुरक्षा से संबंधित लिए गए स्वत संज्ञान मामले की कार्यवाही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को सभी अदालतों को निर्देश दिया है कि वे नामांकन संख्या प्रस्तुत करने पर ही अधिवक्ताओं को पेश होने की अनुमति दें।
न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने कहा है कि 20 मार्च से अधिवक्ता यदि वे अपना नामांकन संख्या प्रस्तुत नहीं कर पाते हैं तो उन्हें वकालतनामा आदि के माध्यम से पेश होने की अनुमति न दी जाए। यह निर्देश उन जिलों में जारी किया गया है, जहां अधिवक्ताओं के नामांकन की तैयारी की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है।
पीठ ने कहा कि
" जहां वकीलों के नामांकन का काम पूरा हो चुका है, वहां हम सभी अदालतों को निर्देश देते हैं कि वे 20 मार्च 2020 से एडवोकेट रोल (वकील नामांकन) की संख्या के बिना अन्य संबंधित माध्यम से अधिवक्ताओं को पेश होने की अनुमति न दें। इस आशय की सूचना का एक नोटिस संबंधित जिला न्यायाधीशों के बार एसोसिएशनों को दिया जाए।"
जहां एडवोकेट रोल की सूची बनाने का काम पूरा नहीं किया गया है, अदालत ने उन जिलों से कहा है कि वे निर्धारित समय के भीतर प्रक्रिया पूरी करें। साथ ही आदेश दिया है कि नामांकन संख्या प्रस्तुत करने का निर्देश 1 अप्रैल से उनके लिए भी लागू हो जाएगा।
''जहां अधिवक्ताओं की सूची बनाने का काम पूरा नहीं हुआ है, वहां इस कोर्ट द्वारा दिए गए समय के अनुसार यह काम पूरा कर लिया जाए और उन जिला न्यायाधीशों की अदालतों में भी एक अप्रैल 2020 से और उसके बाद वकालतनामा आदि के माध्यम से अधिवक्ताओं को तब तक पेश होने की अनुमति न दी जाए, जब तक कि नामांकन संख्या का उल्लेख न किया जाए।''
पीठ ने स्पष्ट किया है कि जिले के बाहर से आए किसी अधिवक्ता के पेश होने के मामले में उसके साथ एक स्थानीय अधिवक्ता होना चाहिए, जिसकी नामांकन संख्या पेशी की पर्ची में लिखी जाएगी।
अधिवक्ताओं के क्लर्क का पंजीकरण
न्यायालय ने संबंधित अधिवक्ताओं के साथ क्लर्कों के पंजीकरण के लिए भी निर्देश जारी किए हैं। पीठ ने संबंधित क्लर्कों को एक महीने का समय दिया है ताकि वे अधिवक्ताओं के साथ स्वयं का पंजीकरण करा लें और उसके बाद क्लर्कों की सूची में अपने नाम का शामिल करवा लें।
अदालत ने आदेश दिया है कि 15 अप्रैल से अपंजीकृत क्लर्कों और ऐसे लोग जिनका नाम रोल ऑफ क्लर्क में शामिल नहीं हैं, उन्हें अदालत परिसर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
कोर्ट स्टाफ द्वारा यूनिफॉर्म रूल का पालन
न्यायालय ने कोर्ट के कर्मचारियों द्वारा वर्दी नियम का पालन न करने के मामले की भी आलोचना की है और इस संबंध में रजिस्ट्रार जनरल से स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने को कहा है।
पीठ ने आदेश दिया कि
"हमने यह भी देखा है कि इस न्यायालय में भी, कई रजिस्ट्री कर्मचारी इस संबंध में बार-बार आदेश दिए जाने के बावजूद वर्दी नहीं पहन रहे हैं। रजिस्ट्रार जनरल इस आशय का स्पष्टीकरण प्रस्तुत करें और यह सुनिश्चित करें कि किसी भी स्थिति में, 16 मार्च 2020 को और उसके बाद कोर्ट कैंपस में स्टाफ के किसी भी सदस्य को तभी कोर्ट कैंपस में मौजूद रहने की अनुमति दी जाए, जब उसने वर्दी पहनी हो और अपना पहचान पत्र पहना हो।"
बिजनौर जिले की अदालत में सरेआम गोलीबारी की घटना के बाद न्यायालय ने स्वत संज्ञान लिया था। यह निर्देश स्वत संज्ञान जनहित याचिका ''यूपी राज्य में सभी न्यायालयों के परिसरों की सुरक्षा और संरक्षण से संबंधित पुनःस्वत संज्ञान में'' दिए गए हैं। हाईकोर्ट ने न्यायालय परिसरों में और उसके आसपास की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपायों पर जोर दिया है।
इस पृष्ठभूमि में पीठ ने कोर्ट की सरंचना के उत्थान से लेकर आगंतुकों की उचित पहचान करने के लिए भी विभिन्न दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
20 दिसंबर, 2019 और 2 जनवरी, 2020 को दिए गए आदेशों में हाईकोर्ट ने अदालत परिसरों में पर्याप्त सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए थे।
इसके बाद, 17 जनवरी को हाईकोर्ट ने एक अनुपालन हलफनामा को रिकॉर्ड पर लिया था, जो राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव द्वारा दायर किया गया था, जिसमें सीसीटीवी कैमरों की स्थापना, डेजिनेटिड क्विक रिस्पांस टीम की नियुक्ति कोर्ट परिसर में वाहनों का प्रतिबंधित प्रवेश, चारदीवारी का निर्माण आदि के बारे में बताया गया था।
28 जनवरी के अपने आदेश में हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के चुनावों के दौरान अदालत परिसर में बैनर और पोस्टर लगाने पर रोक लगा दी थी।
27 फरवरी को हुई सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट को बिजनौर की जिला अदालत में हुई एक घटना की सूचना दी गई थी, जिसमें कुछ अधिवक्ताओं ने 13 फरवरी को अदालत परिसर की दीवार/ गेट को ध्वस्त कर दिया था।
इस मामले पर एक रिपोर्ट जिला न्यायाधीश ने तैयार की थी जिसे मंगलवार को हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। रिपोर्ट में तीन अधिवक्ताओं के नाम का खुलासा किया गया है, जिनकी पहचान सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद जज द्वारा की गई थी।
हाईकोर्ट ने उक्त तीन अधिवक्ताओं को नोटिस जारी किया है और उन्हें निर्देश दिया है कि वे बताएं कि क्यों न उन्हें अदालत की अवमानना के लिए दंडित किया जाए। अदालत ने उन्हें 20 मार्च को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए भी कहा है।
इसके अलावा, बार एसोसिएशन, बिजनौर के अध्यक्ष और सचिव को भी समन जारी किया है ताकि वह उन अधिवक्ताओं की पहचान में न्यायालय की सहायता कर सकें,जिनकी पहचान सीसीटीवी फुटेज में जिला न्यायाधीश नहीं कर पाए हैं।
इस मामले में अब 20 मार्च को सुनवाई की जाएगी।
मामले का विवरण-
केस का शीर्षक- यूपी राज्य में सभी न्यायालय परिसरों में सुरक्षा और संरक्षण से संबंधित पुनःस्वत संज्ञान में
केस नंबर- पीआईएल नंबर 2436/2019
कोरम-न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति सुनीत कुमार
आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करेंं