अधिवक्ताओं को अपने मुविक्कल को समझाना चाहिए कि क्या स्वीकार्य है और क्या नहीं'', बॉम्बे हाईकोर्ट ने COVID-19 नोटिस का पालन न करने पर 15 हजार रुपये जुर्माना लगाया

LiveLaw News Network

18 March 2020 5:00 AM GMT

  • अधिवक्ताओं को अपने मुविक्कल को समझाना चाहिए कि क्या स्वीकार्य है और क्या नहीं, बॉम्बे हाईकोर्ट ने COVID-19 नोटिस का पालन न करने पर 15 हजार रुपये जुर्माना लगाया

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को एक वादी पर 15,000 रुपये जुर्माना लगा दिया, क्योंकि यह वादी अंतरिम राहत मांग रहा था और इसने बिना किसी तात्कालिक जरूरत के अपने एक अवमानना के मामले को नियमित सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करवा लिया।

    COVID-19 नोवल कोरोना वायरस की महामारी को फैलने से रोकने के लिए हाईकोर्ट ने एहतियात के तौर पर सभी खंडपीठ का कामकाज सीमित करवा दिया और केवल अर्जेंट माामलों पर ही सुनवाई हो रही है।

    जस्टिस एसजी पटेल ने कहा कि सिर्फ जुर्माना ''पर्याप्त नहीं है क्योंकि सुनवाई के मामलों में प्रतिबंधों के बारे में पहले ही 14 मार्च को अधिसूचित किया जा चुका है।

    कोर्ट ने रजिस्ट्री को कहा है कि वह इस मामले को 26 जून, 2020 के लिए सूचीबद्ध करे और साथ ही कहा है कि वादी को इससे पहले मामले को सूचीबद्ध करवाने के लिए कोई अवसर ना दिया जाए।

    वादी चंद्रकांत मूलचंद शाह और प्रतिवादी जीराज डेवलपर एलएलपी व अन्य के बीच के मामले में प्रस्ताव का नोटिस सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था।

    मामले की शुरुआत में ही, जस्टिस पटेल ने कहा कि-

    ''मैंने पहले ही एक नोटिस जारी किया है जिसमें कहा गया है कि सर्कुलेशन के मामलों का उल्लेख करना आवश्यक नहीं है। वहीं बार की सुविधा के लिए और समय बचाने के लिए , पार्टियों को उन मामलों के लिए प्रस्ताव रखने की अनुमति है जो वास्तव में अत्यावश्यक हैं और जिनमें अंतरिम राहत की आवश्यकता होती है।

    नोटिस स्पष्ट रूप से कहता है कि यदि कोई मामले में कोई तात्कालिकता नहीं मिलती है तो लागत वसूली के रूप में जुर्माना लगाया जा सकता है।

    अब दो संभावित उपाय हैं। पहला बार को दी गई इस सुविधा को पूरी तरह से वापस ले लिया जाए और इसके बजाय हर किसी को संचलन से पहले मामले का उल्लेख करने और तात्कालिकता के लिए आधार बनाने के लिए एक घंटे के बेहतर हिस्से या अधिक का उपयोग करने की आवश्कता होती है और उसे उपयोग करने दिया जाए।

    निस्संदेह, कई अधिवक्ताओं और पक्षकारों को इससे असुविधा होगी, लेकिन इस मामले में जो अधिवक्ता हैं उसे खुद अपने सहयोगियों को इसके लिए समझाना होगा क्योंकि उनको अकेले ही इस जिम्मेदारी को निभाना होगा।

    अन्य विकल्प वह है जो नोटिस में कहा गया था और जुर्माना लगा दिया जाए। यह बेहतर है क्योंकि इससे दूसरों को कम से कम असुविधा नहीं होगी।''

    इस पर वादी के वकील गौरव शाह ने पीठ को सूचित किया कि मुविक्कल को सलाह दी गई थी कि वह जोर न दे, फिर भी उसने जोर दिया।

    पीठ ने कहा कि

    "यह कोई जवाब नहीं है। अधिवक्ताओं से यह उम्मीद करना अनुचित नहीं है कि वे अपने ग्राहकों/मुविक्कलों को सूचित करें कि क्या संभव है और क्या संभव नहीं है या अनुमति नहीं है, और उनकी हर इच्छा पर कार्रवाई न करें।''

    इस प्रकार 15000 रुपये का जुर्माना लगा दिया गया,जो मुंबई के सेंट जूड इंडिया चाइल्डकेयर सेंटर को देय होगा।

    आदेश की कॉपी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें।




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