'निश्चित रूप से कोई शिनाख्त परेड आयोजित नहीं की गई थी': पटना हाईकोर्ट ने साल 1999 के सेनारी नरसंहार मामले में सभी 13 आरोपियों को बरी किया

LiveLaw News Network

22 May 2021 5:50 PM IST

  • निश्चित रूप से कोई शिनाख्त परेड आयोजित नहीं की गई थी: पटना हाईकोर्ट ने साल 1999 के सेनारी नरसंहार मामले में सभी 13 आरोपियों को बरी किया

    पटना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को साल 1999 के सेनारी नरसंहार मामले में सभी 13 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी किया, जिसमें 34 लोगों की मौत हो गई थी। कोर्ट ने देखा कि जिन परिस्थितियों में शिनाख्त परेड ( टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड) आयोजित की गई थी वह कमजोर और बिना किसी पुष्टि की थी।

    न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह और न्यायमूर्ति अरविंद श्रीवास्तव की खंडपीठ ने निचली अदालत के 15 नवंबर, 2016 के फैसले और आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ सजा के आदेश को खारिज करते हुए सभी 13 को तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया।

    हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकारी पक्ष यानी अभियोजन पक्ष इस कांड के आरोपियों पर लगे आरोप को साबित करने में असफल है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "आरोपियों को पहली बार सात साल से अधिक समय पहले डॉक आइडेंटिफिकेशन में पहचाना गया था और घटना के बाद लगभग 16 साल तक बढ़ाया गया है। जिन परिस्थितियों में पहचान की गई थी जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है कि बिना किसी पुष्टि के बहुत पहले हुई घटनाओं के स्मरण के आधार पर ऐसी पहचान को कमजोर बना देती है।"

    तत्कालीन जहानाबाद और वर्तमान अरवल जिले के करपी थाने के सेनारी गांव में 18 मार्च 1999 की शाम करीब 7.30 बजे से 11 बजे रात तक प्रतिबंधित संगठन के एमसीसी उग्रवादियों (रणवीर सेना) पर गांव के 34 लोगों की तेजधार हथियार से गला व पेट फाड़कर और गोली मार कर निर्मम हत्या कर नरसंहार करने का आरोप है। घटना के वक्त गांव में बिजली नहीं थी। इस प्रकार, गवाहों द्वारा प्रस्तुत किया गया था कि उन्होंने टॉर्च की रोशनी में बदमाशों की पहचान की थी।

    हत्याकांड में मारे गए एक व्यक्ति की पत्नी चिंतामणि देवी के मौखिक बयान पर 19 मार्च 1999 को प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इसके आधार पर पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 148, 149, 324, 307, 302, 452, 380, 120-बी, आर्म्स एक्ट की धारा 27, आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धारा 17 और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 3 और धारा 4 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई।

    निचली अदालत ने 15 नवंबर 2016 के फैसले के तहत आरोपियों को सजा सुनाई थी। इनमें बचेश कुमार सिंह इन, बुधन यादव, गोपाल साव, बूटाई यादव, सतेंद्र दास, ललन पासी, द्वारिक पासवान, करीमन पासवान, गोराई पासवान और उमा पासवान को मौत की सजा दी गई और अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

    अपीलकर्ताओं ने ट्रायल कोर्ट के फैसले और ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई मौत की सजा को उच्च न्यायालय को एक सामान्य निर्णय के माध्यम से मामले को निपटाने के इरादे से चुनौती दी।

    हाईकोर्ट ने मामले के तथ्यों रिकॉर्ड पर गवाहों के बयान और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की जांच करने के बाद पाया कि जांच के दौरान कोई शिनाख्त परेड आयोजित नहीं की गई थी और दोषसिद्धि 7 साल से अधिक की डॉक पहचान पर आधारित है। और घटना के लगभग 16 साल तक इसे बढ़ाया गया। कोर्ट ने इसे देखते हुए कहा कि अपीलकर्ता को सूचना देने वाला या अन्य ग्रामीणों के लोग नहीं पहचानते थे, जो घटना के तुरंत बाद ठाकुरबाड़ी में एकत्र हुए थे।

    कोर्ट ने शुरुआत में अवलोकन किया कि,

    "प्रत्येक अपराध सिद्धि के संबंध में अदालत के समक्ष पेश किए गए गवाहों की गवाही का विश्लेषण करने के बाद इसमें कोई संदेह नहीं है कि जिस समय घटना घटित हुई तब गांव में अंधेरा था, दुर्भाग्यपूर्ण नरसंहार के स्थान पर तबाही मची थी और अपनी जान बचान के लिए ग्रामीण भी छुपने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे। ऐसी पूरी अराजकता की स्थिति में गांव के विभिन्न कोनों में छिपे गवाहों ने बिना किसी संकेत के एक या अधिक आरोपियों की पहचान करने का दावा किया, जबकि वहां अंधेरा था। यह दावा सिर्फ बदमाशों के हाथों पर टार्च के आधार पर किया गया था।"

    कोर्ट ने इसके अलावा कहा कि यह किसी का मामला नहीं था कि बदमाशों की पहचान आवाज या कपड़े या परिचित के किसी अन्य निशान के माध्यम से की गई थी।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "अंधेरा और दूरी जैसी स्थिति में स्वाभाविक रूप से सवाल उठता है कि बदमाशों के चेहरों की की पहचान कैसे की जा सकती है। जब्त किए गए सबूतों में प्रकाश के किसी भी कृत्रिम स्रोत नहीं पाया गया है जिससे यह पता चले कि इसके माध्यम से अंधेरी रात में किसी को पहचाना जा सके। इसके अलावा आरोपियों को पहली बार सात साल से अधिक समय पहले डॉक आइडेंटिफिकेशन में पहचाना गया था और घटना के बाद लगभग 16 साल तक बढ़ाया गया है। जिन परिस्थितियों में शिनाख्त परेड ( टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड) आयोजित की गई थी वह कमजोर और बिना किसी पुष्टि की थी। डॉक आइडेंटिफिकेशन उन घटनाओं के स्मरण पर आधारित थी जो बहुत पहले हुई थीं। निश्चित रूप से कोई शिनाख्त परेड आयोजित नहीं की गई थी।"

    केस का शीर्षक: बिहार राज्य बनाम बचेश कुमार सिंह और अन्य।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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