यदि पीड़िता बालिग थी तो आरोपी को POCSO ट्रायल का सामना करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिएः दिल्ली हाईकोर्ट ने यूआईडीएआई को पीड़िता के डीओबी रिकॉर्ड प्रस्तुत करने के लिए कहा

Manisha Khatri

9 Nov 2022 1:00 PM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट, दिल्ली

    दिल्ली हाईकोर्ट

    लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) के तहत आरोपों का सामना कर रहे एक बलात्कार आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को निर्देश दिया है कि वह पीड़िता के आधार कार्ड से संबंधित रिकॉर्ड के अनुसार उसकी जन्म की तारीख का विवरण प्रस्तुत करे।

    अदालत ने यह आदेश तब पारित किया जब आरोपी ने दावा किया कि आधार कार्ड की प्रति के अनुसार पीड़िता घटना की कथित तारीख पर बालिग थी। इस दावे का राज्य ने विरोध किया था।

    जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा कि जांच एजेंसी के साथ-साथ विशेष अदालत का भी यह कर्तव्य है कि वह इस तथ्य पर विचार करते हुए पीड़िता की उम्र का पता लगाएं या निर्धारित करें और संतुष्ट करें कि पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों के तहत चलने वाला मुकदमा अधिनियम की धारा 29 व 30 के तहत मानसिक स्थिति का अनुमान और अस्तित्व रखता है।

    अदालत ने कहा,''पीड़ित की उम्र का उचित निर्धारण क्षेत्राधिकार के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है जो पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों की प्रयोज्यता को निर्धारित करता है। यह अनिवार्य है कि कानून यह सुनिश्चित करने के लिए संतुलित तरीके से संचालित हो कि पीड़ित बच्चे के अधिकारों को पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों के तहत संरक्षित किया जाए और साथ ही, यह सर्वाेपरि है कि आरोपी को पॉक्सो एक्ट के कठोर प्रावधानों के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए मजबूर न किया जाए, जिनमें कड़ी सजा का प्रावधान है,यदि पीड़िता घटना के समय बालिग थी।''

    अदालत ने आगे कहा कि पॉक्सो एक्ट की धारा 34 की उप-धारा (2) के तहत भी विशेष न्यायालय को बच्चे की उम्र के बारे में खुद को संतुष्ट करने और इस संबंध में निष्कर्ष पर पहुंचने के कारणों को लिखित रूप में दर्ज करने की आवश्यकता है।

    यह भी कहा कि,''उपरोक्त उद्देश्यों को जमानत या आरोप के चरण में भी परिप्रेक्ष्य में रखने की आवश्यकता है।''

    पिछले साल एक नाबालिग लड़की से बलात्कार करने के आरोपी एक व्यक्ति द्वारा दायर जमानत याचिका पर विचार करते हुए न्यायालय ने यह टिप्पणी की हैं। उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366, 376 और 506 और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

    पीड़िता की उम्र से संबंधित दावों पर विचार करते हुए, अदालत ने 27 जुलाई को कहा था कि जरूरी है कि आधार कार्ड में दर्ज पीड़िता के जन्म की तारीख के विवरण की पुष्टि यूआईडीएआई द्वारा की जाए।

    हालांकि, 1 नवंबर को एपीपी के साथ-साथ यूआईडीएआई का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने अदालत को बताया था कि आधार (वित्तीय और अन्य सहायिकियों, प्रसुविधाओं और सेवाओं का लक्षित परिदान) अधिनियम, 2016 की धारा 33 (1) के संदर्भ में इस न्यायालय द्वारा विशिष्ट आदेश पारित करने की आवश्यकता है, यदि सही विवरण का पता लगाया जाना है और प्राधिकरण द्वारा उसे साझा किया जाना है।

    पीड़िता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा कि उसे जन्मतिथि के सत्यापन के लिए कोई आपत्ति नहीं है, परंतु उसके आधार कार्ड के अनुसार पीड़िता की सही जन्म तिथि का पता लगाने का आरोपी के वकील ने जोरदार विरोध किया और हंजला इकबाल बनाम राज्य व अन्य के मामले में एक समन्वय पीठ द्वारा पारित हालिया आदेश का सदंर्भ दिया।

    उस केस में, अदालत ने एक पॉक्सो मामले में एक आरोपी को यह कहते हुए जमानत दे दी थी कि ''वह व्यक्ति, जो किसी अन्य व्यक्ति के साथ सहमति से शारीरिक संबंध रखता है, उसे दूसरे व्यक्ति की जन्म तिथि की न्यायिक जांच करने की आवश्यकता नहीं है। उसे शारीरिक संबंध बनाने से पहले आधार कार्ड, पैन कार्ड देखने और उसके स्कूल रिकॉर्ड से जन्म तिथि सत्यापित करने की आवश्यकता नहीं है।''

    जस्टिस मेंदीरत्ता ने कहा कि आरोपी के वकील द्वारा उठाई गई आपत्तियां ''पूरी तरह से गलत'' प्रतीत होती हैं, क्योंकि पीड़िता की सही जन्म तिथि का पता लगाना '' अनिवार्य है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मुकदमा सही दिशा में आगे बढ़े।''

    कोर्ट ने कहा,''याचिकाकर्ता के वकील द्वारा उद्धृत फैसला तथ्यों पर अलग है क्योंकि इसमें कभी भी एक ही दस्तावेज़ के संबंध में दो जन्मतिथियों का दावा किए जाने का मुद्दा शामिल नहीं था। आधार कार्ड की प्रतियों में से एक पर दी गई जन्म तिथि सही हो सकती है जबकि दूसरी नकली होगी, जब तक कि किसी अन्य परिकल्पना पर इसकी व्याख्या न की जा सके, क्योंकि पांच साल की अवधि के बाद बच्चे के मामले में कार्ड अपडेट किए जाते हैं, जैसा कि यूआईडीएआई के लिए उपस्थित वकील द्वारा स्पष्ट किया गया है।''

    नाबालिग पीड़िता की जन्मतिथि पर यूआईडीएआई से ब्योरा मांगते हुए अदालत ने मामले की अगली सुनवाई एक जनवरी 2023 के लिए सूचीबद्ध की है।

    केस टाइटल-विपिन सिंह बनाम राज्य व अन्य

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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