धारा 498A : जब ट्रायल कोर्ट ने दहेज के लिए दोषी नहीं ठहराया तो हाई कोर्ट बिना सबूतों पर विचार किए इस अपराध के लिए दोषी नहीं ठहरा सकता : SC [निर्णय पढ़े ]

Live Law Hindi

22 July 2019 7:28 AM GMT

  • धारा 498A : जब ट्रायल कोर्ट ने दहेज के लिए दोषी नहीं ठहराया तो हाई कोर्ट बिना सबूतों पर विचार किए इस अपराध के लिए दोषी नहीं ठहरा सकता : SC [निर्णय पढ़े ]

    सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि जब भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत ट्रायल कोर्ट ने किसी को दहेज की मांग के लिए दोषी नहीं ठहराया है तो उच्च न्यायालय रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों पर विस्तृत विचार के बिना दहेज की मांग के लिए आरोपी को उसी के तहत दोषी नहीं ठहरा सकता।

    क्या था यह मामला ?

    इस मामले में वसीम को आईपीसी की धारा 306 और 498 ए के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया गया था। धारा 498 ए के तहत अारोप दहेज की मांग के लिए नहीं था बल्कि यह पता लगाने के लिए था कि अभियुक्त ने एक अतिरिक्त वैवाहिक संबंध होने के कारण मानसिक क्रूरता की और उसके द्वारा मृतका को यह धमकी दी गई कि वह उसे छोड़ देगा और दूसरी महिला से शादी कर लेगा।

    उच्च न्यायालय ने आरोपियों को इस निष्कर्ष के आधार पर धारा 306 के तहत बरी कर दिया कि पेश किए गए सबूत आत्महत्या के आरोप को साबित नहीं कर पाए थे। हालांकि अदालत ने उन्हें धारा 498 ए के तहत दोषी पाया कि मृत्यु से पहले दहेज की कोई मांग नहीं थी लेकिन विवाह के तुरंत बाद अभियोजन पक्ष ने दहेज की मांग को साबित कर दिया था।

    अपील में न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने यह कहा कि हाई कोर्ट में दहेज की मांग के संबंध में ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज निष्कर्षों से संबंधित सबूतों की कोई चर्चा नहीं हुई। पीठ ने धारा 498A के स्पष्टीकरण में निपटाए गए 'क्रूरता' के अर्थ को समझाते हुए कहा:

    "आईपीसी की धारा 498 ए एक महिला को क्रूरता के अधीन करने के अपराध के संबंध में है। क्रूरता को किसी भी एैच्छिक आचरण के रूप में समझाया जाता है, जिसमें महिला को आत्महत्या करने या जीवन, अंग या स्वास्थ्य को गंभीर चोट या खतरे का कारण बनने की संभावना होती है। दहेज की गैरकानूनी मांग द्वारा एक महिला का उत्पीड़न भी 'क्रूरता' के चरित्र का हिस्सा है। धारा 498 ए को पढ़ने से यह स्पष्ट है कि इसके तहत अपराध के लिए दोषी विचारणीय आचरण के लिए हो सकता है जो एक महिला को आत्महत्या करने या दहेज की मांग के लिए उकसाने की संभावना बनाता है। "

    अदालत ने धारा 306 आईपीसी की व्याख्या इस प्रकार की:

    "धारा 306 में कारावास के साथ दंड का प्रावधान है जो 10 साल तक की जेल हो सकता है। धारा 306 के तहत सजा के अपराध करने के लिए स्पष्ट रुप से उद्देश्य होना चाहिए। इसके लिए एक सक्रिय कार्य या प्रत्यक्ष कार्य की भी आवश्यकता होती है जिसके कारण मृतक आत्महत्या करता है और उसे कोई विकल्प नहीं दिखता।"

    अदालत ने आगे यह कहा कि कोई भी आचरण जो महिला को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करता है, आईपीसी की धारा 498 ए के तहत सजा के लिए पर्याप्त है। लेकिन इस मामले में पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने एक स्पष्ट खोज दर्ज की कि अभियुक्तों की ओर से न तो मानसिक और न ही शारीरिक क्रूरता साबित हुई। उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए पीठ ने कहा :

    "उच्च न्यायालय ने धारा 498 ए के तहत अपीलकर्ता को दहेज की मांग के लिए रिकॉर्ड पर सबूतों की विस्तृत चर्चा के बिना दोषी नहीं ठहराया है, खासकर तब जब ट्रायल कोर्ट ने यह पाया कि यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं है कि दहेज की कोई मांग की गई थी। उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के ऐसे निष्कर्षों का उल्लेख नहीं किया और ना ही इसकी अस्वीकृति के कारण रिकॉर्ड किए।"


    Tags
    Next Story